नई दिल्ली । भारत और चीन के बीच लद्दाख में लगभग आठ माह से तनाव जारी है। इस बीच चीन ने एलएसी पर लंबा रुकने का फैसला कर लिया है। उसने सीमा पर बड़ी संख्या में सैनिकों और हथियारों की संख्या बढ़ा दी है। अब चीन तकनीक के माध्यम से वहां का मौसम बदलने की फिराक में है। इसे वेदर मॉडिफिकेशन सिस्टम कहा जा रहा है, जो काफी लंबा-चौड़ा इलाका कवर करेगा।
चीन ने इस प्रोग्राम का दायरा 50.5 लाख वर्ग किलोमीटर तक बढ़ाने की योजना बनाई है। यह भारत के क्षेत्रफल से तकरीबन डेढ़ गुना ज्यादा है। चीन की स्टेट काउंसिल के मुताबिक, इस तकनीक के जरिए चीन बर्फबारी और बारिश जैसे मौसमी बदलावों पर काबू कर सकेगा। खबर है कि चीन इस तकनीक पर लंबे समय से काम कर रहा है। सूत्रों के अनुसार उसने सन 2012 से 2017 के बीच इस तकनीक पर करीब 9889 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। सूत्रों के अनुसार अब यह प्रोग्राम प्रायोगिक स्तर से आगे निकल चुका है। आशंका है कि खुराफाती चीन इसका इस्तेमाल हथियार की तरह कर सकता है। यह तकनीक भारतीय सैनिकों को मुश्किल में डाल सकती है। लद्दाख में वैसे ही तापमान -40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, चीन तकनीक की मदद से इसे और बढ़ाकर भारतीय सैनिकों के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर सकता है।
चीन ने जब वेदर मॉडिफिकेशन सिस्टम पर काम करना शुरू किया तो उसने बताया कि इस तकनीक की मदद से वह सूखाग्रस्त या बाढ़-प्रभावित इलाकों का मौसम अनुकूल बना देगा ताकि फसलें, लोग और पशु बचे रहें। सन 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान चीन ने सच में ऐसा कर दिखाया था। उसने बारिश रोकने और आसमान खुला रखने के लिए तकनीक का सहारा लिया, जिसे क्लाउड सीडिंग कहा गया। इसके तहत उसने ओलंपिक शुरू होने के पहले आसमान में 1000 से ज्यादा रॉकेट एक साथ दागे। ताकि सारी बारिश पहले ही हो जाए और मौसम खुल जाए। क्लाउड सीडिंग की ये तकनीक दूसरे देशों में इस्तेमाल की जा चुकी है। इसमें रॉकेट के भीतर सिल्वर आयोडाइड और क्लोराइड भरकर उसे छोड़ा जाता है। इससे बादल आसपास जमा हो जाते हैं और जमकर बारिश होती है। इसके बाद एक समय तक के लिए आसमान खुला रहता है।
मणिपाल अकादमी की असिस्टेंट प्रोफेसर धनश्री जयराम के मुताबिक बिना रेगुलेशन के जियोइंजीनियरिंग करना दो देशों जैसे भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा सकता है। चूंकि इसका प्रभाव काफी दूर तक होता है तो ये हो सकता है कि चीन अपने इलाके में बदलाव की कोशिश करे तो इसका असर हमारे यहां भी हो और मौसम ज्यादा विपरीत हो जाए। नेशनल ताइवान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यहां तक कह दिया है कि यह भी हो सकता है कि चीन का यह विवादित प्रोजेक्ट पड़ोसी देशों से बारिश की चोरी करने लगे और उन देशों को सूखाग्रस्त बनाने लगे।