Select Date:

क्या कछुआ-खरगोश की राजनीतिक रेस में भी कछुआ ही बाजी मारने में कामयाब होगा?

Updated on 18-03-2024 10:47 AM
हममे से हर किसी ने कछुए और खरगोश की कहानी जरूर सुनी होगी। खरगोश तेज रफ़्तार के बाद भी अति-आत्मविश्वास का शिकार हो जाता है और कछुआ अपनी धीमी रफ़्तार से लगातार आगे बढ़ते हुए जीत सुनिश्चित कर लेता है। अगर यूं कहें कि आगामी लोकसभा चुनाव के वर्तमान परिदृश्य में कुछ ऐसी ही स्थिति बनती नजर आ रही है तो संभवतः बहुत से राजनीतिक जानकर इसे मनगढंत कहानी बताएं, लेकिन जैसे जरुरी नहीं कि हर बार तेज तफ्तार ही जीत का आधार बने, वैसे ही यह भी संभव है कि अति-आत्मविश्वास के घोड़े पर सवार एनडीए या बीजेपी को कटी पतंग की तरह गोते खा रही इंडिया अलायंस या कांग्रेस के हाथों मुँह की खानी पड़ जाए। क्या पता जिस कॉन्फिडेंस के साथ पीएम मोदी ने बीजेपी के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 पार का लक्ष्य रखा है, वह सिर्फ एक नारे तक ही सीमित रह जाए, और दिशा विहीन समझे जाने वाली कांग्रेस या विपक्षी गठबंधन, अपने सतत प्रयास के भरोसे, ताबूत की अंतिम कील बनकर उभरे। चूंकि पीएम मोदी का करिश्मा कम से कम बीजेपी कार्यकर्ता और समर्थकों पर तो इस कदर सवार है कि यदि उन्हें नींद से भी उठा कर पूछें तो अबकी बार चार सौ पार का नारा लगाते ही नजर आएंगे लेकिन शायद उनका यही उत्साह उन्हें मतदान केंद्रों तक भी न पहुंचा पाए। चूँकि सब (एनडीए के संभावित मतदाता) यही मानकर चल रहे हैं कि 'आएगा तो मोदी ही' और उनकी यही सोच उन्हें ये भी सोचने पर मजबूर कर दे कि जब आना मोदी को ही है तो फिर उनके एक मत से क्या ही फर्क पड़ना है। और यदि यह विचार इसी दिशा में आगे बढ़ा तो बीजेपी या एनडीए को सतर्क हो जाने की जरुरत है। बहरहाल इसे भी राजनीति में पकाये जाने वाले ख़याली पुलाव की श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन कुछ तकनीकी पहलु भी हैं जो फिलहाल कछुए की भूमिका में चल रहे विपक्षी गठबंधन के लिए खरगोश की भांति एकतरफा रेस जीतती दिख रही एनडीए से बाजी छीनने की ओर इशारा करते हैं। 
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर मोदी ब्रांड के तहत अपनी तैयारियों में जुटी बीजेपी या एनडीए इस कदर आश्वस्त हैं कि मोदी लहर को आंधी बुला रहे हैं, जिसमें पूरे विपक्ष को धूल की तरह उड़ाने की उम्मीद की जा रही है। कुछ हद तक इसे सही भी माना जा सकता है क्योंकि विपक्ष चुनाव से दो महीने पूर्व भी संगठित नहीं दिख रहा है और एनडीए या बीजेपी के लिए बूथ स्तर पर भी मजबूत संगठन ही सबसे बड़ी ताकत बना हुआ है। लेकिन महज चुनावी माहौल सेट करने के लिए सोशल मीडिया पर जो मोदी का परिवार तैयार हो रहा है, वह किसके दम पर दक्षिण के राज्यों में बढ़ते विरोध को काबू कर पायेगा? क्योंकि मोदी तो 2019 में भी अपनी लहर चला रहे थे लेकिन दक्षिण के राज्यों ने खुद को इस लहर से दूर रखा था। फिलहाल तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल व आँध्रप्रदेश में महज चार सीटों पर बनी बीजेपी के लिए दक्षिण की लगभग सवा सौ सीटों को भेद पाना आसान नहीं होगा। दूसरी ओर कांग्रेस के पास दक्षिण के पांच राज्यों में बेहतर परफॉर्म करने का ट्रैक रिकॉर्ड दर्ज है। हाल में हुए मूड ऑफ़ द नेशन सर्वे में भी 132 सीटों पर 76 सीटें विपक्षी गठबंधन के पाले में ही दिखाई जा रही हैं।  
चूंकि चार सौ पार जाने के लिए प्रचंड बहुमत ही एक मात्र सहारा है ऐसे में न केवल हिंदी भाषी बल्कि पूरे देश से एनडीए को भरपूर समर्थन की दरकार होगी। लेकिन फिलहाल उत्तर भारत में सौ फीसदी समर्थन का खांका तैयार कर चल रही बीजेपी को पिछले कुछ पन्ने पलटने की जरुरत है। उत्तर भारत के अंदर आने वाली 320 सीटों के लिए एनडीए या खासकर खुद बीजेपी के लिए पंजाब की 13 सीटों समेत यूपी की 80, राजस्थान की 25 जैसी सभी सीटें जीतने का भारी दवाब होगा। क्योंकि बीजेपी को सहयोगी दलों के भरोसे रहने से अधिक खुद को जोर लगाना होगा, और अपने दम पर ही अधिकतम सीटें हासिल करनी होगी। महाराष्ट्र की 48 सीटें भी ऐसी ही हैं, वहीं बंगाल में सीटों की गिनती बढ़ाने की चुनौती भी बीजेपी या एनडीए के लिए आसान नहीं है। ऐसे में यह कह देना कि इस बार भी मोदी की आंधी में सब धुंआ धुंआ हो जाएगा तो गलत होगा। क्योंकि फिलहाल विपक्षी गठबंधन भले कमजोर नजर आ रहा हो और कांग्रेस को लगातार बागी होते नेताओं का दर्द झेलना पड़ रहा हो लेकिन जम्मू-कश्मीर से 370 हटने के बाद की कोई चुनावी स्थिति सामने न आने, चुनावी लाभ के लिए सीएए को लागू करने और इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के रुख से घिरी बीजेपी के लिए सिर्फ राम मंदिर, पीएम मोदी या योगी आदित्यनाथ का चेहरा ही काम नहीं आएगा। विपक्ष के पास भी यही मुद्दा व अवसर है जिसके सहारे आग में घी का किरदार निभाने की कोशिश की जा सकती है और यदि यह कोशिश सही दिशा में आगे बढ़ती है तो ये कहना भी गलत नहीं होगा कि कछुआ-खरगोश की इस राजनीतिक रेस में भी कछुआ ही बाजी मारने में कामयाब होगा।

