तारीख- 10 दिसंबर 1968, शहर- टोक्यो का फुचु शहर। जापान ट्रस्ट बैंक से निकली एक कार 294 मिलियन येन यानी 1.7 हजार करोड़ रुपए के साथ तोशीबा कंपनी की तरफ बढ़ रही है। ये पैसे कर्मचारियों को बोनस के तौर पर दिए जाने थे।
कार में मौजूद बैंक कर्मचारी डरे हुए थे। दरअसल, चार दिन पहले ही 6 दिसंबर को बैंक मैनेजर को किसी शख्स ने धमकी भरा खत भेजा था। खत में लिखा था- मैनेजर चुपचाप 3 मिलियन येन बैंक की ही महिला कर्मचारी के खाते में भेजे दे, वरना वो बैंक को उड़ा देंगे।
धमकी देने वालों का प्लान था कि वो महिला कर्मचारी के खाते से सारे पैसे अपने खाते में ट्रांसफर कर लेंगे। हालांकि, बैंक ने इस डिमांड को पूरा नहीं किया था। बैंक मैनेजर ने शहर के पुलिस ऑफिस में इसकी शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद करीब 50 पुलिस अधिकारियों को बैंक के आसपास के इलाके में तैनात कर दिया गया था। उनके ऊपर बैंक कर्मचारियों की सुरक्षा की भी जिम्मेदारी थी।
पूरी सिक्योरिटी और चाक-चौबंद व्यवस्था के बावजूद तोशीबा कंपनी जा रहे बैंक कर्मचारी जापान के इतिहास की सबसे बड़ी चोरी के गवाह बने। इसे 55 साल पहले आज ही के दिन अंजाम दिया गया था।
10 दिसंबर को बैंक की गाड़ी बोनस का पैसा लेकर कंपनी की तरफ बढ़ ही रही थी कि एक अनजान मोटरसाइकिल पर सवार पुलिस वाले ने उनका रास्ता रोक दिया। सामने खड़े पुलिस वाले को देखकर ड्राइवर कार रोक देता है। वो कार का शीशा नीचे करके पुलिस अधिकारी से पूछता है- क्या कुछ परेशानी है ऑफिसर?
इस पर पुलिस अधिकारी ने कहा- आपके बैंक में एक धमाका हुआ है। हमें जानकारी मिली है कि इस कार में भी डायनामाइट लगाया गया है। आप सबको कार से बाहर आना होगा ताकि मैं इसकी पड़ताल कर सकूं।
इस पर बैंक कर्मचारी तुरंत कार से बाहर निकल गए। पुलिस अधिकारी ने कार के अंदर झांका। इसके कुछ ही देर में कार के आसपास धुआं नजर आने लगा। अधिकारी ने कार से बाहर निकलते ही चिल्लाया कि उसमें धमाका होने वाला है।
कार लेकर चला गया पुलिस अधिकारी
इस पर सभी बैंक कर्मचारी कार से सुरक्षित दूरी पर जा खड़े हुए। पुलिस अधिकारी कार में बैठा और वहां मौजूद लोगों को बचाने के लिए कार को चलाकर ले गया। कार के जाते से ही उसके ड्राइवर ने कहा कि ये पुलिस अफसर वाकई में काफी बहादुर था। लेकिन इसके बाद उनकी नजर उस जगह पर पड़ी जहां कार खड़ी थी।
हैरानी की बात ये थी, कि वहां अब भी हलका धुआं था। जब उन्होंने पास जाकर देखा तो सड़क पर एक बुझा हुआ रोड फ्लेयर पड़ा हुआ था। इसका इस्तेमाल सड़क पर ट्रैफिक कंट्रोल करने के लिए होता था। इससे रौशनी और धुआं निकलता है। रोड फ्लेयर देखते से ही बैंक कर्मचारी पुलिस अधिकारी की उस बाइक के पास पहुंचे जो उसने कार के सामने रोकी थी।
वो कोई पुलिस अधिकारियों की बाइक नहीं, बल्कि एक आम मोटरसाइकिल थी। बैंक कर्मचारियों को एहसास हुआ कि कार में कोई बम नहीं था और पुलिस के वेश में चोर उनसे 17 करोड़ रुपए चुराकर ले गया है। इस पूरी चोरी में सिर्फ 3 मिनट का समय लगा।
3 मिनट की चोरी के बाद शुरू हुई सालों की पड़ताल
