पाकिस्तान को भारी पड़ी चीन के साथ दोस्ती, सीपीईसी से कैसे कर्ज के दलदल में फंसा जिन्ना का देश, समझें
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07-08-2023 02:00 PM
कराची: पाकिस्तान और चीन इस समय अपने एक दशक पुराने आर्थिक सहयोग का जश्न मना रहे हैं। आज से 10 साल पहले चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) को लॉन्च किया गया था। सीपीईसी को पाकिस्तान के लिए एक गेम चेंजर कहा गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि जहां मेगा-प्रोजेक्ट ने पाकिस्तान के लिए बड़ा बुनियादी ढांचा विकसित करने में मदद की तो इस प्रोजेक्ट की वजह से देश का खराब मैनेजमेंट और ज्यादा खराब हो गया। विशेषज्ञों की मानें तो चीन से प्रोजेक्ट के लिए मिलने वाले कर्ज के कारण आज सीपीईसी ही पाकिस्तान की बदहाली की वजह बन गया है। क्या कहते हैं सरकार के आंकड़ें सीपीईसी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट बेल्ड एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा है। सीपीईसी को साल 2013 में 45 बिलियन डॉलर से ज्यादा के निवेश के साथ लॉन्च किया गया था। आज यह प्रोजेक्ट 62 अरब डॉलर का हो गया है। दोनों देशों की सरकारों के अनुसार पाकिस्तान में कम से कम 25 अरब डॉलर का निवेश हो चुका है। इस्लामाबाद स्थित पाकिस्तान-चीन इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक मुस्तफा हैदर सईद ने बताया कि यह प्रोजेक्ट इस समय पाकिस्तान के लिए एक महत्वपूर्ण समय पर है। पाकिस्तानी सरकार के आंकड़ों पर अगर यकीन करें तो सीपीईसी ने अब तक दो लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा की हैं।
शहबाज बोले, दोस्ती का नतीजा सरकार की मानें तो इसकी वजह से देश में 1,400 किलोमीटर से ज्यादा हाइवे और सड़कों का निर्माण हुआ है और साथ ही साथ नेशनल ग्रिड को 8,000 मेगावाट बिजली भी मिली है। पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुसार ग्वादर बंदरगाह, जो सीपीईसी का सेंटर है, वहां से पिछले 18 महीनों में 600,000 टन माल लोड-अनलोड हुआ है। इस हफ्ते सीपीईसी के एक दशक का जश्न मनाते हुए एक कार्यक्रम में, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इसे गेम-चेंजर कहा। शरीफ ने कहा, "यह दूरदर्शिता, प्रतिबद्धता और दोस्ती का नतीजा है।' आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देन के लिए पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्राप्त करने वाले चीनी उपप्रधान मंत्री हे लिफेंग ने भी इस प्रोजेक्ट की जमकर तारीफ की।
क्या है विशेषज्ञों की राय
देश के विशेषज्ञ इससे अलग राय रखते हैं। पाकिस्तान, सीपीईसी का केंद्र बिंदु है मगर यह बात भी सच है कि देश पर भारी विदेशी कर्ज है। इसमें से करीब एक तिहाई चीनी कर्ज है। रिसर्च से पता लगता है कि चीनी निवेश, जो काफी हद तक गोपनीय है, सस्ता नहीं है।अमेरिका स्थित रिसर्च लैब एडडाटा की साल 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 और 2017 के बीच पाकिस्तान को ज्यादातर चीन से कर्ज मिला था न कि कोई ग्रांट और वह भी पूरी तरह से वाणिज्यिक दरों पर उसे दिया गया था।
ज्यादा कीमत पर मिला कर्ज पाकिस्तान के अर्थशास्त्री अम्मार हबीब खान, जो वाशिंगटन स्थित अटलांटिक काउंसिल के एक सीनियर फेलो हैं कहते हैं कि वित्तीय बोझ का आंशिक कारण यही है कि पाकिस्तान सीपीईसी के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने कहा कि सीपीईसी का एक बड़ा काफी ऊंची लागत पर आया था और उस उधारी का एक बड़ा हिस्सा डॉलर के रूप में था। बाजार की तुलना में यह बहुत ज्यादा था। इसकी वजह से पाकिस्तान ने चीन को कर्ज के तौर पर डॉलर में भुगतान करना जारी रखा। इस वजह से आज देश में चालू खाता संकट और कुछ गंभीर कर्ज के मसले बने हुए हैं। एडडाटा रिपोर्ट के अनुसार, चीनी ऋण शर्तें पश्चिमी देशों की तुलना में ज्यादा कठोर हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान के लिए पश्चिमी फंडिंग की कमी के कारण और कोई विकल्प भी नहीं बचा है।
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