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भारत के बाद रूस ने भी खारिज किया चीन का नया नक्शा, टूटेगी पुतिन-जिनपिंग की दोस्ती समझें सीमा विवाद

Updated on 05-09-2023 02:16 PM
मॉस्को: चीन के नए नक्शे पर बवाल मचा हुआ है। अब तक भारत, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, नेपाल और ताइवान ने चीन के नए मानचित्र पर विरोध दर्ज कराया है। इस नए नक्शे में इन देशों की जमीनों और समुद्रों को चीन के हिस्से के रूप में दिखाया गया है। भारत, ताइवान और फिलीपींस स्पष्ट रूप से चीन की विस्तारवादी नीतियों से जूझ रहे हैं। लेकिन, नए चीनी मानचित्र में रूसी क्षेत्र को शामिल करना बीजिंग का अप्रत्याशित कदम माना जा रहा है। हालांकि रूसी प्रतिक्रिया भारत की तरह तीखी नहीं थी, फिर भी उसने चीनी दावों को खारिज कर दिया और कहा कि यह नक्शा 2005 में विवाद को समाप्त करने के लिए हस्ताक्षरित द्विपक्षीय समझौते के खिलाफ है।

2008 में चीन-रूस में हो गया था द्वीप का बंटवारा

चीनी मानचित्र ने बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप को पूरी तरह से चीनी क्षेत्र के रूप में दावा किया था। रूस ने नए नक्शे को खारिज करते हुए यह बात दोहराई कि दशकों के संघर्ष के बाद चीन और रूस ने 2005 में सीमा विवाद विवाद सुलझा लिया था। इस दौरान दोनों देशों के बीच एक समझौते पर ही हस्ताक्षर किए गए थे। इसके बाद रूस और चीन के बीच विवादित द्वीप बोल्शोई उस्सुरीस्की का विभाजन 2008 तक पूरा हो गया। समझौते के तहत, चीन को द्वीप के 350 वर्ग किलोमीटर में से 170 के साथ-साथ आसपास के कुछ अन्य द्वीप भी मिले और रूस नेविवादित क्षेत्र का शेष भाग अपने पास रखा।

चीन का नया नक्शा इतना विवादास्पद क्यों है?

पिछले सोमवार को चीन ने एक नया राष्ट्रीय मानचित्र जारी किया जिससे उसके अधिकांश पड़ोसी नाराज हो गए। कारण स्पष्ट था- चीन ने उनके क्षेत्रों पर अपना दावा किया था। चीन के दावे व्यापक थे। इसने लद्दाख के अक्साई चिन और भारत के अरुणाचल प्रदेश पर दावा किया गया था। फिलीपींस, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के दक्षिण चीन सागर का अधिकांश भाग को चीन का हिस्सा दिखाया गया था। रूस से बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप को भी चीन के नक्शे में दिखाया गया था। हालांकि, इसमें नेपाल की आपत्ति अनोखी थी क्योंकि उसने तीन भारतीय क्षेत्रों-लिम्पियाधुरा, कालापानी, लिपुलेख- को चीनी मानचित्र में भारतीय सीमा में शामिल करने का विरोध किया, जिसे वह अपना बताता है।


भारत के इलाके पर दावा करता है चीन

भारतीय क्षेत्रों पर चीन के दावे तिब्बत के इतिहास से जुड़े हैं। चीन लद्दाख को पश्चिमी तिब्बत और अरुणाचल को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है। दक्षिण चीन सागर में, चीन एक व्यापक क्षेत्र पर दावा करने के लिए नाइन-डैश-लाइन कॉन्सेप्ट का पालन करता है जिसे क्षेत्र के बाकी देशों ने खारिज कर दिया है। रूस में, चीन ने बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप पर पूरी तरह से दावा किया है। यह विवाद 19वीं शताब्दी से ही था, लेकिन एक दशक पहले इसका समाधान हो गया था, जब विवाद को समाप्त करने के लिए द्वीप और आसपास के क्षेत्र को दोनों देशों के बीच शांतिपूर्वक विभाजित कर दिया गया था।

रूस ने क्या कहा?

