Select Date:

दबंगई की नई परिभाषा और अंतर जातीय संघर्ष के डरावने आयाम

Updated on 26-09-2024 12:10 PM
इन दिनो जाति जनगणना, आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी को खत्म कर इसे, बढ़ाने, एससी/ वर्ग में भी क्रीमी लेयर लागू करने के सुप्रीम के हालिया फैसले के विरोध और समर्थन, 2011 की जनगणना में जाति गणना के आंकड़े तत्कालीन यूपीए 2 सरकार और बाद में मोदी सरकार द्वारा जारी करने से कन्नी काटने तथा बिहार के नवादा में दलितों द्वारा महादलितों के घरों में आग लगाने के घटनाक्रमों को आपस में जोड़ कर देखें तो पता चलेगा कि देश अब जातियों के अंतर्संघर्ष के नए और डरावने दौर में प्रवेश कर गया है। इसका अंजाम कितना भयंकर होगा, इसे राजनीतिक दल समझ कर भी अनदेखा कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें केवल सत्ता हािसल करने से मतलब है। फिर चाहे वो किसी भी कीमत पर मिले। 
पहले नवादा के अग्निकांड को समझें। अमूमन बिहार और अन्य राज्यों में दलित उत्पीड़न के लिए ऊंची और दंबग पिछड़ी जातियों को ही दोषी माना जाता रहा है। क्योंकि ज्यादातर संसाधनों पर इन्हीं जातियों का कब्जा रहा है। लेकिन बिहार के नवादा जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के महादलित टोला में हाल में  दिनो महादलितों की जमीनों पर कब्जा करने के लिए उनके घर फूंकने के मामले में जो नया एंगल सामने आया है, वह जातीय संघर्ष के नए दौर और दबंगई की नई परिभाषा की अोर गंभीर इशारा करता है। इस घटना के बाद हो रहे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप को दरकिनार कर इसका का विश्लेषण करें तो इस दबंगई का मुख्‍य आरोपी नंदू पासवान है। जो स्वयं दलित समुदाय से है और पुलिस ने उसे गिरफ्‍तार कर ‍लिया है। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक में अन्य 28 लोगों पर एफआईआर दर्ज की और 15 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। दूसरा मुख्य आरोपी यादव समुदाय से है। जिन लोगों के घर फूंके गए, वह रविदास और मुसहर महादलित समुदाय से आते हैं। संक्षेप में यह दबंग दलित द्वारा महादलितों पर अत्याचार का मामला है। बीजेपी ने इस अग्निकांड को ‘अंतर दलित संघर्ष’ की संज्ञा दी है। जबकि बाकी दल दलित अत्याचार से जोड़कर इसे बिहार में कानून व्यवस्था ध्वस्त होना बता रहे हैं। लेकिन जो घटा है, उसका सीधा अर्थ यही है कि जिसके पास जमीन है, अब वही दबंग है, यहां वह किस जाति का है, यह गौण है। यह पारंपरिक जातिगत दबंगई से अलग है। इसमें यह संकेत भी ‍िनहित है कि जैसे जैसे वंचित समाज के पास जमीन और अन्य संसाधन आते जाएंगे, वह अपने ही वर्ग की दूसरी वंचित जातियों पर अत्याचार करने में संकोच नहीं करेगा। यह तो अभी शुरूआत है। 
दूसरा संदर्भ सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल के अपने  फैसले में आरक्षित वर्ग की अनुसूचित जाति और जनजातियों में अोबीसी की तरह क्रीमी लेयर लागू करने का फैसला है। मोदी सरकार ने इस फैसले के व्यापक विरोध के चलते उसे ‘सुझाव’ बताकर ठंडे बस्ते में डाल दिया है। लेकिन इसे कितने दिन दबाया जा सकेगा, यह देखने की बात है। इस संदर्भ में हमे यह भी देखना होगा कि यह विरोध किस वर्ग से हो रहा है। फैसले का विरोध मुख्यत: उन दलित और आदिवासी समुदायों की तरफ से हो रहा है, जो बीते 75 सालों में आरक्षण के चलते सबसे ज्यादा फायदे में रहे हैं। आरक्षण अब उनका जन्मगत हक बन चुका है। लिहाजा सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन्हें अपने लाभ में खलल की तरह महसूस हो रहा है। दूसरी तरफ इस फैसले के पक्ष में भी आवाज उठने लगी हैं, हालांकि यह अभी बहुत मुखर नहीं है। पंजाब में मजहबी सिखों और वाल्मीकि समुदाय  सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, जबकि रविदासिया दलित इसके विरोध में है। इसका सीधा मतलब है कि आरक्षण से लाभान्वित दलितों और अपेक्षाकृत न्यूनतम लाभ पाने वाले दलित एवं लाभ से लगभग वंचित रहे महादलितों के बीच क्रीमी लेयर के विरोध और समर्थन को लेकर संघर्ष और तेज होगा।    
अब जाति जनगणना, उसके आंकड़े जारी करने और तदनुसार आरक्षण की सीमा को बढ़ाने की बात। जाति जनगणना और आरक्षण की अधिकतम सीमा इन दिनों कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियों के हाॅट इश्यु है। माना जा रहा है कि अगले चुनावों में भाजपा को पटखनी देने का यह रामबाण नुस्खा साबित हो सकता है। हालांकि खुद भाजपा भी अब जाति जनगणना कराने के पक्ष में दिख रही है। लेकिन असली सवाल यह है कि जाति जनगणना कराने के बाद सामाजिक न्याय का संघर्ष क्या मोड़ लेगा? क्योंकि यह महज डेटा एकत्रित कर उसे जारी करने भर का मामला नहीं है। हाल में छपी एक मीडिया रिपोर्ट चौंकाने वाली है। अगर यह सत्य है तो अत्यंत विचारणीय है। इस रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए- 2 में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने 2011 में जाति जनगणना कराई थी। लेकिन इसमे देश भर की जातियों के जो आंकड़े सामने आए, वो देखकर सरकार के होश उड़ गए और उसने आंकड़े जारी न करने में भी भलाई समझी। यही काम मोदी सरकार ने भी किया। वजह ये थी कि 1931 की जनगणना में पहली बार जाति जनगणना में भारत में सभी धर्मों और समुदायों की कुल 4147 दर्ज की गई थीं। यह जनगणना भारत भर में फैली जातियों का एक बहुत मोटा वर्गीकरण रहा होगा। इन्हीं आंकड़ों के आधार पर मंडल आयोग ने पिछड़ी जातियों को ‍आरक्षण की सिफारिश की थी। लेकिन 2011 की जाति जनगणना में जातियों, उप जातियों और उप जातियों की उप-उप जातियों उनके भी अलग अलग समूहों आदि की कुल संख्या 46.80 लाख दर्ज की गई। अकेले महाराष्ट्र की 10.3 करोड़ आबादी में 4.28 लाख जातियां पाई गईं। इनमें से भी 1.17 करोड़ लोगों ने कहा कि उनकी कोई जाति नहीं है। अब अगर मोदी सरकार अगली जनगणना में जाति गणना भी शामिल करती है तो संभव है कि देश में जातियों की कुल संख्या  46.80 लाख को भी पार कर जाए। क्योंकि भारत में जातियों का मकड़जाल उनका अति सूक्ष्म विभाजन और उसकी गहराई कल्पनातीत है। अब सवाल यह है कि यदि देश में केवल जातियों को ध्यान में रखकर 100 फीसदी आरक्षण भी लागू कर दिया जाए तो करीब 47 लाख जातियों में से किसके हिस्से में कितनी नौकरियां और शिक्षा संस्थानों में सीटे आएंगी? जो आएंगी, उसका व्यावहारिक अर्थ क्या होगा? अगर इन जातियों को समूहो में बांट कर आरक्षण दिया जाता है तो भी सभी को सामाजिक न्याय दे पाने में सैंकड़ो साल भी कम पड़ेंगे। इसके अलावा किसी को कम किसी को ज्यादा लाभ  के चलते जातीय विवाद और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विंता जानलेवा संघर्ष में भी बदल सकती है। जाहिर है कि जाति जनगणना और तदनुसार आरक्षण में हिस्सेदारी की मांग ऐसी आग से खेलना है, जिसका कोई अग्निशामक किसी के पास नहीं होगा। दूसरे, अगर सभी जातियों को आरक्षण देना है तो कोई न कोई फिल्टर तो लागू करना ही होगा। तीसरे, राजनीतिक स्वार्थों के चलते आरक्षण और अपनी अपनी जाति और समुदायो की संख्या के अनुपात में ही तमाम सुविधा और अवसरों की छीना झपटी देश को एक नई और अकल्पनीय अराजकता में झोंक सकती है, जिसके बारे में हमारे राजनेता सोचना भी नहीं चाहते।

