कोरोना संक्रमण भले ही अब महामारी का रूप न हो, पर वायरस पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। वर्ष 2020 में 23 मार्च को ही भोपाल में पहला केस मिलने की घोषणा हुई थी। अब भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और एम्स भोपाल की स्टडी में सामने आया है कि संक्रमित के शरीर से निकलने के बाद भी वायरस सीवेज में जिंदा रह सकता है। यह नए स्वरूप में बदलकर फिर से फैल सकता है।
शोधकर्ताओं ने संक्रमित मरीजों के मल और सीवेज के कई जगहों से सैंपल लेकर यह स्टडी की। भोपाल में शाहपुरा एसटीपी, प्रोफेसर कॉलोनी, हमीदिया अस्पताल और एम्स सहित कई इलाकों के सीवेज सैंपल की जांच की गई। इनमें कोरोना वायरस के अंश (आरएनए) मिले, जो कई दिनों तक सक्रिय रह सकते हैं। देशभर में सीवेज सैंपल टेस्टिंग के लिए 8 सेंटर बनाए गए हैं। लखनऊ में भी इसकी पुष्टि हुई है। विशेषज्ञों के मुताबिक, गंदे पानी के संपर्क में आने से संक्रमण फैल सकता है।
एम्स भोपाल के बायोकैमिस्ट्री विभाग के एचओडी डॉ. जगत आर कंवर के मुताबिक, अगर किसी इलाके में संक्रमण बढ़ने वाला हो, तो उससे पहले सीवेज में वायरस की मात्रा बढ़ जाती है। इसीलिए, निगरानी प्रणाली विकसित कर संक्रमण को पहले ही रोका जा सकता है।
स्टडी के प्रमुख निष्कर्ष : {कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति के मल के जरिए सीवेज में पहुंचता है और लंबे समय तक सक्रिय रहता है। {2022 से 2024 के बीच 308 मरीजों के स्टूल सैंपल की जांच में 22% यानी 68 मरीजों में पहले हफ्ते तक वायरस का आरएनए मौजूद मिला। {सीवेज में मिले वायरस की सीक्वेंसिंग से कई नए वेरिएंट की पहचान हुई। {सफाई व्यवस्था कमजोर होने पर संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
अमेरिका की तरह बनेगा अर्ली वार्निंग सिस्टम इस स्टडी के आधार पर आईसीएमआर एक ऐसा सिस्टम तैयार कर रहा है, जो संक्रमण के संकेत पहले ही दे सके। अमेरिका में ऐसा सिस्टम पहले से लागू है, जहां कोरोना समेत दूसरे संक्रामक वायरस की भी निगरानी होती है। अब भारत में भी बड़े शहरों में इसी तरह डेटा जुटाया जा रहा है, ताकि किसी भी नए संक्रमण का पता पहले ही लगाया जा सके।
ऐसे बरतें सावधानी