चीन जीएसआई को लेकर नेपाल पर डाल रहा दबाव
प्रचंड ने इस इंटरव्यू में कहा था, 'हम सुरक्षा से जुड़े मुद्दों में नहीं जा सकते हैं। यह हमारी नीति रही है कि किसी के पक्ष में नहीं जाना है। हमारी गुट निरपेक्षता की नीति रही है। वहीं दूसरी तरफ हम कह रहे हैं कि अमेरिका की हिंद प्रशांत नीति सुरक्षा पहल का हिस्सा है। अगर अमेरिकी पहल में शामिल नहीं हो रहे हैं तो दूसरे में भी शामिल नहीं हो सकते हैं।' इस बयान के एक दिन बाद प्रचंड ने पलटी मारी और शनिवार को शी जिनपिंग के साथ मुलाकात के बाद विवादित बयान दे दिया। चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके कहा कि नेपाल शी जिनपिंग के प्रमुख महत्वपूर्ण पहलों को अपना समर्थन देता है।
साल 2013 में शी जिनपिंग के चीन के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बीआरआई, जीडीआई, जीएसआई और जीसीआई जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं। चीन चाहता है कि नेपाल पूरा खुलकर इसे अपना समर्थन दे। अब चीन के विदेश मंत्रालय के दावे से नेपाली पीएम के पहले के बयान पर सवाल उठने लगे हैं। नेपाल के एक अधिकारी ने बीजिंग से कहा, 'चीन संयुक्त बयान में जीएसआई और जीसीआई को लेकर कुछ शामिल कराना चाहता है लेकिन हमने इस पर आपत्ति जताई है।' नेपाली अधिकारी ने कहा कि हम चीन के साथ बातचीत कर रहे हैं ताकि सुरक्षा और रणनीतिक गठजोड़ से जुड़े किसी भी पहलू को संयुक्त बयान में शामिल नहीं किया जाए। हम जीएसआई का हिस्सा नहीं बनने जा रहे हैं और इस दिशा में कोई वादा भी नहीं करेंगे।' नेपाल के इस कदम से चीन खुश नहीं है।