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तीसरे दिन होती है 'मां चंद्रघंटा' की पूजा, मां चंद्रघण्टा और कूष्माण्डा देवी की पूजा एक ही दिन होगी

Updated on 09-10-2021 03:02 PM
धार्मिक दृष्टि से नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व माना गया है. एक वर्ष में दो नवरात्रि के पर्व आते हैं. जिसमें दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. शेष दो को चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि के नामों से जाना जाता है. इन सभी नवरात्रि में शरद नवरात्रि को अत्यंत विशेष माना गया है. पंचांग के अनुसार 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार से शरद नवरात्रि का पर्व आरंभ हो चुका है. शास्त्रों के अनुसार आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शरद नवरात्र  का आरंभ माना जाता है. इस वर्ष नवरात्रि में विशेष संयोग बनने जा रहा है I

नौ दिन की नहीं आठ दिन की है नवरात्रि

वर्ष 2021 में शरद नवरात्रि 9 दिनों की नहीं है. इस बार पंचांग के अनुसार ऐसा विशेष संयोग बना है कि नवरात्रि का पर्व आठ दिनों का ही होगा. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इस वर्ष एक तिथि का क्षय हो रहा है. जिसका अर्थ होता है कि हिंदू कैलेंडर की दो तिथियां एक ही दिन पड़ रही हैं. इस वर्ष शरद नवरात्रि की तृतीया की तिथि और चतुर्थी की तिथि 9 अक्टूबर 2021, शनिवार को ही पड़ रही हैं. जिस कारण इस वर्ष नवरात्रि का पर्व 9  का नहीं 8 दिन का ही है.

मां चंद्रघण्टा और कूष्माण्डा देवी की पूजा एक ही दिन होगी  (
तृतिया और चतुर्थी एक ही दिन)
पंचांग के अनुसार 8 अक्टूबर, शुक्रवार को तृतीया तिथि का आरंभ प्रात: 10 बजकर 50 मिनट पर हो रहा है. 9 अक्टूबर, शनिवार को प्रात: 7 बजकर 51 मिनट पर तृतीया तिथि का समापन होगा I इसके बाद चतुर्थी की तिथि प्रारंभ होगी. इस दिन मां चंद्रघण्टा औश्र कूष्माण्डा देवी की पूजा की जाएगी I

नवरात्रि का तीसरा दिन- माता चंद्रघंटा और माता कूष्मांडा को पसंद है खास रंग
नवरात्रि का तीसरा दिन विशेष है. 9 अक्टूबर को तृतीया और चतुर्थी तिथि की पूजा एक ही दिन की जाएगी. इसलिए इस दो देवियों की पूजा का संयोग बना हुआ है. इस दिन मां चंद्रघंटा और मां कूष्मांडा देवी की पूजा की जाएगी. मां चंद्रघंटा को भूरा रंग यानि ग्रे कलर और माता कूष्मांडा को नारंगी रंग पसंद है I

इन बातों का ध्यान रखें
तृतीया और चतुर्थी की तिथि में मां की पूजा के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. इन दोनों देवियों की पूजा में विशेष नियमों का पालन किया जाता है. स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें. इस दिन क्रोध, वाणी दोष और अहंकार से दूर रहना चाहिए. विधि पूर्वक पूजा करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है.

शारदीय नवरात्र के तीसरे दिन माँ चन्द्र घंटा के दर्शन पूजन की मान्यता है. काशी में माता रानी चंद्रघंटा के दर्शन करने से सभी कष्ट दूर हो जाते है. माँ चंद्रघंटा का मन्दिर काशी में चौक पर स्थित हैं. यहाँ माता के दर्शनों को आने वाले भक्तों की भीड़ नवरात्र में बहुत देखने को मिलती है. माता के अलौकिक स्वरूप का दर्शन करने के लिए भक्त माला, चुनरी, नारियल लेकर लंबी- लंबी कतारों में खड़े रहते हैं I
काशी के चौक में माता चन्द्रघण्टा अपने दिव्य स्वरूप के साथ विराजती है. माँ के इस स्वरूप में गले में चन्द्रमा विराजती है. माता के घण्टे की आवाज सुनकर असुरों में भय का माहौल व्याप्त हो जाता हैं. ऐसी मान्यता है की जब असुरों के बढ़ते प्रभाव से देवता त्रस्त हो गए तो असुरो का नाश करने के लिए देवी माँ चन्द्र घंटा के रूप में अवतरित हुई ,और असुरो का संहार कर माँ ने देवताओ के संकट को दूर दिया I
आज यहाँ नवरात्रि के तीसरे दिन भक्तों की भारी भीड़ को देखकर माता के प्रति अटूट श्रद्धा का अंदाजा लगाया जा सकता है. यहां सभी भक्त अपनी मनोकामना को लेकर आये हैं. माता को चढ़ावा स्वरूप यहाँ लाल चुनरी, फूल माला नारियल चढ़ाकर अपने कष्टों को दूर करने की कामना करते है I

