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क्या नीतीश की 'अंतरात्मा' ने फिर से कुछ कहा? जानिए, क्यों विपक्षी एकता बैठक के पहले ही चाट रही धूल

Updated on 19-06-2023 07:29 PM
पटना: बिहार में दो बातों की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। पहला यह कि बिहार विधानसभा का चुनाव भी लोकसभा के साथ ही हो सकता है। दूसरा कि नीतीश कुमार अपने डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव को सीएम नहीं बनने देना चाहते। वे इसके लिए तरीके तलाश रहे हैं। दोनों ही बातों में कोई दम तो नहीं दिखता है। इसलिए कि दोनों ही बातें अटकलों-अनुमानों और इस लगातार हो रही बयानबाजी पर आधारित हैं। लेकिन इससे इतर एक चर्चा और भी है कि जनाधार खिसकने से सीएम नीतीश कुमार परेशान हैं। आखिर क्या है इन अटकलों के पीछे का सच? क्या सच में चुनाव पहले हो सकते हैं? क्या सच में सीएम नीतीश परेशान हैं? पढ़िए इन्हीं अटकलों की पड़ताल करती ये रिपोर्ट...

कभी भी हो सकता है असेंबली इलेक्शन?

सीएम नीतीश कुमार ने हफ्ता भर पहले अधिकारियों की समीक्षा बैठक में कहा कि राज्य सरकार की जिन योजनाओं पर काम चल रहा है, उसे अफसर निर्धारित समय से पहले पूरा करें। इसलिए कि चुनाव कभी भी हो सकते हैं। जाहिर है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव की बात तो नहीं ही की होगी। इसलिए कि लोकसभा चुनाव के लिए राज्य सरकार की योजनाओं का पूरा होना कोई फैक्टर नहीं हो सकता। बहरहाल, यह तो प्रशासिनक आदेश था। लेकिन खबर सूंघने वालों ने इसे असेंबली इलेक्शन समय से पहले कराए जाने की तैयारियों के तौर पर देखा। इसे हवा दी बिहार के प्रतिपक्षी दलों के नेताओं ने। बयानबाजी का दौर शुरू हुआ। हर की जुबान से यही निकलने लगा कि नीतीश समय से पहले ही यानी लोकसभा के साथ ही विधानसभा के चुनाव कराना चाहते हैं। तरह-तरह के तर्क भी दिए गए कि नीतीश कुमार क्यों समय से पहले चुनाव कराना चाहते हैं। किसी ने कहा कि विपक्षी एकता जिस तरह बन रही है, नीतीश उसका लाभ लेना चाहते हैं। उन्हें लोकसभा चुनाव में अब कोई रुचि नहीं रह गई है। इसलिए कि वे अब पीएम पद के दावेदार तो रहे नहीं। उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद विपक्षी दल भी एक साथ आने को पूरे मन से तैयार नहीं है। इसीलिए अगर वे विधानसभा का चुनाव करा लेते हैं तो शायद उन्हें इसका फायदा मिल जाए।

जनाधार खिसकने से परेशान हैं नीतीश

विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार का जनाधार अब बचा कहां हैं। उनके कुर्मी-कोइरी वोट पर आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा जबरदस्त चोट पहुंचाने के लिए घेराबंदी कर चुके हैं। मुस्लिम वोट उनके पलटू राम छवि के कारण अब उन्हें मिलने से रहे। दलितों की गोलबंदी चिराग पासवान, पशुपति कुमार पारस और जीतन राम मांझी कर चुके हैं। सवर्णों के वोट तो बीजेपी का साथ छोड़ते ही नीतीश कुमार को मिलने से रहे। जेडीयू के उनके विश्वासी साथी भी अपनी राह अलग तलाश रहे हैं। जेडीयू से नेताओं के जाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। उपेंद्र कुशवाहा से इसकी शुरुआत हुई थी। मीना सिंह, सुहेली मेहता और मोनाजिर हसन जैसे आधा दर्जन बड़े नेता पांच-छह महीनों में नीतीश का साथ छोड़ चुके हैं। लोकसभा चुनाव करीब आते ही नीतीश के सिटिंग सांसद और कुछ विधायक भी संसदीय चुनाव लड़ने की मंशा से जेडीयू को बाय बोल सकते हैं।

