भीषण गर्मी में राहगीर को ठंडक और सुकून देते हैं, अमलतास के कुदरती स्वर्णिम झूमर
Updated on
05-05-2024 12:51 PM
जेठ मास की झुलसाती गर्मी में सड़कों पर मानो लू जनित कर्फ्यू का राज है। ऐसे में अपनी डालियों पर स्वर्णिम छटा को समेटे, सूरज की रोशनी में कंचन की मानिंद दमकते पीले फूलों से लदे, इठलाते-इतराते अमलतास के वृक्ष पर दृष्टि पड़ते ही मन में यह सवाल सहज ही सर उठाता है कि सड़के सभी वीरान फिर किसके स्वागत में पीताम्बर पसारे आतुर हो अमलतास तुम। इस प्रश्न के उत्तर में अमलतास कहता है, मेरे स्वर्णिम फूल तुम्हारे जीवन को महकाते हैं, हँसते-हँसते जीना सीखो, यह तुमको समझाते हैं। उजियारे सपने अपनी आँखों में पलने दो, अपने रोम-रोम में अमलतास को खिलने दो।
परम पिता ब्रम्हा द्वारा रचित यह सृष्टि अपने आप में परिपूर्ण है। प्रकृति के आंचल में हर समय कुछ न कुछ ऐसा होता है जो प्राणीमात्र को राहत देने वाला होता है। इन दिनों आसमान से बरस रही तपती-जलती गर्मी में जब ज्यादातर फूलों के पौधे मुरझा जाते हैं और पेड़ पत्तियां तक छोड़ देते हैं ऐसे भीषण समय में अमलतास लाजवाब शोखी के साथ भरपूर शबाब पर होता है। जहां एक ओर सब कुछ सूखा-सूखा, वीरान, बंजर-बियाबान सा नजर आता है, वहीं अमलतास के पेड़ों पर स्वर्णिम आभा बिखरते झूमरों की तरह लटके हुए पीले फूलों के आकर्षक गुच्छे मन को लुभाने के साथ ही आंखों को ठंडक प्रदान करते है।
अमलतास यूं तो मूल रूप से दक्षिण एशिया, दक्षिणी पाकिस्तान और भारत की प्रजाति है, लेकिन अमेरिका, म्यामार, श्रीलंका, बर्मा, थाईलेन्ड, वेस्टइंडीज़ में भी बहुतायत से पाया जाता है। फरवरी-मार्च में इसकी पुरानी पत्तियां झड़ जाती हैं और अप्रेल-मई में नई पत्तियों के साथ अमतास की सूखी टहनिया फूलों से लद जाती हैं। इसके अद्भुत सौंदर्य के चलते इसे गरमाल, राजवृक्ष, स्वर्णांश, बहावा, कोनराई जैसे कितने ही अलंकारिक नामों से पुकारा जाता है। अंग्रेज़ी में इसे गोल्डन शावर या गोल्डन ट्री भी कहा जाता है। अमलतास का वानस्पतिक नाम कैसिया फिस्टुला है। आयुर्वेद में इसे स्वर्ण वृक्ष या कंचन वृक्ष नाम दिया गया है।
सिर्फ खूबसूरत फूल ही इसकी खासियत नहीं है बल्कि यह पेड़ औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है। इस पेड़ के फल, फूल, पत्ती, बीज, छाल, जड़ आदि सभी का औषधीय रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके पत्तों और फूलों में ग्लाइकोसाइड, तने की छाल में 10 से 20 प्रतिशत टैनिन, जड़ की छाल में टैनिन के अलावा ऐन्थ्राक्विनीन, फ्लोवेफिन मौजूद है। अमलतास के बीज में २४ प्रतिशत प्रोटीन, ५१ प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट व क़रीब ४ से ५ प्रतिशत वसा होता है। कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन के सही संतुलन का कारण ऐसा माना जाता है कि यह शरीर को सही अनुपात में ऊर्जा प्रदान करता है तथा शरीर को इससे अच्छी ताक़त भी मिलती है।
आयुर्वेद के अनुसार अमलतास के रस में मधुरता, तासीर में ठंडक, स्वादिष्ट, कफ नाशक, पेट साफ करने वाला है। साथ ही यह ज्वर, दाह, हृदय रोग, रक्तपित्त, वात व्याधि, शूल, गैस, प्रमेह एवं मूत्र कष्ट नाशक होता है। यह ज्वर, प्रदाह, गठिया रोग, गले की तकलीफ, दर्द, रक्त की गर्मी शांत करने में और नेत्र रोगों में उपयोगी माना जाता है। इसका पाचन तंत्र पर बहुत ही अच्छा असर देखा गया है। बीजों के आस-पास लगा गूदा पेट साफ़ करने के लिए दवा के रूप में प्रयोग में आता है। छोटे बच्चों को अमलतास के बीज पीस कर दिए जाते हैं जिससे उनके पेट में गैस उपजाने की समस्या नहीं होती तथा हाज़मा भी ठीक रहता है। अमलतास का गूदा पथरी, मधुमेह तथा दमे के लिए अचूक दवा के रूप में माना जाता है। यह एक अच्छा दर्द निवारक है साथ ही साथ रक्त शोधक के रूप में भी इसकी अलग पहचान है। गर्मीयों में त्वचा की जलन को कम करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता हैं। इसकी अनुपम सुंदरता तथा चमत्कारिक औषधीय गुणों को ध्यान में रखते हुए भारतीय डाकतार विभाग ने 1 सितंबर 1981 को और 20 नवंबर 2000 को अमलतास की मनमोहक तस्वीर वाले डाक टिकट भी जारी किए थे।
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