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भारत से पहले पाकिस्तानी 'इसरो' ने लॉन्‍च किया था रॉकेट, आज इंडिया चांद पर, कैसे फेल हुआ जिन्‍ना का देश

Updated on 24-08-2023 12:52 PM
इस्लामाबाद: भारत के चंद्रयान-3 की सफलता ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है। पाकिस्तान में भी भारत के चंद्रयान-3 मिशन की खूब चर्चा हो रही है। बड़ी संख्या में पाकिस्तानी भारत की इस सफलता पर बधाई दे रहे हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी हैं, जो चंद्रयान-3 को लेकर पाकिस्तानी अंतरिक्ष एजेंसी SUPARCO पर निशाना साध रहे हैं। बहुत कम लोगों को पता होगा कि पाकिस्तान के SUPARCO ने भारत के इसरो से पहले अंतरिक्ष में अपना रॉकेट लॉन्च किया था। हालांकि, बाद में इसरो ने धीरे-धीरे तरक्की के पायदान चढ़ते हुए खुद को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष एजेंसियों में शुमार किया है। आज पूरी दुनिया भारत के रॉकेट से अपने सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए लाइन लगाकर खड़ी है। वहीं, पाकिस्तान आज भी अपनी मुफलिसी और गरीबी के राग अलाप रहा है।


अंतरिक्ष में पाकिस्तान की किस्मत कैसे जागी

दरअसर, पाकिस्तान ने खुद-ब-खुद अंतरिक्ष की दुनिया में कदम नहीं रखा था, बल्कि इसके पीछे अमेरिका का हाथ था। 1960 के दशक में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने ऐलान किया कि अमेरिका चंद्रमा पर इंसान को भेजेगा और उसे वापस भी लाएगा। उनके ऐलान के बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सामने सबसे बड़ी समस्या पैदा हो गई और वह थी हिंद महासागर के ऊपर के वायुमंडल के डेटा की। अमेरिका ने इसके लिए पाकिस्तान को चुना, क्योंकि जिन्ना के सपनों का यह देश उस वक्त अमेरिका की गोद में बैठा हुआ था, वहीं भारत का रूस के साथ घनिष्ठ संबंध था। केनेडी के इस ऐलान से पाकिस्तानी अंतरिक्ष कार्यक्रम की किस्मत चमक उठी।

अमेरिका ने की थी पाकिस्तान की मदद

1961 में पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह जनरल अयूब खान अमेरिका दौरे पर गए। उनके साथ पाकिस्तान के सबसे वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुल सलाम भी थे, जो पहले से ही अमेरिका में मौजूद थे। अब्दुल सलाम उस वक्त पाकिस्तानी परमाणु ऊर्जा आयोग से जुड़े थे और ट्रेनिंग के लिए अमेरिका में थे। इस दौरे से अमेरिका के राजनीतिक गलियारे में डॉक्टर अब्दुल सलाम की पहचान बढ़ी और इसका फायदा उन्हें नासा के साथ संबंध विकसित करने में मिला। उसी दौरान अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने डॉक्टर अब्दुल सलाम को बुलाया और कहा कि उनके पास हिंद महासागर के ऊपर के वायुमंडल का डेटा नहीं है। नासा ने पाकिस्तान के सामने पेशकश की कि वह उसे अपनी रॉकेट टेक्नोलॉजी देने को तैयार है, बशर्ते उससे जो डेटा मिलेगा उसे नासा के साथ साझा करना होगा।


पाकिस्तान ने कब लॉन्च किया पहला रॉकेट

पाकिस्तान नासा की इस पेशकश को नकार नहीं सका और अंतरिक्ष कार्यक्रम में शामिल होने के लिए हामी भर दी। फिर क्या था, पाकिस्तान के SUPARCO ने 9 महीने के अंदर अपना पहला रॉकेट तैयार कर लिया और उसे लॉन्च भी कर दिया। पाकिस्तान का पहला रॉकेट रहबर-ए-अव्वल 7 जून 1962 को बलूचिस्तान के सोनमियानी से रात आठ बजे लॉन्च किया गया था। इसी के साथ पाकिस्तान मुस्लिम दुनिया सहित दक्षिण एशिया में रॉकेट लॉन्च करने वाला पहला देश बन गया। इसके एक साल बाद भारत ने अपना पहला रॉकेट बनाया था।

फेल कैसे हुआ पाकिस्तान का अंतरिक्ष कार्यक्रम

पाकिस्तान शुरू में तो अमेरिका की मदद से अंतरिक्ष में महाशक्ति बनने का सपना देखता रहा। बाद में उसे पता चला कि बिना खुद की कोशिश के वह अंतरिक्ष के क्षेत्र में कुछ नहीं कर सकता। लेकिन, पाकिस्तान के अंदरूनी हालात ऐसे नहीं थे, जिससे वह अपना ध्यान अंतरिक्ष कार्यक्रम पर दे सके। पाकिस्तान में अस्थिर सरकारों का दौर आता रहा। बीच-बीच में पाकिस्तानी सेना ने तख्तापलट कर रही-सही कसर पूरी कर दी। आजादी के बाद से ही पाकिस्तान का पूरा ध्यान खुद को सैन्य शक्ति बनाने पर ज्यादा रहा। उसे लगता था कि वह युद्ध में भारत को हराकर कश्मीर पर कब्जा कर सकता है। इस कारण पाकिस्तान ने अपनी सैन्य जरूरतों पर जमकर पैसे खर्च किए, लेकिन अंतरिक्ष कार्यक्रम से दूरी बनाता गया। आज हालात यह है कि पाकिस्तान खुद के दम पर एक सैटेलाइट तक नहीं लॉन्च कर सकता है।

मिसाइल बनाने पर पाकिस्तान का ध्यान

विज्ञान मामलों के जानकार पल्लव बागला ने बीबीसी से बात करते हुए कहा था कि पाकिस्तानी स्पेस प्रोग्राम इसलिए फेल हुआ, क्योंकि उनका ध्यान डगमगा गया था। भारत और पाकिस्तान दोनों ने अमेरिका की मदद से अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की थी। अंतर यह रहा कि पाकिस्तान में अंतरिक्ष कार्यक्रम को मिलने वाला सरकारी समर्थन घटता चला गया और इसके विपरीत भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम को जबरदस्त बढ़ावा मिला। 2019 में भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम का बजट करीब सवा अरब डॉलर था, जो पाकिस्तान की तुलना में करीब 60 फीसदी अधिक था। 1980 के दशक में पाकिस्तान के मशहूर वैज्ञानिक मुनीर अहमद खान ने तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के साथ मिलकर पाकिस्तानी अंतरिक्ष एजेंसी में नई जान फूंकने की कोशिश थी। इसके लिए बड़े पैमाने पर फंड जारी किए गए, लेकिन पाकिस्तान का फोकस अपने रक्षा उद्योग पर चला गया।


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