पाकिस्तान के राष्ट्रपति बड़ी मुसीबत में फंसे, दोनों विधेयक बन चुके हैं कानून, सेना के खिलाफ साजिश फेल!
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21-08-2023 12:29 PM
इस्लामाबाद: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के करीबी राष्ट्रपति आरिफ अल्वी की वजह से देश में घमासान मचा हुआ है। अल्वी ने दावा किया है कि उन्होंने हाल ही में बने दो ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट और आर्मी एक्ट में संशोधन से जुड़े विधेयकों पर साइन करने से इनकार कर दिया था। उनके इस दावे को कार्यवाहक कानून मंत्री इरफान असलम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर झुठला दिया है। वहीं, सूचना मंत्री मुर्तजा सोलांगी ने राष्ट्रपति के रुख को खारिज कर दिया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि बिल वापस किए गए हैं या नहीं। इस पूरे मामले को करीब से देखने वाले जानकारों की मानें तो सच और झूठ तो कोई नहीं जानता है लेकिन कहीं न कहीं यह पाकिस्तान की सेना के लिए बड़ा झटका है।
क्या कहता है संविधान अमेरिका स्थित हडसन इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हुसैन हक्कानी ने इस पर एक्स (पहले ट्टिवर) पर अपनी राय रखी है। हक्कानी, अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत भी रहे हैं। हक्कानी ने राष्ट्रपति अल्वी के दावे को एक प्रकार का छल कपट करार दिया है। उन्होंने पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 75 का हवाला दिया है। हक्कानी ने ट्विटर पर लिखा कि जब कभी भी कोई विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए उनके पास लाया जाता है तो विधेयक पर सहमति दे या फिर मनी बिल के अलावा किसी और विधेयक के मामले में, उसे मजलिस-ए-शूरा (संसद) को एक संदेश के साथ लौटाएं। इसमें अनुरोध किया जाए कि विधेयक, या उसके किसी एक खास प्रावधान पर पुनर्विचार किया जाए और इसमें किसी भी संशोधन से जुड़े संदेश पर विचार किया जाए।
राष्ट्रपति बोले-नहीं किए साइन जब राष्ट्रपति ने किसी विधेयक पर सहमति दे दी है या माना जाता है कि उन्होंने सहमति दे दी है, तो वह कानून बन जाएगा। फिर यह संसद का अधिनियम कहा जाएगा। हक्कानी ने एक और ट्टवीट में लिखा कि यहां पर राष्ट्रपति अल्वी चालाकी से खेल रहे हैं। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि अगर राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए विशिष्ट सिफारिशों के साथ 10 दिनों के अंदर बिल नहीं लौटाते हैं तो इसे मंजूरी माना जाएगा। इसके लिए किसी हस्ताक्षर की जरूरत नहीं है। राष्ट्रपति अल्वी का कहना है कि उन्होंने इन दोनों ही विधेयकों पर साइन नहीं किए हैं। फिर भी विधेयक बने कानून पाकिस्तान के कानून मंत्री असलम ने भी इसी अनुच्छेद का हवाला दिया है। दोनों विधेयकों पर सरकार की कानूनी और संवैधानिक स्थिति बताते हुए असलम ने कहा कि सरकार को राष्ट्रपति से दोनों में से कोई भी विधेयक प्राप्त नहीं हुआ है। ऐसे में ये दोनों ही विधेयक अब कानून बन चुके हैं। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 75 के तहत, राष्ट्रपति के पास केवल दो विकल्प हैं, या तो वह किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करें या उसे अस्वीकार करें। अस्वीकार करने की स्थिति में उन्हें बिल को बिना हस्ताक्षर किए वापस करने का कारण बताना होगा।' उन्होंने आगे कहा कि अगर राष्ट्रपति दो विकल्पों में से किसी का भी फायदा नहीं उठाते हैं तो 10 दिनों के बाद एक विधेयक कानून बन जाता है।
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