अन्य राज्यों की तरह, मप्र में भी खनन प्रोजेक्ट में पर्यावरण और वन क्षेत्र से जुड़ी अनुमतियां लेना कठिन रहा है। इन अनुमतियों के समय पर न मिलने से प्रोजेक्ट डेढ़-दो साल से लेकर कई सालों तक रुक जाते हैं। कई रद्द भी हो जाते हैं। अब खनन विभाग चार नए खनिज ब्लॉकों की नीलामी से पहले प्री-एम्बेडेड क्लीयरेंस (खनन पूर्व अनुमति) हासिल करने की योजना बना चुका है। ऐसा करने से जिस कंपनी को नीलामी में ठेका मिलेगा, वह सीधे काम शुरू कर सकेगी।
खनन विभाग ने बॉक्साइट के तीन और बेस मेटल के एक ब्लॉक को नीलाम करने से पहले पर्यावरण-वन अनुमति लेने की योजना बनाई है। ये ब्लॉक बालाघाट, दमोह और सतना जिलों में दिए जाने हैं। अगस्त तक अनुमति लेकर अक्टूबर-नवंबर तक नीलामी किए जाने की तैयारी है। साथ ही खनन से जुड़े वन, पर्यावरण और राजस्व जैसे विभागों के अफसरों के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल भी बनाया जा रहा है। इससे वे समय पर खनन अनुमतियों पर काम कर सकेंगे।
तीन प्रक्रियाएं हैं जरूरी
खनन शुरू होने से पहले पर्यावरण अनुमति, वन क्षेत्र में खनन की अनुमति और माइनिंग प्लान को सहमति मिलना जरूरी है। हालांकि इनके पूरे होने में ही न्यूनतम दो से तीन साल लग जाते हैं। कई बार अनुमति नहीं मिली तो नीलामी के बाद ठेका भी निरस्त हो जाता है। साथ ही बीते दो महीनों में 370 से अधिक माइनिंग प्लान स्वीकृत किए जा चुके हैं। 2023 से माइनिंग कारपोरेशन अपने नाम से रेत खनन की पर्यावरण स्वीकृति लेना शुरू कर चुका है।
जोखिम का व्यवसाय
मप्र-छग के वरिष्ठ खनन अफसर रहे शैलेन्द्र त्रिवेदी ने कहा कि खनन बहुत अधिक जोखिम का व्यवसाय है। यदि नीलामी के बाद अनुमतियां नहीं मिलीं तो पूरा प्रोजेक्ट रद्द हो जाता है। बकस्वाहा में रियो टिंटो का कॉन्ट्रैक्ट इसका बड़ा उदाहरण है। खनन में प्री-एम्बेडेड क्लियरेंस सबसे पहली शर्त है। खनन में इज ऑफ डूइंग बिजनेस लाना है तो यह पहली सहूलियत है।