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अपने विचारों के लिए साहित्यकार जोखिम उठाएं

Updated on 13-12-2023 05:02 AM
मूल्य से कभी भी समझौता न करने वाले प्रखर समाजवादी नेता व चिंतक रघु ठाकुर पूरे देश में घूम-घूम कर विचारों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए अलग जगह रहे हैं। विजय देवनारायण साही शताब्दी समारोह में साहित्यकारों को उनके कर्तव्यों का बोध कराते हुए रघु ठाकुर ने कहा है कि साहित्यकारों को अपने विचारों के लिए जोखिम उठाने की जरूरत है। रघु ठाकुर ने जो कुछ कहा है वह आज समय की जरूरत है क्योंकि यदि आपको अपने विचार स्वतंत्रतापूर्वक रखना है तो उन्हें जोखिम उठाने के लिए भी हमेशा तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि और लेखक विजयदेव नारायण साही ने साहित्य को कर्म से जोड़ने का जोखिम उठाया। असल साहित्यकार वही है जो विचारों के लिए जोखिम उठाए। 
         रघु ठाकुर ने  कहा कि साहित्यकार की जीभ कुत्ते की दुम नहीं, जो कहीं भी हिलाए। 
ठाकुर ने कहा कि साही जी डॉ. राममनोहर लोहिया जी के बहुत नजदीक थे। साही जी का चिंतन लोहिया जी की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करता है। लोहिया जी और साही जी के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों और समाजवादी विचारों को लेकर गहन चर्चा होती थी। मुख्य अतिथि प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह ने साही को याद करते हुए कहा कि हम जैसे लोग अपने विद्यार्थी जीवन से ही विजयदेव नारायण साही जैसे साहित्यकारों को पढ़कर समृद्ध होते रहे हैं। हमारे पुरखों को आजादी पसंद थी और साही जी असल मायनों में आजादी का अर्थ समझते थे।
     संस्कृत के जाने-माने विद्वान प्रोफेसर राधवल्लभ त्रिपाठी का कहना था कि  जब मैंने पहली बार साही जी को सागर में सुना था तब मुझे लगा कि उनके सोचने और बोलने का तरीका औरों से बहुत अलग है। साहित्यकार मुकेश वर्मा ने कहा कि साहित्यकार को यह चुनना पड़ता है कि वह लोक के साथ या अभिजात्य के साथ। साही जी का चिंतन लोक के साथ था। वर्मा का कहना पूरी तरह से समसामयिक और प्रासंगिक है कि विजय देवनारायण साही कवि और साहित्यकार के साथ शोषित और वंचितों की आवाज थे।
      माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी ने कहा कि हम जिस अज्ञानता के दौर से गुजर रहे हैं, उस दौर में साही जी जैसे लोगों की बहुत जरूरत है। साहित्यकारों को संबोधित करते हुए जहां रघु ठाकुर साहित्यकारों को उनका कर्तव्यबोध याद दिला रहे थे तो वहीं दूसरी ओर आज के ही दिन अपने राजनीतिक दल लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुए उन्होंने न केवल कांग्रेस पार्टी को आईना दिखाया बल्कि उसे उसकी कमजोरी का भी एहसास कराया। रघु ठाकुर ने कहा कि हमारा संगठन कमजोर है, इसलिए हम वांछित परिणाम नहीं पा सके लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अपने राजनैतिक दायित्व को पूरा नहीं किया और गठबंधन को वैचारिक, व्यापक और मजबूत बनाने का कोई प्रयास नहीं किया। इतना ही नहीं कांग्रेस ने गठबंधन के विरुद्ध अपमानित और उपेक्षित कार्य किया। उन्होंने कहा कि डॉक्टर लोहिया की कल्पना के अनुसार न्यूनतम और समयबद्ध कार्यक्रम पर आधारित गठबंधन बनना चाहिए और उसे लेकर जनता में जाना चाहिए। रघु ठाकुर का यह कथन  पूरी तरह से प्रासंगिक है कि विचारधारा और सिद्धांतों पर आधारित गठबंधन ही जनता को दिशा दे सकता है और उसके बीच अपनी जगह बना सकता है। रघु ठाकुर ने कहा कि दुनिया में जो युद्ध हो रहे हैं वह मानवता के भविष्य के लिए चिंताजनक हैं। डॉ लोहिया कहते थे कि बालिग मताधिकार के आधार पर विश्व-संसद बनना चाहिए और यही युद्ध का हल है। उन्होंने उत्तराखंड में सुरंग फटने की घटना तथा मजदूरों के सुरक्षित निकालने पर प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि हिमालय को लेकर एक समग्र नीति बनना चाहिए। आज के समय में जहां एक ओर साहित्यकारों को जोखिम उठाने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को भी अधिक चौकन्ना और सजग रहने की जरूरत है तथा इस दिशा में रघु ठाकुर ने जो कुछ कहा है उस पर दोनों को ही गहन चिंतन मनन की जरूरत के साथ ही जहां जो जरूरी बदलाव हो वह करने की दरकार है।
-अरुण पटेल
-लेखक ,संपादक 

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