- अतुल मलिकराम, लेखक,राजनीतिक रणनीतिकार

अन्य महत्वपुर्ण खबरें

 03 May 2025
केन्द्र मोदी सरकार द्वारा विपक्ष के दबाव के चलते इस साल देश में जाति गणना कराने के फैसले के साथ ही मंडल राजनीति 3.0 का आगाज भी हो गया है।…
 30 April 2025
पाकिस्तान को हमेशा गद्दारी करने पर भी भारत ने बड़ा हृदय रखकर क्षमादान परंतु पाकिस्तान हमेशा विश्वास घाट पर आतंकवादी षड्यंत्र किए  पाकिस्तान ने हमारी सहनशक्ति के अंतिम पड़ाव पर…
 27 April 2025
12 सबसे बेहतरीन विरासतें..1. बुद्धिमत्ता (Wisdom)बुद्धिमत्ता स्कूलों में नहीं सिखाई जाती, यह जीवन के अनुभवों से प्राप्त होती है। माता-पिता ही सबसे अच्छे शिक्षक होते हैं। अपने बच्चों को मार्गदर्शन…
 24 April 2025
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल में विधानसभाअों द्वारा पारित विधेयको को सम्बन्धित राज्यपालों द्वारा अनंत काल तक रोक कर ‘पाॅकेट वीटो’ करने की प्रवृत्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय…
 17 April 2025
रायपुर I छत्तीसगढ़ ने वित्तीय वर्ष 2025 में औद्योगिक निवेश के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। प्रोजेक्ट टूडे सर्वे द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 218 नई…
 14 April 2025
भारतीय संविधान के शिल्पी डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन से जुड़ा एक रोचक प्रसंग याद आता है जब एक बार विदेशी पत्रकारों का प्रतिनिधि मंडल भारत भ्रमण पर आया। यह प्रतिनिधि…
 13 April 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों यानी इंडिया ब्लाक पर हमला करते हुए कहा है कि विपक्ष का एकमेव लक्ष्य परिवार का साथ और परिवार का विकास है। मध्यप्रदेश के…
 11 April 2025
महात्मा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था।  ज्योतिबा फुले बचपन से ही सामाजिक समदर्शी तथा होनहार मेधावी छात्र थे,  आर्थिक कठिनाइयों के कारण …
 10 April 2025
मप्र के छतरपुर जिले के गढ़ा ग्राम स्थि‍त बागेश्वर धाम के स्वयंभू पीठाधीश पं.धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने अपने इलाके में ‘पहला हिंदू ग्राम’ बसाने का ऐलान कर नई बहस को…
Advertisement