हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का अधिक महत्व माना गया है और इस दिन गंगा स्नान करने का विधान होता है. स्नान के बाद दान करना बहुत ही फलदायी माना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक पूर्णिमा आज यानी 15 नवंबर 2024, शुक्रवार को है. धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट मिट जाते हैं. साथ ही सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है.
ऐसा कहा जाता है कि अगर कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान किया जाए, तो व्यक्ति को सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है और सुख-संपन्नता बनी रहती है. इसके अलावा, कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने से व्यक्तियों को सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है. अब ऐसे में अगर आप कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रख रहे हैं, तो इस दिन व्रत कथा का पाठ अवश्य करें. कहा जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा की पूजा के बाद कथा का पाठ करने से लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. ऐसे में चलिए कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक कहानियों में तारकासुर नामक राक्षस था. तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली उसके तीन पुत्र थे. तारकासुर ने धरती और स्वर्ग पर आतंक मचा रखा था, इसलिए देवताओं ने भगवान शिव से तारकासुर को मार डालने की मांग की. जब भगवान शिव ने तारकासुर को मार डाला तो सभी देवता बहुत खुश हुए. लेकिन उसके तीनों पुत्रों को यह सुनकर बहुत दुःख हुआ और उन्होंने ब्रह्माजी की तपस्या की ताकि वे अपने पिता के वध का बदला ले सकें.
तीनों की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने उनसे वरदान मांगे. तीनों ने ब्रह्माजी से जीवन भर अमर रहने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई और वरदान नहीं मांगा. तब तीनों ने एक और वरदान की कल्पना की, इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगर बनाने के लिए कहा. वे चाहते थे कि सभी इनमें बैठकर पूरी पृथ्वी और आकाश में घूम सकें. जब हम एक हजार साल बाद एक हो जाएं और तीनों नगर एक हो जाएं, तो जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट कर सकता है, वही हमारी मृत्यु होगी. ये वरदान ब्रह्माजी ने उन्हें दे दिए.
ब्रह्माजी के आदेश पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगर बनाए. तारकक्ष के लिए सोना, कमला के लिए चांदी और विद्युन्माली के लिए लोहा था. तीनों ने मिलकर तीनों राज्यों को नियंत्रित किया. इन तीन राक्षसों से भयभीत इंद्र देवता भगवान शंकर की शरण में गए. इंद्र देव की बात सुनकर भगवान शिव ने इन दानवों को मार डालने के लिए एक अद्भुत रथ बनाया.
इस भव्य रथ में हर चीज देवताओं से बनाई गई थी. सूर्य और चंद्रमा से पहिए बने. रथ पर चार घोड़े होते हैं: इंद्र, वरुण, यम और कुबेर. शेषनाग प्रत्यंचा बन गए और हिमालय धनुष बन गया. भगवान शिव खुद एक बाण बन जाएं और अग्निदेव बाण की नोंक बन जाएं. भगवान शिव खुद इस अद्भुत रथ पर सवार हुए. तीनों भाइयों और देवताओं से निर्मित इस रथ के बीच भयानक युद्ध हुआ. जब ये तीनों रथ एक सीध में मिले, भगवान शिव ने बाण छोड़कर तीनों को मार डाला.
इन तीनों भाइयों के वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी नाम दिया गया. जिस दिन यह सब हुआ, वह कार्तिक पूर्णिमा का दिन था. तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की पूजा की जाने लगी. कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस कथा का पाठ करने से महादेव की कृपा प्राप्त होती है. साथ ही जो व्यक्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी मां की पूजा करता है और इस कथा का पाठ करता है, उसे धन-धान्य की प्राप्ति होती है.
भगवान विष्णु की आरती
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख संपत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीश जी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।
भगवान शिव की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