एक-दूसरे पर ताबड़तोड़ शाब्दिक मिसाइल छोड़ते राजनेता जहां चुनावी माहौल को सियासी गर्मी की चरम सीमा तक ले जा रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर मतदान के प्रति मतदाताओं की उदासीनता उन्हें गहरे तक हिला कर रख रही है। उनके चेहरे पर हैरान-परेशान होने वाले भाव सामने आ ही जाते हैं। भले ही राजनेता एक सफल अभिनेता की तरह अपने चेहरे के भावों को छुपाने की कोशिश कर रहे हों लेकिन उनके मुंह से निकले शाब्दिक तीर यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि कहीं न कहीं अंदर ही अंदर वे मतदाताओं की बेरुखी से हिले हुए हैं। इस बात को लेकर भी वे निश्चिंत नहीं हैं कि कम मतदान उनके पक्ष में फैसला लायेगा या उनके खिलाफ जायेगा। इसी बीच देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन पर शक को बेबुनियाद मानते हुए याचिका को खारिज कर दिया तथा आदेश दिया कि ईवीएम पर्चियों का शत-प्रतिशत न तो मिलान होगा और न ही वैलेट से वोटिंग होगी।
लोकसभा चुनाव के लिए दूसरे चरण के मतदान में देश में 88 सीटों पर 1206 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला ईवीएम में बंद हो गया है। प्रथम चरण में 102 सीटों पर प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला पूर्व में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में कैद हो चुका है। कहीं चिलचिलाती धूप तो कहीं वारिश के बीच 12 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की 88 सीटों पर 68.04 प्रतिशत मतदान हुआ जो कि पिछले चुनाव से 4.13 प्रतिशत कम रहा। 2019 में यह 72.87 प्रतिशत था। चुनाव आयोग और पार्टियों के मतदान बढ़ाने के प्रयास का भी कोई विशेष असर नजर नहीं आया। यहां तक कि द्वितीय चरण के मतदान से पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भोपाल में मध्यप्रदेश के नेताओं को दो-टूक शब्दों में चेतावनी दी थी, उन्होंने साफ-साफ कहा था कि जिन मंत्रियों के इलाकों में मतदान प्रतिशत कम होगा उनका मंत्री पद चला जायेगा और बदले में उन विधायकों को मंत्री बनाया जायेगा जिनके क्षेत्र में मतदान प्रतिशत बढ़ेगा। गुरुवार 25 अप्रैल देर रात भोपाल आये शाह दूसरे दिन शुक्रवार को राजगढ़ और गुना चले गये। ऐसा समझा जाता है कि भाजपा चुनाव प्रबंधन से जुड़े नेता यह मानते हैं कि विधायक केवल औपचारिकता कर रहे हैं और कार्यकर्ता भी बहुत उत्साह से काम नहीं कर रहे। द्वितीय चरण का मतदान समाप्त होने के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने लोकसभा चुनाव प्रबंधन समिति की 27 अप्रैल शनिवार को बैठक बुलाकर मतदान की समीक्षा की और आगामी दोनों चरणों की चुनावी तैयरियां पर जरुरी दिशा निर्देश दिये। भाजपा को अब और अधिक चाक-चौबंद रहने और मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए पूरी ताकत लगाना इसलिए जरुरी है क्योंकि मालवा-निमाड और मध्यभारत में मतदान होना है और यह वही इलाका है जहां पर भाजपा की मजबूत पकड़ है। यहां भी मतदान के प्रति यदि मतदाताओं में जोश नहीं भरा जा सका तो पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है, अब ऐसा माना जाता है कि भाजपा अपनी पूरी ताकत इन इलाकों में मतदान केंद्रों तक झोंकने वाली है ताकि उसे किसी प्रकार की राजनीतिक जोखिम का सामना न करना पड़े।
एक तरफ देश में जहां मतदाता मतदान कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर ईवीएम पर उठे सवालों पर अपना दो-टूक फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी निर्देश जारी कर दिये और ऐसा समझा जाता है कि इस प्रकार के निर्देश पहली बार दिये गये हैं। इसमें पहला निर्देश यह है कि 1 मई और उसके बाद से सिंबल लोडिंग यूनिट -एसएलयू- को चुनाव नतीजे घोषित होने के 45 दिन तक स्ट्रांग रुप में सील रखना होगा। यह वह मेमोरी यूनिट है जिसे कम्प्यूटर से कनेक्ट कर सिंबल नोट किये जाते हैं। वीवीपेट में प्रत्याशी का सिंबल डालने में एसएलयू जरुरी है। यह भी निर्देश दिया गया है कि परिणाम से असंतुष्ट होने पर सात दिन में दूसरे व तीसरे नम्बर पर रहे प्रत्याशी हर विधानसभा क्षेत्र की पांच प्रतिशत ईवीएम में बर्न मेमोरी माइक्रो कंट्रोलर की जांच का आवेदन कर सकेंगे। ईवीएम कंपनी के इंजीनियर माइक्रो कंट्रोलर को वेरीफाय करेंगे। जांच खर्च प्रत्याशी उठायेगा, लेकिन यदि जांच में गड़बड़ी पाई गई तो फीस वापस मिल जायेगी। यह भी निर्देश दिया गया कि चुनाव