तृतीया तिथि पर मां के तृतीय स्वरूप मां चंद्रघंटा  की पूजा- अर्चना की जाती है।


ब्रह्म मुहूर्त- 04:40 ए एम से 05:29 ए एम

अभिजित मुहूर्त- 11:45 ए एम से 12:31 पी एम

विजय मुहूर्त- 02:05 पी एम से 02:51 पी एम

गोधूलि मुहूर्त- 05:46 पी एम से 06:10 पी एम

अमृत काल- 08:48 ए एम से 10:15 ए एम

रवि योग- 06:18 ए एम से 04:47 पी एम

पूजा विधि

  • सुबह उठकर स्नान करने के बाद पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
  • धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
  • मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
मंत्र और स्तोत्र
ॐ  देवी चंद्रघंटायै नमः ||
 पिंडज प्रवररुधा चन्दकोपास्त्रकैरियुता |
 प्रसादम तनुते महयम चंद्रघण्टेती विश्रुत ||

मां चंद्रघंटा की कहानी 
जब भगवान शिव राजा हिमवान के महल में पार्वती से शादी करने पहुंचे, तो वे अपने बालों में कई सांपों के साथ भूत, ऋषि, भूत, भूत, अघोरी और तपस्वियों की एक अजीब शादी के जुलूस के साथ एक भयानक रूप में आए।  यह देख पार्वती की मां मैना देवी बेहोश हो गईं।  तब पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रूप धारण किया था।  फिर उन्होंने भगवान शिव को एक आकर्षक राजकुमार का रूप लेने के लिए मना लिया।  बाद में दोनों ने शादी कर ली।

मां चंद्रघंटा की पूजा का महत्व  

शिव महा पुराण के अनुसार, चंद्रघंटा चंद्रशेखर के रूप में भगवान शिव की "शक्ति" है।  शिव के प्रत्येक पहलू शक्ति के साथ हैं, इसलिए वे अर्धनारीश्वर हैं।  उसका रंग सुनहरा है। ऐसा कहा जाता है कि राक्षसों के साथ उसकी लड़ाई के दौरान, उसकी घंटी से उत्पन्न ध्वनि ने हजारों दुष्ट राक्षसों को मृत्यु देवता के निवास में भेज दिया।  देवी हमेशा अपने भक्तों के शत्रुओं का नाश करने के लिए उत्सुक रहती हैं और उनके आशीर्वाद से उनके भक्तों के जीवन से सभी पाप, कष्ट और नकारात्मक तरंगें समाप्त हो जाती हैं I
मां चंद्रघंटा की आरती-


जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।

पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।

चंद्र समान तुम शीतल दाती।चंद्र तेज किरणों में समाती।

क्रोध को शांत करने वाली।

मीठे बोल सिखाने वाली।

मन की मालक मन भाती हो।

चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।

 

सुंदर भाव को लाने वाली।

हर संकट मे बचाने वाली।

हर बुधवार जो तुझे ध्याये।

श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।

मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।

सन्मुख घी की ज्योति जलाएं।

शीश झुका कहे मन की बाता।

पूर्ण आस करो जगदाता।

कांचीपुर स्थान तुम्हारा।

करनाटिका में मान तुम्हारा।

नाम तेरा रटूं महारानी।

भक्त की रक्षा करो भवानी।

मां चंद्रघंटा का भोग- मां को केसर की खीर और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए।  पंचामृत, चीनी व मिश्री भी मां को अर्पित करनी चाहिए।


चतुर्थी तिथि पर मां के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्माण्डा की पूजा- अर्चना की जाती है।

माँ कुष्मांडा व्रत कथा 

नवरात्रि के चतुर्थ दिन, मां कूष्मांडा जी की पूजा की जाती है। यह शक्ति का चौथा स्वरूप है, जिन्हें सूर्य के समान तेजस्वी माना गया है। मां के स्वरूप की व्याख्या कुछ इस प्रकार है, देवी कुष्मांडा व उनकी आठ भुजाएं हमें कर्मयोगी जीवन अपनाकर तेज अर्जित करने की प्रेरणा देती हैं, उनकी मधुर मुस्कान हमारी जीवनी शक्ति का संवर्धन करते हुए हमें हंसते हुए कठिन से कठिन मार्ग पर चलकर सफलता पाने को प्रेरित करती है। भगवती दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था। तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। अत: यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति हैं। इनकी आठ भुजाएं हैं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहां निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है।

इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान हैं। मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कूष्माण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। नवरात्र -पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरुप की ही उपासना की जाती है। इस दिन माँ कूष्माण्डा की उपासना से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

कूष्‍मांडा देवी मंत्र:
या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां कूष्मांडा आरती 

चौथा जब नवरात्र हो, कूष्मांडा को ध्याते।
जिसने रचा ब्रह्मांड यह, पूजन है उनका
आद्य शक्ति कहते जिन्हें, अष्टभुजी है रूप।
इस शक्ति के तेज से कहीं छांव कहीं धूप॥

कुम्हड़े की बलि करती है तांत्रिक से स्वीकार।
पेठे से भी रीझती सात्विक करें विचार॥

क्रोधित जब हो जाए यह उल्टा करे व्यवहार।
उसको रखती दूर मां, पीड़ा देती अपार॥
सूर्य चंद्र की रोशनी यह जग में फैलाए।
शरणागत की मैं आया तू ही राह दिखाए॥

नवरात्रों की मां कृपा कर दो मां
नवरात्रों की मां कृपा करदो मां॥

जय मां कूष्मांडा मैया।

जय मां कूष्मांडा मैया॥ 

मां कूष्मांडा का भोग- मां कूष्मांडा को हलवे और दही का भोग लगाएं।





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