हिन्दू धर्म में किसी भी सुबह कार्य को करने से पहले गणेश जी की पूजा करना आवश्यक मन गया है क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता व् ऋद्धि -सीधी का स्वामी कहा जाता है। इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओ की पूर्ति होती है व् विघ्नों का विनाश होता है।
गणेश जी अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्दि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है। गणेश का अर्थ है - गणों का ईश अर्थात गणों का स्वामी। किसी पूजा आराधना, अनुष्ठान व् कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न - बाधा न पहुंचाए, इसलिए सर्वप्रथम गणेश पूजन कर उनकी कृपा प्राप्त होती है। प्रत्येक शुभकार्य के पूर्व "श्री गणेशाय नमः " का उच्चारण कर यह मंत्र बोल जाता है :
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ । निर्विघ्नं कुरु में देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
अर्थात - "विशाल आकार और टेढ़ी सूंढ़ वाले करोडो सूर्यो के सामान ते वाले हे देव (गणेश जी) , समस्त कार्यो को सदा विघ्नरहित पूर्ण (सम्पन्न) करे। वेदो में भी गणेश जी की महत्ता व् उनके विघ्नहर्ता सवरूप की ब्रह्मरूप में स्तुति व् आवाहन करते हुए कहा गया है की गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कबिनामु पश्रवस्तमम । ज्येष्ठराजं ब्र्ह्मण्णा ब्रह्मणसप्त आ न: शृण्वन्नतिभि: सीद सादनम।। अर्थात तुम देवगणो के प्रभु होने से गणपति हो, ज्ञानियों में श्रेष्ठ हो, उत्कृष्ठ ऋतिवलो में श्रेष्ठ हो, तुम शिव के ज्येष्ठ पुत्र हो, अतः हम आदर से तुम्हारा आव्हान करते है। हे ब्रह्मणसप्त गणेश, तुम अपने समस्त शक्तियों के साथ इस आसान पर आओ।
दूसरे मंत्र में कहा गया है की - नि शु सीद गणपते गणेशु त्वामाहु विर्प्रत्म: कबिनाम। न रीते त्वत्त क्रियते की चनारे महामक मघवाक मघवचित्रमर्च।।
अर्थात - 'हे गणपते' आप देव आदि समूह में विराजिये क्योंकि समस्त बुद्धिमानो में आप ही श्रेष्ठ है, आपके बिना समीप या दूर का कोई कार्य नहीं किया जा सकता. हे पूज्य आदरणीय गणपति, हमारे सत्कार्यों को निर्विघ्न पूरा करने की कृपा कीजिये।
गणेशजी विधा के देवता है, साध्ना में उच्स्तरीय दूरदर्शिता आ जाये, उचित - अनुचित, कर्तव्य -अकर्तव्य की पहचान हो जाये, इसलिए सभी शुभकार्यो में गणेश पूजन का विधान बताया गया है।
गणेश जी की पूजा सबसे पहले क्यों होती है इसके पीछे एक पद्मपुराण की कथा भी है जो इस प्रकार है सृष्टि के आरम्भ में जब यह प्रसन्न उठा कि प्रथमपूज्य किसे माना जाए तो समस्त देवतागण ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. ब्रह्मा जी ने कहा कि जो कोई पृथ्वी कि परिकर्मा सबसे पहले कर लगा, उसे ही प्रथम पूजा जायेगा. इस पर सभी देवतागण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर परिक्रमा हेतु चल पडे। चूंकि गणेशजी का वाहन चूहा है और उनका शरीर स्थूल, तो ऐसे में वे परिक्रमा कैसे कर पाते! इस समस्या को सुलझाया देवर्षि नारद ने। नारद ने उन्हें जो उपाय सुझाया, उनके अनुसार गणेशजी ने भूमि पर "राम" नाम लिखकर उसकी सात परिक्रमा की और ब्रह्माजी के पास सबसे पहले पहुंच गए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें प्रथमपूज्य बताया, क्योंकि "राम" नाम साक्षात् श्रीराम का स्वरूप है और श्रीराम में ही संपूर्ण ब्रह्मांड निहित है I
