कोलकाता। बांग्ला फिल्मों के प्रतिष्ठित अभिनेता सौमित्र चटर्जी का रविवार की शाम पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया। उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। उनके पार्थिव शरीर को फूलों से सजाई हुई एक खुली गाड़ी में श्मशान घाट तक लाया गया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ ही कई फिल्मी हस्तियां भी उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुईं।
सड़क के दोनों ओर सैकड़ों लोग खड़े थे और पास के घरों में लोगों की भीड़ अपने पसंदीदा एक्टर के अंतिम दर्शन के लिए छतों पर खड़ी थी। एक्टर की अंतिम यात्रा केवड़ातला श्मशान घाट पर पूरी हुई। चटर्जी के अंतिम संस्कार से पहले उन्हें बंदूकों से सलामी दी गई। मुख्यमंत्री और अन्य गणमान्य लोगों की मौजूदगी में उनका अंतिम संस्कार किया गया।
चटर्जी का कई बीमारियों की वजह से एक महीने से ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद रविवार को निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। सौमित्र चटर्जी अब नहीं रहे लेकिन उनका काम हमेशा मौजूद रहेगा। फिल्म ‘अपुर संसार’ से फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाले चटर्जी ने अपनी पहली ही फिल्म से दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी। फिल्म में शोक में डूबे एक विधुर का किरदार निभा रहे चटर्जी का आखिरकार अपने बेटे से जुड़ाव होता है।
1959 में आई इस फिल्म के साथ सत्यजित रे की फेमस अपु तिकड़ी पूरी हुई थी और इससे विश्व सिनेमा से चटर्जी का परिचय हुआ। सौमित्र चटर्जी ने 1957 में सत्यजित रे की ‘अपराजितो’ के लिए ऑडिशन दिया था जो तिकड़ी की दूसरी फिल्म थी लेकिन निर्देशक को किशोर अपु का किरदार निभाने के लिए तब 20 वर्ष के रहे एक्टर की उम्र ज्यादा लगी थी। अपु तिकड़ी की पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ थी।
हालांकि चटर्जी सत्यजित रे के संपर्क में बने रहे और आखिरकार ‘अपुर संसार’ में उन्हें अपु का किरदार निभाने का मौका मिला जिसमें दाढ़ी के साथ उनके लुक को दर्शकों ने काफी पसंद किया। कालांतर में सत्यजित रे ने उन्हें अपने सबसे पसंदीदा अभिनेता का दर्जा दिया। कहा जाता है कि यह रे को युवा टैगोर की याद दिलाता था। आने वाले दशकों में चटर्जी ने फिल्मों और थियेटर में कई तरह के किरदार निभाए। उन्होंने कविता और नाटक भी लिखे। कलकत्ता (अब कोलकाता) में 1935 में जन्मे चटर्जी के शुरुआती वर्ष नदिया जिले के कृष्णानगर में बीते जहां से उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त की। एक्टिंग से चटर्जी को पहली बार पारिवारिक नाटकों में उनके दादा और वकील पिता ने रूबरू कराया। वे दोनों भी कलाकार थे। चटर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली थी।