अमरुल्लाह सालेह का इशारा क्या कहता है?
उन्होंने पाकिस्तान की सख्त आलोचना करते हुए कहा कि "भारत ने जो किया वह कायरता से बिल्कुल भी नहीं था"। उन्होंने कहा कि "मुझे यह हैरान करने वाला लगता है कि पाकिस्तान इसे 'बुजदिलाना' हमला कहता है, यह शब्द छिपे हुए आतंकवादी हमलों, आत्मघाती बम विस्फोटों, दूसरों का गंदा काम करने और छिपे हुए और दुर्भावनापूर्ण एजेंडे से प्रेरित होने के लिए आरक्षित है।" उन्होंने कहा कि "भारत ने जो किया वह कायरता से बिल्कुल भी नहीं था - यह एक साहसी, स्पष्ट हमला था।" उन्होंने आगे कहा, "दिल्ली ने सैन्य वर्दी में और कुरैशी नामक एक अधिकारी (कुरैश वह जनजाति है जिससे पैगंबर मोहम्मद संबंधित थे) के माध्यम से इसे (ऑपरेशन सिंदूर) करने की जिम्मेदारी ली।"
आपको बता दें कि अमरुल्लाह सालेह, तालिबान के काबुल पर कब्जा करने से पहले राष्ट्रपति अशरफ गनी के उप राष्ट्रपति थे। अमरुल्लाह सालेह अभी भी तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहे हैं। वो भारत के समर्थक हैं और उन्होंने आगे कहा कि "जब वे सत्ता में थे, तो वे क्वेटा शूरा या अफगानिस्तान में अन्य आतंकी संगठनों के खिलाफ "सिंदूर-शैली" के ऑपरेशन को अंजाम देना चाहते थे।" उन्होंने कहा कि "काश, जब क्वेटा शूरा एक्टिव था तब मेरे पास ऐसी क्षमता होती। यह भी उतना ही हैरान करने वाला है कि नाटो और अमेरिका ने क्वेटा शूरा, HQN या अन्य जाने-माने आतंकी नेटवर्क के खिलाफ कभी भी "सिंदूर-शैली" का ऑपरेशन क्यों नहीं किया। शायद इतने लंबे समय तक दोहा डील पर उनका ध्यान केंद्रित करने की वजह से वे पीछे रह गए। एक नया प्रतिमान स्थापित हो रहा है।" दोहा डील से उनका इशारा अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में हुए समझौते को लेकर थी।
उन्होंने पाकिस्तान की सख्त आलोचना करते हुए कहा कि "भारत ने जो किया वह कायरता से बिल्कुल भी नहीं था"। उन्होंने कहा कि "मुझे यह हैरान करने वाला लगता है कि पाकिस्तान इसे 'बुजदिलाना' हमला कहता है, यह शब्द छिपे हुए आतंकवादी हमलों, आत्मघाती बम विस्फोटों, दूसरों का गंदा काम करने और छिपे हुए और दुर्भावनापूर्ण एजेंडे से प्रेरित होने के लिए आरक्षित है।" उन्होंने कहा कि "भारत ने जो किया वह कायरता से बिल्कुल भी नहीं था - यह एक साहसी, स्पष्ट हमला था।" उन्होंने आगे कहा, "दिल्ली ने सैन्य वर्दी में और कुरैशी नामक एक अधिकारी (कुरैश वह जनजाति है जिससे पैगंबर मोहम्मद संबंधित थे) के माध्यम से इसे (ऑपरेशन सिंदूर) करने की जिम्मेदारी ली।"
आपको बता दें कि अमरुल्लाह सालेह, तालिबान के काबुल पर कब्जा करने से पहले राष्ट्रपति अशरफ गनी के उप राष्ट्रपति थे। अमरुल्लाह सालेह अभी भी तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहे हैं। वो भारत के समर्थक हैं और उन्होंने आगे कहा कि "जब वे सत्ता में थे, तो वे क्वेटा शूरा या अफगानिस्तान में अन्य आतंकी संगठनों के खिलाफ "सिंदूर-शैली" के ऑपरेशन को अंजाम देना चाहते थे।" उन्होंने कहा कि "काश, जब क्वेटा शूरा एक्टिव था तब मेरे पास ऐसी क्षमता होती। यह भी उतना ही हैरान करने वाला है कि नाटो और अमेरिका ने क्वेटा शूरा, HQN या अन्य जाने-माने आतंकी नेटवर्क के खिलाफ कभी भी "सिंदूर-शैली" का ऑपरेशन क्यों नहीं किया। शायद इतने लंबे समय तक दोहा डील पर उनका ध्यान केंद्रित करने की वजह से वे पीछे रह गए। एक नया प्रतिमान स्थापित हो रहा है।" दोहा डील से उनका इशारा अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में हुए समझौते को लेकर थी।