प्रयागराज । यूपी में इलाहाबाद हाइकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें कहा गया है कि भाजपा को चुनाव चिन्ह कमल का प्रयोग करने से रोक लगाई जाए। कहा गया है कि यह राष्ट्रीय पुष्प है इसका इस्तेमाल कोई अपने लोगो के रूप में नहीं कर सकती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय पुष्प कमल का भारतीय जनता पार्टी द्वारा चुनाव चिन्ह के रूप में इस्तेमाल करने से रोक लगाने एवं चुनाव के लिए आवंटित चिन्ह का राजनीतिक दलों द्वारा लोगों के रूप में इस्तेमाल करने के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है। याचिका पर अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी। कोर्ट में यह मुद्दा भी उठा है कि राजनीति दलों द्वारा चुनाव चिन्ह का लोगो के रूप में प्रचार के लिए छूट देना निर्दलीय प्रत्याशी के साथ भेदभाव पूर्ण होगा।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर तथा न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने चौरीचौरा,गोरखपुर के सपा नेता काली शंकर की जनहित याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता जीसी तिवारी व कपिल तिवारी ने बहस की। याची का कहना है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 एवं चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आवंटन ) आदेश 1968 के अंतर्गत चुनाव आयोग को चुनाव लडऩे के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक दल को चुनाव चिन्ह आवंटित करने का अधिकार है।
राष्ट्रीय चिन्ह कमल के प्रयोग पर रोक लगाई जाए
चुनाव आयोग को माडल कोड आफ कंडक्ट का उल्लंघन करने पर दल की मान्यता वापस लेने का अधिकार है। बीजेपी का चुनाव चिन्ह कमल राष्ट्रीय चिन्ह भी है। इसलिए उसे जब्त करने व दुरुपयोग करने पर रोक लगाई जाए। कोर्ट ने याची को अन्य किसी राजनीतिक दल को भी पक्षकार बनाने की छूट दी है। कोर्ट ने कहा कि याचिका में यह मुद्दा नहीं उठाया गया है कि चुनाव चिन्ह केवल चुनाव के लिए आवंटित किया जाता है, अन्य कार्य के लिए नहीं तो चुनाव चिन्ह का अन्य उद्देश्य से इस्तेमाल करने की अनुमति क्यों दी जा रही है। याची अधिवक्ता ने कहा कि चुनाव चिन्ह का आवंटन चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी को किया जाता है।
चुनाव चिन्ह को पार्टी का लोगो के रूप में इस्तेमाल का अधिकार नहीं
पार्टी विशेष का चुनाव चिन्ह लेने का प्रत्याशी को अधिकार है। किसी राजनीतिक दल को चुनाव चिन्ह पार्टी लोगो के रूप मे इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है। चुनाव चिन्ह चुनाव तक ही सीमित है। पार्टी को अपना चुनाव चिन्ह किसी निर्दलीय प्रत्याशी को देने का अधिकार नहीं है। यदि राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह का दूसरे कार्यों के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई तो यह निर्दलीय प्रत्याशियों के साथ अन्याय व विभेदकारी होगा। क्योंकि उन्हें अपना प्रचार करने के लिए कोई निशान नहीं मिला होता है।
राजनीतिक दल हमेशा प्रचार करते हैं और निर्दलीय प्रत्याशी को यह छूट नहीं होती है। क्योंकि चुनाव चिन्ह केवल चुनाव लडऩे के लिए ही दिया जाता है। कोर्ट ने कहा कि साक्षर कई देशों में चुनाव चिन्ह नहीं है, किन्तु भारत मे चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ा जा रहा है । सरकार की चुनाव चिन्ह से चुनाव लडऩे की व्यवस्था वापस लेने की मंशा भी नहीं है। निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता ने इन बिन्दुओं पर विचार के लिए समय मांगा। जिस पर कोर्ट ने जवाब दाखिल करने का समय दिया है।