गजब चक्कर में फंसा अमेरिका... एक्सपर्ट ने दी ये किस दोहरे खतरे की चेतावनी, भारत पर कैसे पड़ेगा असर?
Updated on
24-05-2025 02:10 PM
नई दिल्ली: जेपी मॉर्गन एंड कंपनी के सीईओ जेमी डिमोन ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर चेतावनी दी है। उन्होंने भू-राजनीति, बढ़ते घाटे और महंगाई जैसे कई कारणों से स्टैगफ्लेशन (मंदी के साथ महंगाई) का खतरा बताया है। शंघाई में जेपी मार्गन के ग्लोबल चाइना समिट में डिमोन ने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी 'स्वीट स्पॉट' में नहीं है। उन्होंने फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों को स्थिर रखने के फैसले की तारीफ की। डिमोन ने अमेरिका के बढ़ते घाटे पर भी चिंता जताई। कहा कि निवेशकों का डॉलर एसेट्स कम करना समझ में आता है।
स्टैगफ्लेशन एक ऐसी आर्थिक स्थिति है जिसमें किसी देश को ऊंची महंगाई, बढ़ी बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था में स्थिर मांग का सामना करना पड़ता है। इससे नीति निर्माताओं के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। डिमोन ने कहा कि टैरिफ के पूरे प्रभाव अभी तक स्पष्ट नहीं हैं और मंदी का खतरा अभी भी बना हुआ है।
घाटे की समस्या पर देना होगा ध्यान
डिमोन ने कहा कि अमेरिका को अपने घाटे की समस्या पर ध्यान देना होगा। मूडीज की ओर से अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग घटाए जाने के बाद उन्होंने यह बात कही। उन्होंने कहा कि वह डॉलर में होने वाले अल्पकालिक उतार-चढ़ाव के बारे में चिंतित नहीं हैं। लेकिन, वह समझते हैं कि लोग डॉलर एसेट्स क्यों कम कर रहे हैं। डिमोन ने कहा, 'मुझे डॉलर में अल्पकालिक उतार-चढ़ाव की चिंता नहीं है। लेकिन, मैं समझता हूं कि लोग डॉलर एसेट्स को कम कर सकते हैं।'
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार समझौते पर डिमोन ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि अमेरिकी सरकार चीन को छोड़ना चाहती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत होगी। अंत में एक अच्छा समझौता होगा। डिमोन ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि अमेरिकी सरकार चीन को छोड़ना चाहती है। उम्मीद है कि दूसरा दौर, तीसरा दौर या चौथा दौर होगा। यह एक अच्छी जगह पर समाप्त होगा।'
बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के दोहरे खतरे
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने इस साल ब्याज दरों में बढ़ोतरी को रोक दिया है। फेडरल रिजर्व मजबूत आर्थिक स्थिति और टैरिफ जैसे नीतिगत बदलावों से होने वाले जोखिमों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। फेडरल रिजर्व के अधिकारियों ने बढ़ती महंगाई और बढ़ती बेरोजगारी के दोहरे खतरे के बारे में चिंता जताई है।
इस महीने की शुरुआत में अमेरिका और चीन एक नए समझौते पर बातचीत करने के लिए 90 दिनों के लिए टैरिफ को कम करने पर सहमत हुए। हालांकि, विश्लेषकों और निवेशकों का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चीन पर लगाए गए टैरिफ 90 दिनों के बाद भी चीनी निर्यात को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
भारत पर पड़ेगा क्या असर?
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में स्टैगफ्लेशन का मतलब वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती आ सकती है। अमेरिका भारत का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार है। इसलिए अमेरिकी मांग में कमी भारत के निर्यात को प्रभावित कर सकती है।
स्टैगफ्लेशन के कारण वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता बढ़ने से निवेशक जोखिम से बचने की कोशिश कर सकते हैं। इससे भारत जैसे उभरते बाजारों में विदेशी निवेश का प्रवाह कम हो सकता है। अमेरिकी डॉलर मजबूत हो सकता है, जिससे भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ सकता है।
अगर वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ती है (जो स्टैगफ्लेशन का एक हिस्सा है) तो भारत में भी आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे यहां भी महंगाई का दबाव बढ़ सकता है।
ये भी हैं पहलू
भारत की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से घरेलू मांग पर आधारित है। इसलिए अमेरिका में स्टैगफ्लेशन का सीधा और तत्काल प्रभाव सीमित हो सकता है, खासकर अगर भारत की घरेलू मांग मजबूत बनी रहे। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसी संस्थाओं ने 2025 के लिए भारत की विकास दर को 6.2% से 6.3% के आसपास अनुमानित किया है, जो इसे सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनाता है। मजबूत घरेलू खपत और सरकारी खर्च विकास को सहारा दे सकते हैं।
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