तालिबान और भारत के बीच करीबी से परेशान हुए अफगान राजदूत, अफगानिस्तान के दूतावास पर लगेगा ताला!
Updated on
29-09-2023 12:56 PM
काबुल: अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार और भारत के बीच मजबूत होते रिश्तों से अफगान राजदूत को खासी दिक्कतें हैं। अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामूंदजे की तरफ से जो कदम उठाया गया है, उससे तो कुछ ऐसा ही संकेत मिलता है। फरीद की मानें तो नई दिल्ली स्थित अफगानिस्तान दूतावास बंद होने की तरफ है। फरीद ने कहा है कि भारतीय अधिकारियों और तालिबान की तरफ से पड़ने वाले दबाव के चलते यह फैसला लेना पड़ेगा। भारत सरकार के सूत्रों की तरफ से भी कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात की पुष्टि की गई है। भारत ने कहा है कि दूतावास को बंद करने की खबरों की प्रमाणिकता की जांच की जा रही है।
तीन महीनों से बाहर फरीद फरीद खुद काफी महीनों से बाहर हैं और वह किसी और देश में शरण लेने की कोशिशें कर रहे हैं। लेकिन उनकी तरफ से कई ऐसी बातें कही गई हैं जो सवाल खड़े करती हैं। एक चिट्ठी जो दूतावास के बंद होने से जुड़ी है, वह सामने आई है। इस चिट्ठी के मुताबिक फरीद ने भारतीय अधिकारियों से विएना संधि 1961 के तहत मिशन के संरक्षक का अधिकार संभालने का अनुरोध किया है। उनकी मानें तो परिचालन, राजनयिक और वित्तीय मुश्किलों के अलावा दूतावास को चलाने में मिलने वाले कम सहयोग और मदद ने इस फैसले को मजबूर किया है।
चार एक्शन प्वाइंट का जिक्र अफगान राजदूत ने भारत सरकार से तुरंत चार बड़े एक्शन लेने की मांग की है। उन्होंने भारत से कहा है कि वह मिशन की संपत्तियों का नियंत्रण अपने हाथ में ले ले जिसमें बैंक खातों में जमा पांच लाख डॉलर शामिल हैं। इसके अलावा उन राजनयिकों के लिए एग्जिट परमिट जारी करे जिनका वीजा मई से रिन्यू नहीं हुआ है। राजदूत फरीद ने कहा है कि दूतावास के परिसर में एकता, गौरव और बलिदान के प्रतीक के रूप में अफगान झंडे को गर्व से फहराने की अनुमति दी जाए। साथ ही उन्होंने काबूल में वैध सरकार के गठन पर मिशन और संपत्तियों को उसे सौंपने की बात कही है।
राजदूत ने जताई चिंता अफगान राजदूत फरीद ने पिछले 15 महीनों से मिलने वाले जीरो सहयोग पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि इसकी वजह से मिशन की स्थिति और प्रभावशीलता को कमजोर हो गई है। वह हमेशा से कहते आए हैं कि राजनयिक संबंध आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित होने चाहिए। वहीं दूतावास ने तालिबान के साथ भारत की 'करीबी' पर निराशा जताई है। उन्होंने काबुल में एक लोकतांत्रिक सरकार के समर्थन में और अधिक सक्रिय प्रयासों का अनुरोध किया है। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया है कि अफगान शरणार्थियों के लिए स्कूल फंडिंग इस वर्ष की शुरुआत से ही बंद है। उनका कहना है कि चुनौतीपूर्ण समय में भी शरण चाहने वालों के लिए शैक्षिक अवसर सुनिश्चित करना जरूरी है।
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