नौ साल तक सोई रही भारत की यह 'अप्सरा', नेहरू को था खास लगाव, दलाई लामा ने भी किए थे 'दर्शन'
Updated on
08-08-2023 02:28 PM
नई दिल्ली: भारत और एशिया का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर अप्सरा (Apsara) अब म्यूजियम बनने जा रहा है। यह दुनिया में अपनी तरह का पहला मामला है जब किसी न्यूक्लियर रिएक्टर को म्यूजियम में बदला जा रहा है। ट्रॉम्बे के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में स्थित इस रिएक्टर चार अगस्त, 1956 को शुरू किया गया था। 20 जनवरी, 1957 के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसे देश को समर्पित किया था। रिएक्टर के शुरू होने पर इससे नीली किरणें निकली थीं। इस वजह से नेहरू ने इसका नाम अप्सरा रख दिया था। एक मेगावाट के इस रिएक्टर को 2009 में बंद कर दिया गया था और फिर 10 सितंबर, 2018 को इसे अप्सरा यू के रूप में फिर चालू किया गया। वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर फिजिक्स, मेडिकल एप्लिकेशन, मटीरियल साइंस और रेडिएशन शील्डिंग के फील्ड में बेसिक रिसर्च के लिए इसका इस्तेमाल किया।
रिएक्टर रिसर्च सेंटर अप्सरा का डिजाइन मशहूर साइंटिस्ट डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा ने साल 1955 में तैयार किया था। रिएक्टर के निर्माण में यूनाइटेड किंगडम ने मदद की थी और प्रारंभिक फ्यूल भी दिया था। अप्सरा एक पूल-प्रकार का रिएक्टर था, जिसमें 80 फीसदी शुद्ध यूरेनियम फ्यूल का इस्तेमाल होता है। इसके चालू होने से भारत ने रेडियो आइसोटोप का उत्पादन शुरू किया। रेडियो आइसोटोप का चिकित्सा, खाद्य संरक्षण, पाइपलाइन चेकिंग के अलावा कई जगह इस्तेमाल होता है। भाभा का कहना था कि न्यूक्लियर रिएक्टर किसी भी न्यूक्लियर प्रोग्राम की रीढ़ होता है। होमी जहांगीर को भारत में न्यूक्लियर एनर्जी का जनक कहा जाता है।
नौ साल तक बंद रहा
अप्सरा लाइट वाटर स्विमिंग पूल टाइप रिएक्टर था। इसमें एक बार में एक मेगावॉट थर्मल की बिजली का प्रोडक्शन होता था। रिएक्टर की भट्टी में एल्यूमिनियम यूरेनियम की मिश्रित धातु से तैयार प्लेटों को जलाकर एनर्जी बनाई जाती थी। इसमें विशेष फ्यूल का यूज किया जाता था, जो ब्रिटेन से आता था। इसमें रेडियो आइसोटोप का प्रोडक्शन भी किया जाता है। रिसर्चर्स को पांच दशक से अधिक समय तक समर्पित सेवा प्रदान करने के बाद इस रिएक्टर को 2009 में बंद कर दिया गया था। 10 सितंबर 2018 को अप्सरा-अपग्रेडेड का परिचालन प्रारंभ हुआ। उच्च क्षमता वाले इस रिएक्टर की स्थापना स्वदेशी तकनीक से की गई थी।
कुछ साल बाद अप्सरा-यू को भी बंद कर दिया गया। इसे म्यूजियम में बदलने की योजना कुछ समय से बन रही है। बार्क के डायरेक्टर और एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन ए के मोहंती ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा कि हम अप्सरा को म्यूजियम में बदलने पर काम कर रहे हैं। इससे लोगों को भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम के इतिहास की झलक देखने को मिलेगी। हालांकि इसमें कई चुनौतियां भी हैं। बार्क हाई सिक्योरिटी जोन में आता है और भारत के न्यूक्लियर वेपन प्रोग्राम के सेंटर है। सवाल यह है कि सुरक्षा से समझौता किए बिना लोगों को म्यूजियम तक कैसे पहुंचाया जाएगा। मोहंती ने कहा कि इस काम में एक साल या उससे ज्यादा का वक्त लग सकता है।
कौन-कौन आए थे देखने
न्यूक्लियर साइंटिस्ट रहे एम आर श्रीनिवासन ने अपनी आत्मकथा 'From Fission to Fusion' में लिखते हैं कि भाभा और यूके के एटॉमिक एनर्जी एस्टाब्लिशमेंट के डायरेक्टर जॉन कॉकक्रॉफ्ट में शर्त लगी थी कि भाभा देश के पहले रिसर्च रिएक्टर को 12 महीने में शुरू कर पाएंगे या नहीं। एटॉमिक एनर्जी विभाग ने 15 मार्च, 1955 को इसे बनाने का फैसला किया और जुलाई 1955 में इसके डिजाइन को फाइनल कर दिया गया। भाभा चाहते थे कि पूरा रिएक्टर भारत में ही बने और केवल फ्यूल को आयात किया जाए।
इसे शुरू करने का पहला प्रयास 31 जुलाई, 1956 को किया गया। भारी बारिश हो रही थी और तेज हवाएं चल रही थी। शाम को पिकनिक डिनर के बाद इसे शुरू करने का प्रयास किया गया। लेकिन इसमें तकनीकी दिक्कत आ गई। चार अगस्त, 1956 को दूसरे प्रयास में भाभा ने कहा कि केवल अहम लोग ही कंट्रोल रूम में रहेंगे। आखिरकार यह शुरू हो गया। दुनिया की कई जानीमानी हस्तियों ने अप्सरा को विजिट किया था। इनमें चीन के प्रधानमंत्री चोउ इन लाई, दलाई लामा, पंचेन लामा और इथियोपिया के राजा हेल सेलासी शामिल थे।
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