अगर गांधी आज होते, तो वो नेताओं की तरह संसद में बैठकर भाषण नहीं देते, बल्कि जिलों में जाकर लोगों के बीच रहकर काम करते। धर्म अब बाजार और सत्ता का हथियार बन चुका है, जिससे नफरत और असमानता बढ़ रही है।
निवानो शांति पुरस्कार विजेता और गांधीवादी विचारक पीवी राजगोपाल ने यह बात कही। उन्होंने गांधी के मूल्यों और आज के समाज पर खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि कैसे आज का दौर हिंसा, नफरत और धार्मिक बाजारीकरण से भरा हुआ है। ऐसे समय में गांधी के विचार और भी जरूरी हो गए हैं।
उन्माद पैदा कर रहा है बाजार
राजगोपाल ने कहा कि पहले धर्म का स्थान समाज में सौहार्द बढ़ाने वाला था। लेकिन अब धर्म बाजार के हाथ में है। बाजार बहुत पैसे खर्च करके मंदिरों का निर्माण कर रहा है। बाजार त्योहारों का बाजारीकरण कर रहा है। इन सबसे धार्मिक उन्माद बढ़ रहा है। एक समय था जब चरण सिंह और शास्त्री जैसे नेता किसान परिवार से आते थे, लेकिन अब अधिकतर नेता पूंजीपति घरानों से आते हैं। यह बदलाव भी बाजार की ताकत को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि जब तक हिंसा और अहिंसा पर पढ़ाई नहीं होगी, जब तक हम मनुष्य बनने की शिक्षा नहीं देंगे, तब तक यह गिरावट जारी रहेगी।
अगर गांधी होते तो जिलों में रहते, न कि संसद में राजगोपाल ने कहा कि जब भारत आजाद हुआ तो गांधी दिल्ली में नहीं थे, बल्कि वहां थे जहां समस्या थी। अगर आज के नेता भी गांधी से प्रेरणा लें और संसद छोड़कर जिलों में जाकर काम करें, तो बदलाव संभव है। उन्होंने कहा कि अगर नेता पांच साल के लिए जिलों में काम करें, तो थाने से लेकर अस्पताल तक का व्यवहार बदल जाएगा। गांधी का मानना था कि शक्ति का प्रयोग नहीं, सेवा का भाव जरूरी है।
“नफरत बढ़ेगी तो हिंसा निश्चित है” राजगोपाल ने कहा कि समाज में बढ़ रही हिंसा की जड़ नफरत में है। नफरत व्यक्ति से शुरू होकर समाज को निगल जाती है। धार्मिक भेदभाव, आर्थिक खाई और संसाधनों के असमान वितरण ने समाज में असंतुलन पैदा कर दिया है। उन्होंने कहा कि जब 1% लोग 50% संपत्ति पर कब्जा करते हैं और बाकी लोग राशन की लाइन में लगे होते हैं, तो समाज में असंतोष और क्रोध पैदा होता है। ऐसी असमानता हिंसा को जन्म देती है।
गांधी एक व्यक्ति नहीं, एक मूल्य हैं
राजगोपाल ने कहा कि गांधी एक व्यक्ति नहीं हैं, वे एक मूल्य हैं, एक दिशा देने वाले प्रकाश स्तंभ। यदि हम उन्हें खत्म करते हैं, तो यह केवल एक इंसान की समाप्ति नहीं होगी, बल्कि उन मूल्यों की हार होगी जो हमें हिंसा से बचाते हैं। उन्होंने मार्टिन लूथर किंग के उस वक्तव्य का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि “दुनिया में वह हर देश में टूरिस्ट के तौर पर जाते हैं, लेकिन भारत गांधी का देश है, यहां वह तीर्थ यात्रा के लिए आते हैं।” उन्होंने कहा कि आज की जीवनशैली गांधी के आदर्शों से बहुत अलग है। यह समस्या गांधी की नहीं, बल्कि हमारी है। हम गांधी को कोस कर खुद को बुद्धिजीवी या बहादुर साबित करना चाहते हैं, लेकिन यह केवल अस्थायी साहस है। समाज को तय करना होगा कि हमारे आदर्श कौन होंगे - हिंसा करने वाले या शांति के मार्ग पर चलने वाले?
गोडसे का मंदिर बनाना गलत दिशा की तरफ इशारा
राजगोपाल ने गोडसे के मंदिर की चर्चा करते हुए कहा कि यह एक खतरनाक मानसिकता को दर्शाता है। जिस समाज में अहिंसा की पूजा करने वाले को नकारा जाए और हिंसा करने वाले को पूजनीय माना जाए, वह समाज अपने बच्चों को हिंसा के लिए प्रेरित कर रहा है। फिर ऐसे समाज को यह सवाल नहीं उठाना चाहिए कि बच्चे हिंसक क्यों हो रहे हैं। अगर हम बंदूक चलाने वाले को आदर्श बना देंगे, तो सभ्यता का लक्ष्य ही खत्म हो जाएगा।
कन्नूर और मणिपुर में शांति प्रयासों की मिसाल दी
राजगोपाल ने कहा कि वह देशभर में युवाओं को शांति और अहिंसा पर प्रशिक्षित कर रहे हैं। उन्होंने केरल के कन्नूर की मिसाल दी, जहां दो राजनीतिक दलों में टकराव था, लेकिन संवाद के ज़रिए शांति स्थापित की गई। इसी तरह मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच बातचीत के ज़रिए समाधान निकालने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि हिंसा से अहिंसा की यात्रा संभव है, लेकिन इसके लिए गहराई से समझने वाले लोग चाहिए।
राजगोपाल को जापान में मिला निवानो शांति पुरस्कार
राजगोपाल पीवी को जापान के टोक्यो में 11 मई 2023 को 40वां निवानो शांति पुरस्कार मिला। यह सम्मान उन्हें सामाजिक न्याय, वंचित वर्गों के अधिकार और अहिंसक आंदोलनों के ज़रिए बदलाव लाने के लिए दिया गया। वह एकता परिषद के संस्थापक हैं और उन्होंने जल, जंगल, जमीन के अधिकारों के लिए कई पद यात्राओं का नेतृत्व किया है, जिससे लाखों परिवारों को जमीन का अधिकार मिला।