नई दिल्ली। भारत में कोरोना वैक्सीन के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ सीरम इंस्टीट्यूट ने करार किया है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (सीआइआइ) के सीईओ अदार पूनावाला ने बताया कि एस्ट्राजेनेका से वैक्सीन की 10 करोड़ डोज का समझौता किया गया है। तीसरे दौर का ट्रायल सफल रहने के बाद अगर वैक्सीन को ब्रिटेन के ड्रग रेगुलेटर से आपात मंजूरी मिलती है तो जल्द ही यह वैक्सीन भारत में उपलब्ध हो सकती है।
अनुमान है कि ब्रिटेन में इस वैक्सीन को दिसंबर तक मंजूरी मिल जाएगी। इसके बाद भारत में भी इसके आपातकालीन उपयोग पर विचार किया जा सकता है। अदार पूनावाला के अनुसार कोविशिल्ड की न्यूनतम 100 मिलियन खुराक भारत को जनवरी तक उपलब्ध हो जाएगी। सीआइआइ के सीईओ पूनावाला ने यह भी बताया कि फरवरी के अंत तक इस वैक्सीन की सैकड़ों मिलियन डोज तैयार की जा सकती हैं।
खुशी की बात है कि यह कोरोना वैक्सीन परीक्षण में 90 फीसदी तक असरदार साबित हुई है। जल्द ही यह व्यापक रूप से सभी के लिए उपलब्ध करा दी जाएगी। मालूम हो कि भारत में सीरम इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर बनाई जा रही ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोरोना संक्रमण से बचाव में 70 फीसदी तक असरदार साबित हुई है। तीसरे फेज के ट्रायल के बाद सोमवार को यह ऐलान किया गया है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने कहा आज हम लोगों ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अहम पड़ाव पार कर लिया है। अगर दो तरह के डोज रेजीमेन को मिला लेते हैं तो तीसरे चरण के अंतरिम आंकड़े बताते हैं कि वैक्सीन 70.4 फीसदी तक प्रभावी है। दो डोज (एक महीने के अंतराल के दौरान पहली आधी-दूसरी पूरी) के रेजीमेन में यह 90 फीसदी तक असरकारक रही जबकि एक महीने के अंतराल में दो पूरी डोज देने पर 62 फीसदी असरदार रही। दोनों तरह के डोज के आंकड़े एक साथ रखने पर यह वैक्सीन 70 फीसदी असरदार रही।
ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के डायरेक्टर और ट्रायल चीफ एंड्रयू पोलार्ड के मुताबिक, ब्रिटेन और ब्राजील में वैक्सीन के जो नतीजे आए हैं, उससे यह उम्मीद बंधी है कि यह वैक्सीन हजारों जिंदगी बचा सकती है। उन्होंने बताया कि डोज के चार पैटर्न में से एक में अगर वैक्सीन की पहली डोज आधी दी जाए और दूसरी डोज पूरी तो यह 90 फीसदी तक असर कर सकती है। एस्ट्राजेनेका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से अनुरोध किया है कि वह कम आय वाले देशों में इसके आपात उपयोग की मंजूरी दे।
ट्रायल में बीस हजार से अधिक वालंटियर शामिल थे। इनमें से आधे ब्रिटेन और आधे ब्राजील के थे। परीक्षण के दौरान देखा गया कि जब वालंटियर को दो हाई डोज दी गई तो यह 62 फीसदी असरदार रही। हालांकि जब कम खुराक दी गई तो 90 फीसदी तक असरकारक रहीं। अभी यह पता नहीं चल सका है कि यह अंतर क्यों है। ऑक्सफोर्ड वैक्सीन को एक वायरस से बनाया गया है। जिसका उपयोग वैक्सीन बनाने में किया गया है, वह कॉमन कोल्ड वायरस (एडेनोवायरस) का जेनेटिकली इंजीनियर्ड संस्करण है।
एडेनोवायरस के टीकों पर न केवल दशकों तक बड़े पैमाने पर शोध किया गया है बल्कि उपयोग भी होता रहा है। इस तरह से बनाई गई वैक्सीन का लाभ यह है कि इसे घरेलू फ्रीज के तापमान (दो से आठ डिग्री सेल्सियस) पर रखा जा सकता है। अगर इसकी तुलना फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन से करें तो यह न केवल सस्ती होगी बल्कि इसे दो से आठ डिग्री सेल्सियस पर रखा भी जा सकता है। इससे वैक्सीन के वितरण में भी आसानी होगी। फाइजर की वैक्सीन को रखने के लिए माइनस 75 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होगी। जबकि मॉडर्ना वैक्सीन की बात करें तो इसे दो से आठ डिग्री (फ्रीज के तापमान) सेल्सियस पर 30 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। हालांकि अगर इसे छह महीने तक सुरक्षित रखना है तो तापमान माइनस 50 से 60 डिग्री होना चाहिए।