आयोग वीवीपेट की पर्चियों की गिनती के लिए मशीन के उपयोग पर विचार करे कि क्या चुनाव चिन्ह के साथ हर पार्टी के लिए बार-कोड हो सकता है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने गैर सरकारी संगठन एशोसिएश न फार डेमोक्रेटिंग रिफार्म व कुछ अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दाखिल याचिकाओं में की गयी इस मांग को खारिज कर दिया कि वैलेट पेपर से चुनाव करायें या सभी वीवीपेट पर्चियों का ईवीएम से मिलान किया जाए। जस्टिस खन्ना ने अपने 38 पेज के फैसले में कहा है कि वर्तमान चुनाव प्रक्रिया में प्रदर्शित है, मतदाता वोट देते समय वीवीपेट पर्ची को देख सकता है इसके बाद पर्ची बाक्स में गिर जाती है इसलिए याचिकाओं में अपारदर्शिता का तर्क गलत है। 18 पेज के अलग से लिखे गये फैसले में जस्टिस दत्ता ने कहा है कि हाल के कुछ वर्षों में निहित स्वार्थों वाले समूहों द्वारा राष्ट्रीय उपलब्धियों को कमजोर करने का ट्रेंड बढ़ रहा है, इन्हें खत्म करना होगा। इसलिए पेपर वैलेट प्रणाली पर लौटने का प्रश्न ही नहीं उठता। फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह फैसला कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों पर करारा तमाचा है, इनके सपने टूट गये हैं। वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी वीवीपेट के अधिक उपयोगी इस्तेमाल के अपने अभियान को बढ़ाती रहेगी।
‘‘दिग्गी‘‘ पर गरजते-बरसते अमित शाह
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के निशाने पर चुनावी सभाओं में मुख्यरुप से कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह रहे, जो राजगढ़ लोकसभा सीट को भाजपा से छीनने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस कहती है कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुस्लिमों का है और मैं आज गुना की धरती पर यह कह कर जाता हूं कि इस देश के संसाधनों पर गरीब, दलित, ओबीसी और आदिवासियों का पहला अधिकार है। कांग्रेस ने 70 सालों तक राम मंदिर का मुद्दा दबाकर रखा और इसी तरह जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 की गोद में खेलती रही। लेकिन मोदी जी ने इसे एक झटके में खत्म कर दिया। कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह के निर्वाचन क्षेत्र में अमित शाह ने उन पर तगड़ा हमला बोलते हुए उन्हें मध्यप्रदेश का बंटाढार करने वाला बताया और कहा कि दिग्विजय सिंह की राजनीति से स्थायी बिदाई कर देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दिग्गी आतंकियों को ‘जी‘ कहते हैं जाकिर को गले लगाते हैं। उन्होंने मतदाताओं से दिग्विजय सिंह की ओर इशारा करते हुए कहा कि ‘‘ आशिक का जनाजा है जरा धूमधाम से निकले‘‘, दिग्विजय सिंह बड़े आदमी हैं उनका बड़ा सम्मान है इसलिए बड़ी लीड से हराकर उन्हें घर बिठाना है।
और यह भी
गुना-शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भारी मतों से पराजित कर 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने वाले के.पी. यादव को भाजपा ने टिकट नहीं दी और उनकी जगह पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना उम्मीदवार बनाया है क्योंकि सिंधिया ने 2020 में भाजपा में आकर प्रदेश में उसकी सरकार बनवा दी थी। सिंधिया को राज्यसभा की सदस्यता मिली, केंद्र में मंत्री पद मिला और अब उन्हें ही यहां से पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है। हालांकि के.पी. यादव ने कोई बगावती तेवर नहीं अपनाये हैं लेकिन कांग्रेस ने वहां से यादव उम्मीदवार बनाकर इस क्षेत्र में यादव मतदाताओं में सेंध लगाने की कोशिश की है। पार्टी नेताओं के बीच चल रही अंदरुनी खीचतान दूर करने की कोशिश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि के.पी. यादव की चिन्ता छोड़िए, उन्होंने गुना क्षेत्र की काफी सेवा की है इसलिए उनका ध्यान पार्टी रखेगी। यादव के भविष्य और उन्हें आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भाजपा की है। गुना की जनता को के.पी. यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों नेता मिलेंगे। उल्लेखनीय है कि सिंधिया के भाजपा में आने के बाद भी के.पी. यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा उनके समर्थकों की पटरी नहीं बैठी। शायद इसीलिए अमित शाह को सार्वजनिक तौर पर आश्वासन देना पड़ा।
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