राहत की दरकार से ज्यादा सरकार को टिकाए रखने वाला बजट
Updated on
24-07-2024 04:58 PM
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा सातवीं बार पेश देश के वर्ष 2024 25 के बजट में लोकसभा चुनाव के दौरान चर्चा में रही मोदी गारंटी की छाया ज्यादा नहीं दिखाई दी। बेशक यह बजट देश की आर्थिकी के विकास को आगे बढ़ाने वाला दूरगामी बजट है, लेकिन आम लोगों को बजट से तत्काल बड़ी राहतों की जो उम्मीदें से थीं, वह नदारद हैं। पहली नजर में यह साफ है कि मोदी सरकार की प्राथमिकता अपनी गठबंधन सरकार को बचाए रखने की है। जिस तरह जद यू और टीडीपी की बैसाखियों पर एनडीए सरकार चल रही है, उसके चलते बिहार और आंध्र प्रदेश पर मेहरबानी होना स्वाभाविक ही था। हालांकि मोदी सरकार ने नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू द्वारा उनके राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग ठुकरा दी है, लेकिन वो दोनो सरकार को समर्थन के बदले केन्द्र से ज्यादा हिस्सेदारी मांगते और लेते रहेंगे, यह तय है। हैरानी की बात यह है कि इस साल जिन चार राज्यों महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं, उन्हें भी बजट में कुछ खास नहीं दिया गया है। अलबत्ता दीर्घकालीन विकास की दृष्टि से देखें तो यह बजट विकास की बुनियाद को मजबूत करने तथा उसी दिशा में आगे बढ़ने के संकल्प से प्रेरित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जहां इसे दूरगामी और देश को नई ऊंचाई पर ले जाने वाला बजट बताया है वहीं नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इसे ‘कुर्सी बचाअो बजट’ की संज्ञा दी है। इस बजट का राजनीतिक संदेश भी स्पष्ट है कि मोदी सरकार को अपनी मजबूती पर पूरा भरोसा है। साथ ही उसे इस साल होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में जीतने के लिए किसी लोकलुभावन टोटके की गरज नहीं है। अब यह मोदी सरकार का आत्मविश्वास है अथवा अति आत्मविश्वास, यह तो विस चुनाव नतीजों से पता चल जाएगा।
राजनीतिक नजरिए से देखें तो मोदी सरकार 3.0 के बजट में वित्त मंत्री ने लोकसभा चुनाव का नरेटिव को प्रभावित करने वाले मुख्यक मुद्दे जैसे कि बेरोजगारी, महंगाई व किसानों की समस्या आदि को एड्रेस तो किया गया है, लेकिन आराम के साथ। और वो भी कुछ घुमा फिरा कर। बेरोजगारी की बात करें तो वित्त मंत्री एक भी ऐसी घोषणा नहीं की, जिससे यह संदेश जाए कि खुद सरकार बड़े नियोक्ता के रूप में सामने आना चाहती है। इस मामले में ज्यादातर भरोसा निजी क्षेत्र और स्वरोजगार पर जताया गया है। यानी सरकार खुद रोजगार देने की जगह रोजगार देने को प्रोत्साहित करने पर जोर दे रही है। सरकार बड़ी 500 कंपनियों में इंटर्न शिप करने वाले युवाअों को पांच हजार रुपये का मासिक भत्ता देगी। लेकिन कितनी कंपनियां अनिवार्य रूप से इंटर्न रखेंगी और कितने इंटर्न रखेंगी, इसका कोई रोड मैप वित्त मंत्री ने नहीं दिया है। कहीं ऐसा न हो कि ये इंटर्न भी नए किस्म के ‘अग्निवीर’ साबित हों। क्योंकि सरकार के इंसेटिव पर कंपनियां भले ही युवाअोंको प्रशिक्षण दें, लेकिन रोजगार कितनों को देंगी, यह किसी को नहीं पता। दूसरी तरफ कंपनियां एआई को बढ़ावा दे रही हैं, ऐसे में हकीकत में कितने इंटर्न्स को काम मिलेगा, कहना मुश्किल है। कांग्रेस नेता पी. चिदम्बरम ने इस योजना पर यह कहकर चुटकी ली कि इंटर्नशिप भत्ते का प्रावधान कांग्रेस का घोषणा पत्र पढ़कर किया गया लगता है। हालांकि सरकार का जोर रोजगार कौशल विकास और अन्य रोजगार के अवसर बढ़ाने पर है। जबकि युवाअों को उम्मीद थी कि सरकार बड़े पैमाने पर सीधी भर्तियों का ऐलान करेगी। लेकिन वैसा कुछ बजट में नहीं है। अलबत्ता बजट में देश के 4.1 करोड़ युवाओं के लिए पांच साल में