नई दिल्ली । कोरोना संकट के दौर में भारत समेत दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं संकट में हैं। भारतीय रिजर्व बैंक इस दौरान बेहद मुस्तैद रहा है और आम लोगों के साथ उद्योग को कई तरह से राहत देकर इस आर्थिक चुनौती से निपटने की कोशिश की है। हालांकि, खुदरा महंगाई की ऊंची दर और कमजोर रुपया उसके लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। रिजर्व बैंक के लिए वर्ष 2021 में भी इस चुनौती से निपटना होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि बॉन्ड पर घटते रिटर्न से विदेशी निवेशक सहम सकते हैं जिन्होंने इस साल भारतीय बाजार में रिकॉर्ड 22 अरब डॉलर का निवेश किया है। वहीं शेयर बाजार को लेकर उम्मीद से अधिक उत्साह भी रिजर्व बैंक की परेशानी बढ़ा सकता है। भारत के शेयर बाजार में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ रहा है और भारतीय रिजर्व बैंक उसे अपने पास समायोजित कर रहा है। इससे मुद्रा भंडार बढ़ रहा है और रुपये की मजबूती पर लगाम लग रही है।इस हस्तक्षेप के दो परिणाम हो रहे हैं। इससे रुपये में मजबूती नहीं आ रही है और बैंकिंग व्यवस्था में नकदी का प्रवाह बढ़ रहा है, जिससे सरकार को रिकॉर्ड 12 लाख करोड़ रुपये बाजार से उधारी लेने में मदद मिल रही है। अब तक यह रणनीति सही रही है। लेकिन अब ज्यादा नकदी और सस्ती दरों से भविष्य में कुछ ढांचागत समस्याएं आ सकती हैं, जिसे लेकर विशेषज्ञों ने चेतावनी देनी शुरू कर दी है। भारतीय शेयर बाजार का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 47 हजार के स्तर को इस साल पार कर चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय शेयर बाजार वर्ष 2005 के समान 28 फीसदी की अग्रिम अनुमानित आय पर ट्रेड कर रहा है। इसका मतलब है कि निवेशकों को 28 फीसदी रिटर्न मिलने की उम्मीद है। विदेशी निवेशकों को इस साल भारतीय बाजार में 22 अरब डॉलर निवेश किया है।विशेषज्ञों का कहना है कि करोना संकट के दौर में निवेशक भारतीय बाजार को लेकर उम्मीद से अधिक उत्साहित हैं। ऐसे में किसी भी वैश्विक संकट की स्थिति में विदेशी निवेशक यदि भारतीय बाजार से पैसा निकलना शुरू कर दें तो वह शेयर बाजार के साथ रिजर्व बैंक के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है। शेयर बाजार में जोरदार तेजी के बावजूद इस साल निफ्टी ने महज 11 फीसदी के करीब रिटर्न दिया है। जबकि एमएससीआई एसी एशिया पैसेफिक इंडेक्स ने 14 फीसदी रिटर्न दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह अंतर आगे भी जारी रहता है तो निवेशक भारतीय बाजार से निकलने शुरू हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में मुश्किलें बढ़ सकती हैं। एशियाई क्षेत्र की ज्यादातर मुद्राएं मजबूत हो रही हैं लेकिन रुपये में इस साल तीन फीसदी गिरावट आई है। कोरोना संकट में कुछ समय तक रुपये में तेजी देखी गई थी। लेकिन अब इसमें गिरावट का दौर शुरू हो चुका है। आंकड़ों के मुताबिक इस साल भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और विलय एवं अधिग्रहण से 30 अरब डॉलर का प्रवाह हुआ है। वहीं इस दौरान इस कैलेंडर वर्ष में विदेशी भंडार बढ़कर 579 अरब डॉलर हो गया है। इसके बावजूद डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट चिंता पैदा करने वाली है। मुद्रा विशेषज्ञों का कहना है कि इससे आयात सस्ते हो सकते हैं। लेकिन निर्यातकों को मुश्कलों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा विदेशी निवेशक भी इसे अर्थव्यवस्था का चुनौती मानकर सहम सकते हैं जो परेशानी का सबब बन सकता है।
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