नीतीश की विपक्षी एकता पर भी ग्रहण

कांग्रेस को सामने रख कर नीतीश कुमार ने विपक्षी एकता की जो कवायद शुरू की थी, उसमें 18 दलों के शामिल होने की बात थी। धीरे-धीरे यह संख्या घटती जा रही है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और टीएमसी नेताओं के जिस तरह के बयान 23 जून को पटना में होने वाली बैठक से पहले आते रहे हैं, उससे एक बात साफ हो गई है कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी शायद ही बैठक में आएं। अगर आ भी गए तो उनकी शर्तें कांग्रेस को तो कतई स्वीकार नहीं होंगी। ममता ने स्पष्ट कर दिया है कि बंगाल में कांग्रेस और वाम गठजोड़ को उनसे मदद की कोई उम्मीद बंगाल में नहीं करनी चाहिए। अरविंद केजरीवाल तो अध्यादेश पर साथ देने से कांग्रेस के इनकार के बाद अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। केजरीवाल की पार्टी ने कांग्रेस के सामने शर्त रख दी है कि पंजाब और दिल्ली में अगर कांग्रेस साथ देने को तैयार है तो वह राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी। जाहिर सी बात है कि कांग्रेस न ममता की बात मानने को तैयार होगी और न अरविंद केजरीवाल की ही।

कई दलों ने पहले से ही दूरी बना ली है

विपक्षी एकता के लिए 2022 से अभियान में जुटे तेलांना के सीएम केसी राव (KCR) ने विपक्षी एकता बैठक से अपने को अलग कर लिया है। उनके साथ दिक्कत यह है कि कांग्रेस से ही उनका तेलंगाना में टकराव है। इसलिए कांग्रेस की मदद के लिए वे अपनी स्थिति खराब नहीं करना चाहते हैं। नेशनल कान्फ्रेंस के नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने बैठक में शामिल न हो पाने की सूचना भेज दी है। अखिलेश यादव अपने रिश्तेदार और पिता के मित्र लालू यादव की बात मान कर कांग्रेस की मदद की बात करने बैठक में आते भी हैं तो यूपी में उनकी ही जमीन खतरे में पड़ सकती है। वैसे कांग्रेस से गठजोड़ कर वे इसके नफा-नुकसान का आकलन पहले ही कर चुके हैं। अब तो उन्होंने भी स्पष्ट कर दिया है कि लोकसभा की सभी सीटों पर उनकी पार्टी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने तालमेल या विपक्षी एकता का मोह शुरू में ही त्याग दिया है। वे न इसके पक्ष में बोलती हैं और न खिलाफ। समाजवादी पार्टी से भी तालमेल कर वे उसका हस्र देख चुकी हैं।

'नीतीश के फिर पलटी मारने का अंदेशा'

नीतीश कुमार महागठबंधन का साथ छोड़ेंगे और एनडीए में ही अपना भविष्य तलाशेंगे, इसकी संभावना भी जताई जा रही है। ऐसी संभावना जताने वालों में नीतीश के कभी भरोसेमंद साथी रहे हम (HAM) के संरक्षक पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और जनसुराज यात्रा पर बिहार का भ्रमण कर रहे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (PK) कहते हैं कि वे लोग नीतीश के करीब रहे हैं, इसलिए वे उनके स्वभाव और शैली के बारे में बेहतर जानते हैं। मांझी कहते हैं कि नीतीश की नीयत में खोट हैं। तेजस्वी को सीएम बनाने के वादे के साथ वे महागठबंधन में आए थे। लेकिन उनके हावभाव से लगता है कि वे तेजस्वी यादव को बड़ा झटका देने की तैयारी में हैं। वे कभी उनको सीएम नहीं बनने देंगे। उससे पहले ही नीतीश एनडीए की ओर खिसक जाएंगे। प्रशांत किशोर तो दावे के साथ कहते हैं कि नीतीश को जितना वे जानते हैं, उन्हें पक्का यकीन है कि लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश किसी भी तरह एनडीए में शामिल होने की कोशिश करेंगे।

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