फॉक्सकॉन ने भारत में सेमीकंडक्टर चिप बनाने के लिए वेदांता के साथ जॉइंट वेंचर बनाया था। लेकिन अब फॉक्सकॉन इससे हट गई है। इससे मोदी सरकार की भारत में चिप मैन्यूफैक्चरिंग की योजना को एक झटका लगा है। भारत में 2026 तक सेमीकंडक्टर का मार्केट 63 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। यही वजह है कि सरकार देश में चिप की मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की इकनॉमिक स्ट्रैटजी में चिप मैन्यूफैक्चरिंग को टॉप प्रायोरिटी दी है। वह देश में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग का नया युग शुरू करना चाहते हैं, इसलिए दुनियाभर की कंपनियों को भारत आने का न्योता दे रहे हैं।
अमेरिका की मजबूरी
दुनिया की दो बड़ी ताकतों अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से तनाव (US-China Tension) चल रहा है। लेकिन अमेरिका चाहकर भी चीन नहीं छोड़ पा रहा है। अमेरिका और चीन के संबंधों में आई खटास से सबसे ज्यादा नुकसान सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनियों को हुआ है। दोनों देशों ने एकदूसरे की कंपनियों पर तरह-तरह की पाबंदियां लगाई हैं। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि चीन के मिलिट्री और सर्विलांस प्रोग्राम्स में अमेरिकी प्रॉडक्ट्स लगाए गए हैं। इसलिए चिप्स और चिपमेकिंग इक्विपमेंट को चीन भेजने पर सख्त पाबंदी लगाई गई है। अमेरिका चाहता है कि इन्हें देश में ही बनाया जाए। इसके लिए कंपनियों का तगड़ा इंसेटिव भी दिया जा रहा है। लेकिन अमेरिका कंपनियों के लिए ऐसा करना आसान नहीं है।
चीन अमेरिका की चिप कंपनियों के लिए बड़ा मार्केट है। इसकी वजह यह है कि वहां बड़ी संख्या में ऐसे प्रॉडक्ट्स बनाए जाते हैं जिनमें सेमीकंडक्टर यानी चिप का व्यापक इस्तेमाल होता है। इनमें स्मार्टफोन, डिशवॉशर्स, कार और कंप्यूटर शामिल हैं। इनका पूरी दुनिया में एक्सपोर्ट होता है। दुनिया में सेमीकंडक्टर की कुल बिक्री में चीन का एक तिहाई योगदान है। लेकिन अमेरिका की कुछ कंपनियों का 60 से 70 फीसदी रेवेन्यू चीन से ही आता है। कई कंपनियां तो अमेरिका में चिप बना रही हैं लेकिन एसेंबलिंग और टेस्टिंग के लिए इन्हें चीन भेजा जाता है। अमेरिका में इसके लिए नई फैक्ट्रीज लगाने में काफी साल लग जाएंगे। यानी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री काफी हद तक चीन पर निर्भर है।
चिप की कीमत कुछ डॉलर होती है लेकिन कोरोना काल में इसका संकट पैदा हो गया था। इसकी कमी के कारण दुनियाभर की कंपनियों को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ। ग्लोबल चिप सप्लाई शॉर्टेज से कम से कम 169 इंडस्ट्रीज प्रभावित हुई । इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट्स, वीकल्स, स्मार्टफोन और दूसरे गैजेट बनाने में होता है। दुनियाभर में चिप सप्लाई संकट की शुरुआत 2020 में कोविड-19 महामारी आने के साथ हुई थी। पिछले कुछ महीनों में यह बहुत गहरा गई और दुनियाभर की कई बड़ी कंपनियों को इलेक्ट्रॉनिक गुड्स और कंपोनेंट्स की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
सेमीकंडक्टर्स को प्रॉडक्ट्स का दिल माना जाता है। स्मार्टफोन्स, डेटा सेंटर्स, कम्प्यूटर्स, लैपटॉप, टैबलेट, स्मार्ट डेवाइसेज, वीकल्स, हाउसहोल्ड अप्लायंसेज, लाइफ सेविंग फार्मास्यूटिकल डेवाइसेज, एग्री टेक, एटीएम और कई तरह के उत्पादों में इस्तेमाल होता है। सेमीकंडक्टर चिप्स सिलिकॉन से बनाया जाता है जो इलेक्ट्रिसिटी का अच्छा कंडक्टर होता है। इन चिप्स को माइक्रोसर्किट्स में फिट किया जाता है जिनसे कई आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक गुड्स और कंपोनेंट्स को पावर मिलती है। सभी एक्टिव कंपोनेंट्स, इंटिग्रेटेड सर्किट्स, माइक्रोचिप्स, ट्रांजिस्टर्स और इलेक्ट्रॉनिक सेंसर्स सेमीकंडक्टर मटीरियल्स से बनाए जाते हैं। ये हाई एंड कम्प्यूटिंग, ऑपरेशन कंट्रोल, डेटा प्रोसेसिंग, स्टोरेज, इनपुट और आउटपुट मैनेजमेंट, सेंसिंग, वायरलेस कनेक्टिविटी जैसे काम करते हैं।