नई दिल्ली. वेटरन उद्योगपति रतन टाटा के जाने के बाद उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को टाटा ट्रस्ट की कमान सौंप दी गई. नोएल टाटा को टाटा के दोनों प्रमुख ट्रस्ट का चेयरमैन बना दिया गया है. इसका मतलब है कि पूरा टाटा समूह अब उनके कंट्रोल में होगा. लेकिन, टाटा समूह की जो कंपनी ग्रुप की सभी कंपनियों पर नियंत्रण रखती है, उसके चेयरमैन नोएल टाटा कभी नहीं बन सकते. टाटा संस ही ऐसी कंपनी है, जो टाटा समूह की दर्जनभर से ज्यादा कंपनियों पर नियंत्रण रखती है. लेकिन नोएल टाटा इस कंपनी यानी टाटा संस के चेयरमैन नहीं बन सकते हैं.
नोएल टाटा के टाटा संस का चेयरमैन बनने की राह में पहली बार रोड़ा नहीं आया है, करीब 13 साल पहले भी ऐसा ही कुछ हुआ था जब उन्हें टाटा संस का शीर्ष पद नहीं मिल सका था. टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, साल 2011 में इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि रतन टाटा के टाटा संस का चेयरमैन पद छोड़ने के बाद नोएल को इसकी जिम्मेदारी दे दी जाए. लेकिन, तब यह पद नोएल टाटा के साले साइरस मिस्त्री को दे दिया गया था. इसके बाद साल 2019 में जब सर रतन टाटा ट्रस्ट में उन्हें ट्रस्टी बनाया गया तब भी उनके टाटा संस के चेयरमैन बनाने की हवा चली थी, फिर 2022 में उन्हें सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट का भी ट्रस्टी बनाया गया, लेकिन टाटा संस के चेयरमैन का पद उनसे दूर ही रहा.
2 साल पहले ही बन गया कानून
रतन टाटा के रहते हुए नोएल को टाटा संस का चेयरमैन बनने का मौका नहीं मिला और साल 2022 में रतन टाटा की अगुवाई में टाटा समूह ने बाकायदा एक कानून पारित कर दिया. अब जबकि नोएल टाटा इस समूह की अगुवाई कर रहे हैं तो उनके पास एक बार फिर टाटा संस का चेयरमैन बनने का मौका था, लेकिन अब उनकी राह में साल 2022 में बनाया कानून दीवार बनकर खड़ा हो गया है.
क्या है टाटा का कानून
हितों के टकराव को रोकने के लिए टाटा संस ने साल 2022 में अपने आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन में बदलाव कर दिया था. इसके तहत टाटा ट्रस्ट और टाटा संस दोनों का चेयरमैन एक समय में कोई एक व्यक्ति नहीं हो सकता है. जाहिर है कि नोएल टाटा अभी टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन हैं और इस कानून की वजह से उन्हें टाटा संस का चेयरमैन नहीं बनाया जा सकता है. आपको बता दें कि रतन टाटा दोनों ही संस्थाओं के एकसाथ चेयरमैन रहने वाले टाटा परिवार के आखिरी सदस्य थे.
क्यों इतनी महत्वपूर्ण है टाटा संस
सबसे पहले तो आपको यह बता दें कि टाटा संस टाटा समूह की सभी कंपनियों की होल्डिंग संस्था है. इसका मतलब है कि टाटा संस की इन सभी कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी है. यह तो हुई एक बात, अब दूसरी जरूरी बात ये है कि टाटा ट्रस्ट की टाटा संस में 66 फीसदी हिस्सेदारी है. इस लिहाज से देखा जाए तो टाटा ट्रस्ट का चेयरमैन पूरे समूह पर कंट्रोल रखता है, लेकिन समूह की कंपनियों में सीधे दखल देने की पावर टाटा संस के चेयरमैन के पास होती है. यही वजह है कि रतन टाटा ने ऐसा कानून बनाया था कि दोनों पदों को एकसाथ एक ही व्यक्ति न रखने पाए.