पटना । बिहार चुनाव के नतीजों में एनडीए को बहुमत मिला है। बहुमत का जादुई आंकड़ा प्राप्त करने के बाद एनडीए में अब सरकार गठन की कवायद शुरू हो गई है। एनडीए के आला नेता इस मसले पर बातचीत शुरू कर चुके हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री दीपावली के बाद ही शपथ ग्रहण लेंगे, लेकिन मंत्रियों के फॉर्मूले पर प्रारंभिक बातचीत जारी है। सूत्रों के अनुसार, सात विधायकों पर दो को मंत्री बनने का मौका मिल सकता है। हालांकि, जब एनडीए के शीर्ष नेता बैठेंगे तो इस फॉर्मूले में भी बदलाव हो सकता है। नियमानुसार, बिहार में मुख्यमंत्री समेत अधिकतम 36 मंत्री हो सकते हैं। इस बार एनडीए के 125 विधायक जीत कर आए हैं। इनमें जदयू के 43 और भाजपा के 74 विधायक हैं। जबकि हम और वीआईपी के चार-चार विधायक हैं। मौजूदा फॉर्मूला के हिसाब से अगर हम और वीआईपी मंत्रिमंडल में शामिल हुए तो दोनों दलों से एक-एक मंत्री हो सकते हैं। जबकि जदयू से 13 तो भाजपा से 21 मंत्री बन सकते हैं। वहीं राजनीतिक गलियारों से आ रही खबरों के अनुसार, अभी सरकार में जदयू और भाजपा कोटे से बराबर-बराबर मंत्री बनाये जा सकते हैं। भविष्य में मंत्रिमंडल विस्तार होने पर संख्या बल के हिसाब से घटकदलों के सदस्यों को मंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन कुछ राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि भाजपा के ऊपर अधिक मंत्री पद हासिल करने का भी विधायकों की ओर से दबाव होगा। वहीं, विधानसभा अध्यक्ष किस दल के खाते में होगा, यह एनडीए के नेता आपसी बैठक के बाद तय करेंगे। इस संबंध में एक सवाल पर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने न्यूज चैनल को दिये साक्षात्कार में कहा कि राजनीति में कोई बड़ा भाई और छोटा भाई नहीं होता है। किस दल के मंत्री अधिक रहेंगे यह कोई मुद्दा नहीं है। नीतीश कुमार की पिछली सरकार में कुल 31 मंत्री थे, जिनमें मुख्यमंत्री को मिलाकर जदयू कोटे से 17 मंत्री थे, जबकि बीजेपी कोटे से 13 मंत्री बने थे। इसके अलावा जेडीयू कोटे से ही विजय चौधरी विधानसभा अध्यक्ष थे। हालांकि, यहां यह भी देखने वाली बात है कि उस वक्त जदयू बड़े भाई की भूमिका में थी, क्योंकि बीजेपी के 53 और जेडीयू 71 विधायक थे। इसी आधार पर कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या फॉर्मूला तय हुआ था। मगर इस बार भाजपा बड़े भाई की भूमिका में है और उसके विधायकों की संख्या जदयू से कहीं ज्यादा है। ऐसे में मंत्रिपद को लेकर भी पेच फंस सकता है।