नई दिल्ली । देश की शीर्ष अदालत ने कहा है कि हर कोई को इलाज के लिए दवाओं का पर्चा लिखने की इजाजत नहीं दी जा सकती। शीर्ष कोर्ट ने यह टिप्पणी केरल हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए की है। हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया है कि आयुष चिकित्सक सरकार द्वारा स्वीकृत रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं लेने की सलाह दे सकते हैं। ये दवाएं कोविड-19 महामारी से बचाव में प्रभावी मानी गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को मामले में एक सप्ताह में सरकार का पक्ष पेश करने का निर्देश दिया।
पीठ ने मेहता से पूछा- क्या आयुष मंत्रालय (आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी और होम्योपैथी) ने दवाओं की सलाह देने के लिए कोई दिशानिर्देश जारी किया है। अगर दिशानिर्देश जारी किया गया है तो उसकी प्रतिलिपि भी पीठ के समक्ष पेश की जाए। पीठ में शामिल जस्टिस आरएस रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा, सभी को दवाओं का नुस्खा लिखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं लेने की सलाह दी जा सकती है। लेकिन ये दवाएं इलाज के लिए नहीं दी जा सकती हैं। केरल हाईकोर्ट ने जिस याचिका पर आदेश जारी किया है, उसमें राज्य सरकार को आयुष मंत्रालय की छह मार्च को जारी अधिसूचना के अनुसार होम्योपैथी चिकित्सकों को चिकित्सा की अनुमति देने के लिए आदेश जारी करने की मांग की गई थी। केंद्रीय आयुष मंत्रालय की अधिसूचना में कोरोना वायरस के संक्रमण के इलाज में होम्योपैथी दवाओं को भी शामिल करने की सलाह दी गई है। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय ने जो दवाएं प्रस्तावित की हैं, राज्य सरकार उन्हें मुफ्त में लोगों को उपलब्ध कराए। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी लिखा है कि सरकार की चिकित्सा व्यवस्था में कार्यरत आयुष चिकित्सकों से उम्मीद नहीं की जाती है कि वे कोविड-19 के इलाज के लिए दवाएं नहीं लिख रहे होंगे। हाईकोर्ट ने 21 अगस्त को आदेश दिया था।