रूस ने चीनी मानचित्र को खारिज कर दिया और कहा कि चीन ने जिस क्षेत्र पर अपना दावा किया है, वह पहले ही एक समझौते के माध्यम से तय किया जा चुका है। यह विवाद बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप पर है जिस पर चीन ने नए नक्शे में पूरा दावा किया है। यह द्वीप और आसपास का क्षेत्र उससुरी और अमूर नदियों के संगम पर है जो रूस और चीन को अलग करती हैं। क्षेत्र के नियंत्रण के बारे में तनाव पहली बार 1860 के आसपास शुरू हुए थे। हालांकि, 2005 में बोल्शोई उस्सुरीस्की द्वीप विवाद को निपटाने के लिए एक समझौता हुआ और द्वीप का विभाजन 2008 तक पूरा हो गया।

रूस ने विवादित द्वीप को बताया अपना हिस्सा

रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि रूसी और चीनी पक्ष इस आम स्थिति पर कायम हैं कि हमारे देशों के बीच सीमा मुद्दा हल हो गया है। इसका समाधान 2005 में रूसी-चीनी राज्य सीमा पर पूरक समझौते के अनुसमर्थन द्वारा चिह्नित किया गया था। इसका पूर्वी भाग, जिसके अनुसार बोल्शोई उस्सूरीस्की द्वीप को पार्टियों के बीच विभाजित किया गया था। हमारी आम सीमा का परिसीमन और सीमांकन इसकी पूरी लंबाई (लगभग 4,300 किमी) के साथ पूरा हो चुका है, जिसमें 2008 में बोल्शोई उस्सूरीस्की द्वीप भी शामिल है।


चीन के खिलाफ दिखाई नरमी, कहा- कोई विवाद नहीं

जखारोवा ने कहा कि विवाद का समाधान दोनों पक्षों के कई वर्षों के प्रयासों का परिणाम था, जो दोनों देशों के बीच उच्च स्तर के संबंधों का प्रतिबिंब है, जिसने क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह दुनिया के सभी देशों के लिए सीमा विवादों को सुलझाने का एक सफल उदाहरण है। जखारोवा ने आगे कहा कि दोनों देशों ने पहले भी कहा है कि कोई सीमा विवाद नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि रूस और चीन ने बार-बार आपसी क्षेत्रीय दावों के हल होने की पुष्टि की है। 16 जुलाई, 2001 की अच्छे पड़ोसी, मित्रता और सहयोग पर संधि में यह एक समान प्रावधान है। पार्टियों के पास सीमा सहयोग के क्षेत्र में बातचीत की एक व्यापक संरचना है। दोनों देशों के बीच संयुक्त सीमा आयोग प्रभावी ढंग से काम कर रहा है, जिसके भीतर सभी प्रासंगिक मुद्दों पर चर्चा की जाती है।

चीन का किन-किन देशों से सीमा विवाद


चीन को हाल के वर्षों में एक विस्तारवादी शक्ति के रूप में देखा गया है, जो दूसरे देशों के क्षेत्रों पर अपना दावा करता रहता है। चीन मानचित्र जारी करने या घुसपैठ या सैन्य अभ्यास के माध्यम से जमीन पर तथ्यों को बदलने की कोशिश करके अपने पड़ोसियों को उकसाता रहता है। ज्यादातर लोग चीन के केवल तीन सीमा विवादों के बारे में जानतें हैं, जो भारत, जापान और दक्षिण चीन सागर समेत कुल 15 देशों के साथ है। इसके अलावा ताइवान का मामला अलग है, जो खुद को एक स्वतंत्र स्वशासित द्वीप मानता है। वहीं, चीन इन सभी देशों के इलाकों को अपना बताता है और बलपूर्वक कब्जे की धमकी भी देता रहता है। चीन के जिन 15 देशों के साथ सीमा विवाद हैं, उनमें फिलीपींस, वियतनाम, जापान, भारत, नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, मलेशिया, लाओस, दक्षिण कोरिया, उत्तरी कोरिया, मंगोलिया, म्यांमार और सिंगापुर शामिल हैं।

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