अजय बोकिल,लेखक, संपादक 

अन्य महत्वपुर्ण खबरें

 09 October 2024
राज्य के किसानों की दुर्दशा का मुद्दा उठाते हुए पीके ने कहा कि जन सुराज की सोच भूमि सुधार की है, सर्वे की नहीं। किसानों के लिए सुधार की योजनाएं…
 09 October 2024
लोकसभा चुनाव के ठीक चार महीने बाद हुए हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजों से कुछ संकेत साफ हैं। पहला तो यह देश में गुजरात, मध्यप्रदेश और गोवा…
 09 October 2024
हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ तिरूपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में चर्बी की मिलावट का सनसनीखेज मामला उजागर कर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और उप मुख्यमंत्री पवन कल्याण ने…
 07 October 2024
अक्टूबर और नवम्बर माह में देश के चार राज्यों में जो चुनाव हो रहे हैं उनके नतीजे अपने-अपने ढंग से किसी के ऊपर नकारात्मक और किसी के ऊपर सकारात्मक प्रभाव…
 26 September 2024
इन दिनो जाति जनगणना, आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी को खत्म कर इसे, बढ़ाने, एससी/ वर्ग में भी क्रीमी लेयर लागू करने के सुप्रीम के हालिया फैसले के विरोध…
 03 September 2024
युगों का निर्माण क्रियाशीलता से होता है । निष्क्रिय जीव जीवन पर्यंत पश्चाताप , ईर्ष्या, द्वेष, षडयंत्र, नकारात्मकता की दवाग्नि में जलता रहता है। और सक्रिय व्यक्ति दहकते अंगारों पर…
 03 September 2024
आज हमारा भारत देश आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है , भारत की युवा पीढ़ी की सोच अब केवल रोजगार पाने की नहीं अपितु रोजगार देने की हो रही है ।…
 03 September 2024
पहले के जमाने में हिप्पी लोग ऐसे फटे टूटे कपड़े पहनते थे जिस पर ठिगले लगे रहते थे और यह लोग इधर-उधार चोरी करके अपने नशा और पेट पालते थे।…
 02 September 2024
छत्तीसगढ़ में नई सरकार की कमान संभालते ही मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने राज्य के अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही वंनाचलों में विकास की रोशनी पहुंचाने, प्रशासन…
Advertisement