27000 होम बायर्स मुश्किल में, सुपरटेक के चलते बिगड़ेंगे रियल एस्टेट सेक्टर के हालात, जानिए कैसे
Updated on
04-07-2023 08:07 PM
नोएडा : सुपरटेक ग्रुप (Supertech Group) पर मंडरा रहा दिवालिया होने का खतरा शहर के और 27 हजार बायर्स को भंवर में फंसा सकता है। क्योंकि, इससे पहले जो आम्रपाली, जेपी इंफ्राटेक और यूनिटेक दिवालिया हुए हैं, उनकी प्रोग्रेस पर कई तरह के सवाल हैं। आम्रपाली (Amrapali) के प्रॉजेक्टों में सीधे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम हो रहा है, इसलिए आम्रपाली के कुछ बायर्स को राहत मिल रही है। वहीं जेपी इंफ्राटेक की बात करें तो इसमें छह साल का समय सिर्फ यह तय होने में लग गया कि इनके अधूरे प्रॉजेक्ट कौन पूरा करेगा। आपत्तियों का सिलसिला अभी भी बना हुआ है। यूनिटेक (Unitech) की बात करें तो चार साल पहले कोर्ट ने कंपनी का बोर्ड भंग कर दिया था और नए बोर्ड को इसकी जिम्मेदारी दी थी। इसमें चार साल की प्रोग्रेस जीरो है। यहां तक की अभी संशोधित नक्शा तक पास नहीं हो पाया है। अब सवाल यही है कि वेंटिलेटर की स्थिति में पहुंचे सुपरटेक ग्रुप के बायर्स को घर कैसे मिलेंगे। जानकारों का कहना है कि यदि कंपनी दिवालिया हुई तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे। बता दें कि हाल ही में सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा (RK Arora) को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया है। ऐसे में लगातार यह सवाल उठ रहे हैं कि इसमें फंसे 27 हजार बायर्स का भविष्य क्या होगा। क्या यह कंपनी भी अन्य कई कंपनियों की तरह दिवालिया हो सकती है। इसी के चलते आज हम बता रहे हैं कि जो रियल एस्टेट ग्रुप पिछले साल में दिवालिया हुए हैं। उनकी प्रोग्रेस रिपोर्ट क्या है।
आम्रपाली में थोड़ी राहत, टारगेट के मुताबिक 30-35% हुआ काम
बता दें कि 2017 से जिले में रियल एस्टेट कंपनियों के दिवालिया होने की शुरुआत हो गई थी। सबसे पहले आम्रपाली पर यह खतरा छाया था लेकिन पहला केस होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपनी निगरानी में पूरा कराने की जिम्मेदारी ले ली और इसके लिए कोर्ट रिसीवर नियुक्त कर दिया गया था। आम्रपाली में कुल 46 हजार बायर्स फंसे थे, जिनमें 38 हजार के घर बनाकर दिए जाने थे। पिछले पांच साल में 10-12 हजार फ्लैट कोर्ट रिसीवर की निगरानी में तैयार किए गए हैं। जबकि डेललाइन जुलाई 2022 तक सारे फ्लैट तैयार करके देने की रखी गई थी। बीच में दो साल का समय कोविड की वजह से प्रभावित होने से फंसे हुए बायर्स ने तसल्ली रखी हुई है कि चलो आज नहीं तो कल घर मिल जाएगा क्योंकि कभी तेज कभी धीमी रफ्तार से आखिरकार काम चल ही रहा है। हालांकि फंड को लेकर भविष्य की तस्वीर यहां भी साफ नहीं है। आगे यदि फंड जुटाने के रास्ते नहीं साफ हुए तो एक बार आम्रपाली के बायर्स को घर मिलने की उम्मीद के साथ और संघर्ष करना पड़ सकता है।
यूनिटेक में 15 हजार बायर्स फंसे
चार साल पहले 2019 में यूनिटेक का बोर्ड भंग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नए बोर्ड का गठन करने के आदेश दिए थे। आदेश के कुछ महीने बाद नए बोर्ड का गठन हो गया। यूनिटेक में नोएडा-ग्रेनो में करीब 15 हजार बायर्स फंसे हैं। इसके अलावा एनसीआर से गुड़गांव व देश के दूसरे शहरों में लोग फंसे हुए हैं। चार साल से गठित नए बोर्ड की प्रोग्रेस रिपोर्ट यह है कि अभी अधूरे प्रॉजेक्टों में काम होता दिखाई नहीं दे रहा है। फंसा हुआ एक भी फ्लैट पिछले चार साल में पूरा नहीं हो पाया। कागजी प्रक्रिया में थोड़े बहुत काम हुए जिनमें कि संशोधित नक्शा तैयार किया गया लेकिन यह नक्शा अभी अथॉरिटी से पास नहीं हुआ है। बायर्स के साथ दो-चार मीटिंग हुई है अतिरिक्त फ्लैट बनाने के लिए उनकी सहमति ली गई है और कुछ टेंडर भी हुए हैं, लेकिन फंड का इंतजाम और संशोधित नक्शा पास होने का काम जिसपर अतिरिक्त एफएआर मांगा जा रहा है, यह दोनों काम जब तक नहीं होंगे तब तक इसकी प्रोग्रेस आगे नहीं बढ़ पाएगी।
जेपी इंफ्राटेक में 6 साल का वक्त रास्ता तय होने में लग गया
जेपी इंफ्राटेक के बायर्स ने 2016 में अपनी लड़ाई शुरू की थी। आम्रपाली के बाद से जेपी इंफ्राटेक को लेकर भी एनसीएलटी (नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्युनल) और सुप्रीम कोर्ट के बीच में कई साल से यह मामला चल रहा है। 6 साल के बाद कुछ समय पहले यह तय हो पाया है कि फाइनली सुरक्षा कंपनी जेपी इंफ्राटेक के अधूरे प्रॉजेक्टों को पूरा करेगी। हालांकि सुरक्षा के लिए अभी रास्ता पूरा तरह साफ नहीं है। जेपी असोसिएट्स और यमुना अथॉरिटी ने अपनी -अपनी मांगों के मद्देनजर अभी इस मामले में आपत्ति लगा रखी है जिसके चलते जेपी इंफ्राटेक सुरक्षा को हैंडओवर होने और काम शुरू होने में अभी वक्त लगेगा।
सुपरटेक पर दिवालिया का खतरा बढ़ा तो और गंभीर होंगे रियल एस्टेट के हालात
पहले से ही जिले की रियल एस्टेट मार्केट के हालात वेंटिलेटर पर पहुंचने जैसी स्थिति में हैं। अब सुपरटेक की स्थिति भी बिल्कुल वैसी ही होती जा रही है जैसी चार साल पहले यूनिटेक की हुई थी। रियल एस्टेट मामलों के जानकार व थ्रीसी ग्रुप की कंपनी में आईआरपी रह चुके मनीष अग्रवाल का कहना है कि यदि एक दो झटके और लगे तो दिवालिया होने से सुपरटेक लि. को बचा पाना मुश्किल होगा। ऐसे में सबसे ज्यादा संघर्ष बायर्स का ही बढ़ेगा। उसके बाद फंड का नए सिरे से इंतजाम करना और पूरा करने की जिम्मेदारी किसकी होगी यह होने में ही लंबा वक्त निकल जाएगा।
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