इसके बाद केस में छानबीन की शुरुआत हुई। पुलिस ने चश्मदीदों के बयान दर्ज किए। चोर अपने पीछे कई सबूत छोड़ गया था। जांच के दौरान पुलिस अधिकारियों को पता चला कि 6 दिसंबर को आए धमकी भरे खत की तरह ही पहले भी ऐसे संदेश आ चुके हैं।
दरअसल, अप्रैल से अगस्त 1968 के बीच किसी ने तामा एग्रीकल्चरल को-ऑप नाम की कंपनी को नौ धमकी भरे लेटर भेजकर वसूली की कोशिश की थी। कुछ चिट्ठियों में पैसे की मांग की गई, जबकि दूसरे लेटर्स में को-ऑप कंपनी में आगजनी और बमबारी की धमकी दी गई।
पुलिस को मिले कई सबूत
जब इन खतों और 6 दिसंबर वाली चिट्ठी में हैंडराइटिंग की जांच की गई तो ये एक जैसी निकलीं। मतलब साफ था, कोई एक ही शख्स या गैंग इन सब धमकियों और चोरी के लिए जिम्मेदार था। अब पुलिस के पास अपराधी के खिलाफ सबूत के तौर पर उसकी मोटरसाइकल, हैंडराइटिंग सैंपल, रोड फ्लेयर, एक मैगनेट और एक हैट थी जो वो छोड़ गया था।
इसके अलावा पुलिस ने खत का लिफाफा बंद करने के लिए इस्तेमाल किए गए थूक की भी जांच करवाई। इससे उन्हें पता चला की अफराधी का ब्लड ग्रुप B+ था। इतने सारे सबूत होने के बावजूद अपराधी अब तक पुलिस के हाथ नहीं लग पाया था। 7 साल कर पड़ताल के बाद पुलिस की संदिग्धों की लिस्ट में करीब 1.10 लाख लोगों का नाम था।
7 साल केस की पड़ताल में 1.70 लाख पुलिस अधिकारियों को लगाया गया। इस दौरान करीब 900 मिलियन येन खर्च किए गए। ये चोरी हुई रकम का 3 गुना था। 10 दिसंबर, 1975 को आरोप लगाने की सात साल की सीमा समाप्त हो गई। अपराधी जो भी था वो बचकर निकलने में कामयाब रहा।
कई लोगों को हिरासत में लिया गया, लेकिन नहीं मिला असली चोर
इस केस की खास बात ये थी कि इतनी बड़ी चोरी के बावजूद इसमें किसी भी व्यक्ति को शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचा था। तोशीबा कंपनी को जो भी नुकसान हुआ उसकी भरपाई इंश्योरेंस के जरिए हो गई। इसके बाद सभी कर्मचारियों को पूरा बोनस भी मिला। पुलिस ने छानबीन के दौरान कुछ लोगों हिरासत में भी लिया और कुछ को गिरफ्तार भी किया।
हालांकि, कोई भी दोषी साबित नहीं हुआ और उन्हें आखिरकार छोड़ दिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पुलिस को अप्रैल 1969 में एक कार और उसके अंदर टिन के केस भी मिले। पुलिस ने दावा किया कि ये वही कार और बक्से हैं, जिनमें चोर पैसे रखकर ले गया था।
मौका-ए-वारदात पर मौजूद रहे कई चश्मदीदों के बावजूद ज्यादातर लोगों ने यही कहा था कि वो चोर का चेहरा नहीं देख पाए थे। इसके बावजूद पुलिस किसी तरह मशक्कत करके आरोपी का स्केच बनवाने में कामयाब रही। सालों चली पड़ताल के बाद भी पुलिस अपराधी को नहीं पकड़ पाई।
अब सामने आया तो चोर को नहीं मिलेगी सजा
1988 में जापान के इस चोर को किसी भी नागरिक दायित्व से मुक्त कर दिया गया। यानी अब चोर बिना किसी कार्रवाई के डर के आराम से सार्वजनिक तौर पर सामने आ सकता था। उसे अपनी कहानी सुनाने की इजाजत मिल गई। इस तरह, जापान के इतिहास में हुई सबसे बड़ी चोरी का अपराधी अब तक सामने नहीं आया है।