जलवायु परिवर्तन पर पीएम मोदी ने विकसित देशों को दिखाया आईना, कार्बन उत्सर्जन कम करने की मांग की
Updated on
02-12-2023 02:12 PM
दुबई: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुनिया से विकासशील और निर्धन देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए वित्त के मामले में ठोस नतीजे देने का आह्वान करते हुए शुक्रवार को कहा कि विकसित देशों को 2050 से पहले कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को पूरी तरह कम करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने यहां सीओपी28 में 'ट्रांसफॉर्मिंग क्लाइमेट फाइनेंस' पर एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भारत 'न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल' (एनसीक्यूजी) पर ठोस और वास्तविक प्रगति की उम्मीद करता है, जो 2025 के बाद का एक नया वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य है। उन्होंने कहा, ''विकसित देशों को 2050 से पहले ही कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को पूरी तरह कम करना चाहिए।''
विकसित देशों ने 2009 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के वास्ते विकासशील देशों की सहायता के लिए 2020 तक प्रतिवर्ष 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने का वादा किया था। वर्ष 2025 तक इस उद्देश्य के लिए समयसीमा के विस्तार के बावजूद, इन देशों ने इस प्रतिबद्धता को पूरा नहीं किया है। सीओपी28 का लक्ष्य 100 अरब अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को पूरा करते हुए 2025 के बाद के नए वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य के लिए आधार तैयार करना है। इन देशों का लक्ष्य 2024 में सीओपी29 तक इस नए लक्ष्य को अंतिम रूप देना है।
मोदी ने कहा कि हरित जलवायु कोष और अनुकूलन कोष (एडॉप्टेशन फंड) में पैसे की कमी नहीं होनी चाहिए और इनकी तुरंत पूर्ति की जाए। उन्होंने कहा कि बहुपक्षीय विकास बैंकों को न केवल विकास के लिए बल्कि जलवायु कार्रवाई के लिए भी किफायती वित्त उपलब्ध कराना चाहिए प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और 'ग्लोबल साउथ' के अन्य देशों ने जलवायु संकट में बहुत कम योगदान दिया है, लेकिन ये सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा, ''संसाधनों की कमी के बावजूद, ये देश जलवायु कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध हैं।'' उल्लेखनीय है 'ग्लोबल साउथ' में अल्प विकसित और विकासशील देश आते हैं जिनमें से अधिकतर दक्षिणी गोलार्द्ध में अवस्थित हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा, ''जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी 'ग्लोबल साउथ' की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।'' उन्होंने कहा कि 'ग्लोबल साउथ' के देश जलवायु संकट से निपटने के लिए विकसित देशों से हर संभव मदद की उम्मीद करते हैं। विकसित देशों की 2030 की राष्ट्रीय जलवायु योजना औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए सामूहिक रूप से उनके 2019 के स्तर से उत्सर्जन में 36 प्रतिशत की कमी दिखाती है।
दिल्ली के 'थिंक टैंक' 'काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर' (सीईईडब्ल्यू) के एक अध्ययन के अनुसार, यह लक्ष्य हासिल करने के लिए आवश्यक 43 प्रतिशत की कटौती से कम है। सीईईडब्ल्यू का अनुमान है कि 2050 तक नेट-शून्य परिदृश्य में भी, विकसित देश सामूहिक रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के लिए शेष वैश्विक कार्बन बजट का 40-50 प्रतिशत से अधिक इस्तेमाल करेंगे।
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