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पीक सीजन में नमक का उत्पादन ठप, अगले दिनों में बाजार से गायब हो सकता है नमक

Updated on 12-05-2020 12:46 AM

मुंबई । इस बात की काफी अधिक आशंका है कि अगले कुछ महीनों में आपके किचन में रखा नमक का डिब्बा खाली हो जाए। भारतीय समुद्री तटों के किनारे स्थित ‘नमक किसान’ स्टॉक में कमी का अनुमान जता रहे हैं, क्योंकि कोविड-19 को सीमित करने के लागू लॉकडाउन से उनका प्रॉडक्शन साइकल का एक बड़ा हिस्सा कट गया है। मजदूरों की कमी, यातायात के साधन नहीं होने और एक से दूसरे जिले में आवाजाही पर लगी बंदिशों के चलते नमक बनाने वाली कंपनियों ने कई जगहों पर काम बंद कर दिया है। नमक के उत्पादन से जुड़ा काम अक्टूबर से जून के बीच होता है। इसमें से भी अधिकांश उत्पादन मार्च और अप्रैल में होता है। देश का 95 फीसदी उत्पादन गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में होता है, जबकि कुछ उत्पादन महाराष्ट्र, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में होता है।
हर साल देश में करीब 200 से 250 लाख टन नमक का उत्पादन होता है। इंडियन सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के प्रेजिडेंट भारत रावल ने बताया मार्च-अप्रैल हमारा पीक सीजन होता है और इस दौरान हमने करीब 40 दिन गंवा दिए हैं। नमक के उत्पादन क्षेत्र में एक महीने काम न होने की तुलना दूसरी इंडस्ट्रीज के चार अहम महीने बर्बाद होने से हो सकती है। भारत में खाने-पीने में हर साल करीब 95 लाख टन नमक की खपत होती है। वहीं, करीब 110 से 130 लाख टन नमक की मांग विभिन्न उद्योगों की ओर से आती है, जबकि करीब 58-60 लाख टन नमक का उन देशों को निर्यात किया जाता है, जो इसके लिए पूरी तरह से भारत पर निर्भर हैं।
जिन उद्योगों में नमक का इस्तेमाल होता है, उसमें पावर प्लांट्स, ऑयल रिफाइनरीज, सोलर पावर कंपनियां, केमिकल मैन्युफैक्चरर्स, टेक्सटाइल कंपनियां, मेटल फाउंड्रीज, फार्मास्युटिकल्स, रबर और लेदर मैन्युफैक्चरर्स शामिल हैं। रावल ने बताया हमारे पास अब बस 45 दिन और बचे हैं और हमें नहीं पता है कि हम बर्बाद हुए समय की इतने में भरपाई कर पाएंगे या नहीं। उन्होंने बताया अगर हम अगले कुछ दिनों में उत्पादन नहीं बढ़ा पाते हैं तो हमारे पास ऑफ-सीजन (मॉनसून) के दौरान अधिक बफर स्टॉक नहीं बचेगा। इसके अलावा अगर लॉकडाउन हटने के बाद इंडस्ट्रीज की ओर से मांग बढ़ती है, तो उसे पूरा करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स को अब सिर्फ देर से मॉनसून सीजन शुरू होने पर ही राहत मिल सकती है। इसके अलावा अगले दो महीनों में तटों तक प्री-मॉनसून बारिश और चक्रवात भी अधिक नहीं आने चाहिए। जामगनर स्थित एक सॉल्ट मैन्युफैक्चरर और आईएसएमए के सेक्रेटरी पी आर धुर्वी ने बताया कि मॉनूसन पिछले साल नवंबर तक टिका था, जिसके चलते हमने मौजूदा उत्पादन सीजन की शुरुआत देर से की थी। अब अगर इस साल अनुमान के मुताबिक बारिश पहले आ जाती है, तो सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स के लिए अच्छी मात्रा में बफर स्टॉक जुटा पाना संभव नहीं होगा।


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