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तालिबान का राजदूत चीन में तैनात, अफगान सरकार को धीरे-धीरे मान्यता दे रहा ड्रैगन, जिनपिंग का बड़ा प्लान

Updated on 02-12-2023 01:57 PM
काबुल: तालिबाद पिछले दो वर्षों से अफगानिस्तान की सत्ता में है। लेकिन दुनिया में उसे मान्यता नहीं मिल पा रही है। इस बीच ऐसा लग रहा है जैसे चीन और तालिबान के बीच राजनयिक संबंध शुरू हो गए हैं। अफगानिस्तान तालिबान सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की है कि चीन ने उसके राजनयिक को मान्यता दे दी है। दो पड़ोसियों के बीच संबंध को जियोपॉलिटिक्स में एक महत्वपूर्ण अध्याय के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि चीन की ओर से अभी भी इसकी पुष्टि नहीं की गई है।

अगर बीजिंग की ओर से इसकी पुष्टि हो जाती है तो चीन पहला ऐसा देश होगा जो तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहली बार तालिबानी राजदूत को होस्ट करेगा। अभी तक चीन या किसी अन्य देश ने अफगान प्रशासन को मान्यता नहीं दी है। तालिबानी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी बयान के मुताबिक चीनी विदेश मंत्रालय के प्रोटोकॉल ऑफिस के महानिदेशक हांग लेई ने नव नियुक्त राजदूत असदुल्ला बिलाल करीमी से परिचय पत्र स्वीकार किया। होंग ने करीमी के आने को चीन और अफगानिस्तान के बीच सकारात्मक संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया।

अफगानिस्तान में नहीं है हस्तक्षेप

तालिबान के बयान के मुताबिक, 'चीन राष्ट्रीय संप्रभुता और अफगानिस्तान के लोगों के फैसले का सम्मान करता है। हम अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते और न ही अतीत में ऐसा किया है।' करीमी ने चीनी पक्ष को आश्वासन दिया है कि अफगानिस्तान के क्षेत्र से किसी को कोई खतरा नहीं है और क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा सभी के हित में है। नए राजदूत युवा और 30-35 वर्ष के हैं। वह हाल तक तालिबान के नेतृत्व वाले सूचना मंत्रालय में उप प्रवक्ता के रूप में कार्यरत थे।

तालिबान को BRI में किया आमंत्रित

चीन ने अफगानिस्तान में फिर से संघर्ष के बढ़ने से रोकने में मदद को कहा है। चीन की सरकार ने इस साल अक्टूबर में तालिबान के प्रतिनिधियों को अपने वैश्विक बेल्ट एंड रोड फोरम में आमंत्रित किया, जो सत्ता में लौटने के बाद तालिबान की पहली हाई-प्रोफाइल बहुपक्षीय सभा थी। इससे पहले पिछले सितंबर में चीन ने तालिबान के शासन में पहली बार राजदूत नियुक्त किया था। चीनी सरकार और कंपनियां लगातार अफगानिस्तान में निवेश करने की इच्छा जाहिर कर चुकी हैं। इस कारण पिछले कुछ महीनों में समझौते भी हुए हैं। जिनपिंग चाहते हैं कि तालिबान शासित अफगानिस्तान BRI का हिस्सा बन जाए। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगे प्रतिबंधों के कारण बड़ा निवेश यहां नहीं हो पा रहा।


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