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संपत्ति का अधिकार एक मूल्यवान संवैधानिक अधिकार - सुप्रीम कोर्ट

Updated on 26-11-2020 01:31 AM

नई दिल्ली बेंगलूरू में भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट  ने फैसला देते हुए कहा कि संपत्ति का अधिकार एक मूल्यवान संवैधानिक अधिकार  है। सुप्रीम कोर्ट ने 33 साल बाद मालिक को जमीन दिलाई। मामले में तीन महीने में केंद्र सरकार को जमीन वापस करने के आदेश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा, संपत्ति का अधिकार एक मूल्यवान संवैधानिक अधिकार है। सरकारें यह नहीं कह सकती कि उन्हें किसी भी कानून के बिना किसी की संपत्ति पर कब्जा करने का अधिकार है।किसी भी कानून  के बिना सरकार को किसी संपत्ति पर अधिकार जारी रखने की अनुमति देना अराजकता को माफ करने जैसा है। अदालत की भूमिका लोगों की स्वतंत्रता के गारंटर और चौकन्ने रक्षक के रूप में कार्य करने की है।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को तीन महीने के भीतर बेंगलुरु में 2 एकड़ और 8 गुंटा की जमीन उसके मालिक को सौंपने का निर्देश दिया जो शहर में प्रमुख स्थान पर है। सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि जमीन रखने के लिए मालिक, केंद्र से मुआवजे का दावा कर सकता है। अदालत ने कहा है कि अगर मालिक मुआवजे के लिए मध्यस्थता पर आगे बढ़ता है तो इसे 6 महीने के भीतर तय किया जाना चाहिए। पीठ ने केंद्र को कानूनी कार्यवाही की लागत के लिए मालिक को 75,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट  ने कहा कि हालांकि संपत्ति का अधिकार भारत के संविधान के भाग तीन के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार नहीं है लेकिन फिर भी यह एक मूल्यवान संवैधानिक अधिकार है।

दरअसल यह संपत्ति 1964 में मुआवजे को तय करके रक्षा उद्देश्यों के लिए केंद्र द्वारा ली गई थी। यह मामला दो बार कर्नाटक हाईकोर्ट में गया और अदालत ने हालांकि केंद्र के खिलाफ कहा कि सरकार के दावे की कोई योग्यता नहीं है,लेकिन मालिक को भूमि सौंपने से इनकार कर दिया क्योंकि ये जमीन केंद्र द्वारा रक्षा उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की रही थी। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एस।रवींद्र भट ने ये फैसला सुनाया।

फैसले में कहा गया कि हाईकोर्ट ने भूमि मालिक को राहत देने से इनकार करने में त्रुटि की। अदालत ने कहा कि किसी को इस तरह से किसी को संपत्ति से दूर रखने के लिए 33 साल भारत में भी एक लंबा समय है, इसलिए, यह अब राज्य के लिए खुला नहीं है। अपने किसी भी रूप (कार्यपालिका, राज्य एजेंसियों, या विधायिका) में यह दावा करने के लिए कि कानून या संविधान को अनदेखा किया जा सकता है, या अपनी सुविधा पर अनुपालन किया जा सकता है। चाहे यह संघ हो या कोई राज्य सरकार, किसी दूसरे की संपत्ति (कानून की मंज़ूरी के बिना) पर कब्जा करने के लिए अनिश्चितकालीन या ओवरराइडिंग अधिकार है, ये  अराजकता को माफ करने से कम नहीं है। अदालतों की भूमिका लोगों की स्वतंत्रता की गारंटर और चौकन्ना रक्षक के रूप में कार्य करना है। अदालत द्वारा किसी भी तरह की माफी ऐसे गैरकानूनी कार्यपालिका के व्यवहार का एक सत्यापन है जो इसे  किसी भी भविष्य के उद्देश्य से, भविष्य में किसी भी प्राधिकारी के हाथ में "सशस्त्र हथियार" के रूप में तैयार करेगा।


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