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रतन टाटा क्‍यों कभी अरबपतियों की सूची में नहीं आए नजर? सादगी और ईमानदारी से बनाई अलग पहचान

Updated on 10-10-2024 12:28 PM
नई दिल्ली: रतन टाटा दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में से एक थे। फिर भी वह कभी अरबपतियों की किसी सूची में नजर नहीं आए। उनके पास 30 से ज्यादा कंपनियां थीं जो छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में फैली थीं। इसके बावजूद वह एक सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। रतन नवल टाटा का बुधवार रात को 86 वर्ष की आयु में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया।

सरल व्यक्तित्व के धनी रतन टाटा कॉरपोरेट दिग्गज थे। उन्‍होंने अपनी शालीनता और ईमानदारी के बूते अलग तरह की छवि बनाई थी। रतन टाटा 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बी.एस. की डिग्री प्राप्त करने के बाद पारिवारिक कंपनी में शामिल हो गए।

उन्होंने शुरुआत में एक कंपनी में काम किया और टाटा समूह के कई व्यवसायों में अनुभव प्राप्त किया। इसके बाद 1971 में उन्हें (समूह की एक फर्म) ‘नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी’ का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया।

टाटा ग्रुप का दुनिया में बजा डंका


एक दशक बाद वह टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने और 1991 में अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा समूह के चेयरमैन का पदभार संभाला। जेआरडी टाटा पांच दशक से भी अधिक समय से इस पद पर थे।

यह वह साल था जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला और 1868 में कपड़ा और व्यापारिक छोटी फर्म के रूप में शुरुआत करने वाले टाटा समूह ने शीघ्र ही खुद को एक ‘वैश्विक महाशक्ति’ में बदल दिया। इसका परिचालन नमक से लेकर स्‍टील, कार से लेकर सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र और एयरलाइन तक फैला गया था।

व‍िदेश में क‍िए कई अ‍ध‍िग्रहण


रतन टाटा दो दशक से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी ‘टाटा संस’ के चेयरमैन रहे। इस दौरान समूह ने तेजी से विस्तार करते हुए वर्ष 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा। साल 2004 में दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण परिचालन को 10.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीदा, एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा और फोर्ड मोटर कंपनी से मशहूर ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदा।

परोपकार के कारण कभी अरबप‍त‍ियों की दौड़ में नहीं रहे


भारत के सबसे सफल व्यवसायियों में से एक होने के साथ-साथ वह अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिए भी जाने जाते थे। परोपकार में उनकी व्यक्तिगत भागीदारी बहुत पहले ही शुरू हो गई थी।

वर्ष 1970 के दशक में उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की। इसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी। अपनी परोपकारी गतिविधियों के कारण ही वह कभी अरबपतियों की दौड़ में नहीं दिखाई दिए।

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