रोजगार-कौशल और अन्यक अवसरों के लिए प्रधानमंत्री की पांच योजनाएं और पहले की गई हैं, िजनमें : ईपीएफओ में पंजीकृत पहली बार रोजगार पाने वाले कर्मचारियों को 15 हजार रुपये तक के एक महीने का वेतन तीन किस्तों में देना, कर्मचारी और नियोक्ता् दोनों को सीधे विनिर्दिष्टत स्केाल पर प्रोत्साेहन राशि उपलब्ध कराना जो नौकरी के पहले चार साल में दोनों के ईपीएफओ योगदान पर निर्भर है, सरकार नियोक्ताओ को उसके ईपीएफओ योगदान के लिए दो साल तक हर अतिरिक्ते कर्मचारी पर 3000 हजार रुपये प्रत्येएक महीना भुगतान का प्रावधान है। साथ ही अगले पांच साल की अवधि में 20 लाख युवाओं का कौशल बढ़ाने की बात कही गई है। दरअसल सीधे नौकरी देना और नौकरी पाने के हालात पैदा करना दोनो अलग-अलग बातें हैं। इसी तरह महंगाई को लेकर भी सरकार खास चिंता में नहीं दिखी। उसने जनता को सीधे मिलने वाली किसी राहत का ऐलान नहीं किया।
जहां तक किसानों की बात है तो बजट में कृषि और उससे जुड़े सेक्टरों के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपये की घोषणा हुई है। लेकिन किसानों की एमएसपी को कानूनी आधार देने की मांग का कोई जिक्र नहीं है। यहां तक कि किसान सम्मान निधि भी नहीं बढ़ाई गई है।
मोदी सरकार का एक बड़ा समर्थक देश का मध्यम वर्ग रहा है। लेकिन बजट में आयकर छूट व स्टैंडर्ड डिडक्शन वृद्धि के रूप में ऊंट के मुंह में जीरे जैसी राहत दी गई है। क्योंकि जो टैक्स स्लैब बनाए गए हैं, वो इतने छोटे हैं कि एक वेतन वृद्धि और डीए में ही स्लैब बदल सकता है। न्यू टैक्स रिजीम में स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50 हजार रुपये से बढ़ाकर 75 हजार रुपये कर दिया गया है। साथ ही न्यू टैक्स रिजीम में टैक्स स्लैब में बदलाव किया गया है। वित्त मंत्री का दावा है कि इससे 10 लाख रुपये से ज्यादा वेतन पाने वालों को सालाना 17 हजार 500 रुपये तक की बचत होगी। लेकिन पुराने टैक्स रिजीम में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
देश में अधोसंरचना विकास और सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने की बात है। पूर्वोदय नाम से पूर्व व पूर्वोत्तर के राज्यों के विकास के लिए योजना है। समूचे बजट में सबसे ज्यादा मेहरबानी बिहार और आंध्र पर ही दिखती है। यहां तक कि भाजपा शासित यूपी, मप्र, राजस्थान, छग आदि ब़ड़े राज्यों को भी ज्यादा कुछ नहीं मिला है। ऐसे में विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्य जैसे कि पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु, केरल आदि को तो उम्मीद भी रखनी नहीं चाहिए थी। विपक्षी दल इसे बजट में राजनीतिक भेदभाव के रूप में देख रहे हैं। इसी तरह देश में बढ़ती रेल दुर्घटनााअों के मद्दे नजर रेल अधोसंरचना विकास के लिए ज्यादा रकम तथा सुरक्षा के बेहतर उपाय की बजट में नजर नहीं आए। किसी नई रेल का ऐलान भी नहीं हुआ। कैपिटल गेन टैक्स में राहत की बजाए उसे बढ़ाने के बजट प्रस्ताव से शेयर बाजार उठने की जगह और गिर गया।
कुलमिलाकर मोदी सरकार यह मान कर चल रही है कि दो नेताअों को साधने से पूरी सरकार पांच सालों के लिए सध जाएगी। इसमें यह अतिआत्मविश्वास भी छिपा है कि जनता आजादी की शताब्दी मनने तक भाजपा को ही सत्ता में बनाए रखेगी। आम जनता क्या चाहती है और क्या सोच रही है, इसकी सरकार को ज्यादा चिंता है, ऐसा बजट में तो नहीं लगता। लिहाजा यह बजट तात्कालिक समस्याअों के समाधान के लिए नहीं बल्कि सुनहरे और विकसित भारत के सपने को साकार करने की दिशा में एक और कदम तथा किसी महापूजा के पहले किए जाने वाले रस्मी आचमन की तरह है। आशय यह कि स्वर्णिम भारत बनाना है तो कुछ परेशानियां तो झेलनी ही होंगी।
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