शिवपुराण में भी एक ऐसी ही कथा बताई गई है इसके अनुसार एक बार समस्त देवता भगवान शंकर के पास यह समस्या लेकर पहुंचे कि किस देव को उनका मुखिया चुना जाए। भगवान शिव ने यह प्रस्ताव रखा कि जो भी पहले पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करके कैलाश लौटेगा, वहीं सर्वप्रथम पूजा के योग्य होगा और उसे ही देवताओं का स्वामी बनाया जाएगा। चूंकि गणेशजी का वाहन चूहा था जिसकी गति अत्यंत धीमी गति थी, इसलिए अपनी बुद्धि-चातुर्य के कारण उन्होंने अपने पिता शिव और माता पार्वती की ही तीन परिक्रमा पूर्ण की और हाथ जोडकर खडे हो गए। शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि तुमसे बढकर संसार में अन्य कोई इतना चतुर नहीं है। माता-पिता की तीन परिक्रमा से तीनों लोकों की परिक्रमा का पुण्य तुम्हें मिल गया, जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बडा है. इसलिए जो मनुष्य किसी कार्य के शुभारंभ से पहले तुम्हारा पूजन करेगा, उसे कोई बाधा नहीं आएगी। बस, तभी से गणेशजी अग्रपूज्य हो गए।
वाराहपुराण के अनुसार जब देवगणों की प्रार्थना सुनकर महादेव ने उमा की ओर निर्निमेष नेत्रों से देखा, उसकी समय के मुखरूपी से एक परम सुंदर, तेजस्वी कुमार वहां प्रकट हो गया. उसमें ब्रह्मा के सब गुण विद्यमान थे और वह दूसरा रूद्र जैसा ही लगता था. उसके रूप को देखकर पार्वती को क्रोध आ गया और उन्होंने शाप दिया कि हे कुमार! तू हाथी के सिर वाला, लंबे पेट वाला और सांपों के जनेऊ वाला हो जाएगा। इस पर शंकरजी ने क्रोधित होकर अपने शरीर को धुना, तो उनके रोमों से हाथी के सिर वाले, नीले अंजन जैसे रंग वाले, अनेक शस्त्रों को धारण किए हुए इतने विनायक उत्पन्न हुए कि पृथ्वी क्षुब्ध हो उठी, देवगण भी घबरा गए। तब ब्रह्मा ने महादेव से प्रार्थना की, "हे त्रिशूलधारी! आपके मुख से पैदा हुए ये विनायकगण आपके इस पुत्र के वश मे रहें. आप प्रसन्न होकर इन सबकों ऐसा ही वर दें. तब महादेव ने अपने पुत्र से कहा कि तुम्हारे भव, गजास्व, गणेश और विनायक नाम के होंगे। यह सब कू्रर दृष्टि वाले प्रचण्ड विनायक तुम्हारे भृत्य होंगे यज्ञादि कार्यो में तुम्हारी सबसे पहले पूजा होगी, अन्यथा तुम कार्य के सिद्ध होने मे विघ्न उपस्थित कर दोगे" इसके अनन्तर देवगणों ने गणेशजी की स्तुति की और शंकर ने उनका अभिषेक किया। एक बार देवताओं ने गोमती के तट पर यज्ञ प्रारंभ किया तो उसमें अनेक विघ्न पडने लगे, यज्ञ संपन्न नहीं हो सका। उदास होकर देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु से इसका कारण पूछा। दयामय चतुरानन ने पता लगाकर बताया कि इस यज्ञ मे श्रीगणेशजी विघ्न उपस्थित कर रहे है और यदि आप लोग विनायक को प्रसन्न कर ले, तब यज्ञ पूर्ण हो जाएगा। विधाता की सलाह से देवताओं ने स्नान कर श्रद्धा और भक्तिपूर्वक गणेशजी का पूजन किया. विघ्नराज गणेशजी की कृपा से यज्ञ निर्विघ्न संपन्न हुआ। तो इस प्रकार हम गणेश जी की सर्वप्रथम पूजा करते है ताकि काम में कोई बाधा ना आये !
बुधवार को गणेश जी की पूजा के लाभ
देवता भी अपने कार्यों की बिना किसी विघ्न से पूरा करने के लिए गणेश जी की अर्चना सबसे पहले करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि देवगणों ने स्वयं उनकी अग्रपूजा का विधान बनाया है। शास्त्रों में एक बार जिक्र आता है कि भगवान शंकर त्रिपुरासुर का वध करने में जब असफल हुए, तब उन्होंने गंभीरतापूर्वक विचार किया कि आखिर उनके कार्य में विघ्न क्यों पड़ा? तब महादेव को ज्ञात हुआ कि वे गणेशजी की अर्चना किए बगैर त्रिपुरासुर से युद्ध करने चले गए थे। इसके बाद शिवजी ने गणेशजी का पूजन करके उन्हें लड्डुओं का भोग लगाया और दोबारा त्रिपुरासुर पर प्रहार किया, तब उनका मनोरथ पूर्ण हुआ। सनातन एवं हिन्दू शास्त्रों में भगवान गणेश जी को, विघ्नहर्ता अर्थात सभी तरह की परेशानियों को खत्म करने वाला बताया गया है। पुराणों में गणेशजी की भक्ति शनि सहित सारे ग्रहदोष दूर करने वाली भी बताई गई हैं। हर बुधवार के शुभ दिन गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटे दूर होती हैं।
गणेश भगवान की सामान्य पूजा विधि
प्रातः काल स्नान ध्यान आदि से सुद्ध होकर सर्व प्रथम ताम्र पत्र के श्री गणेश यन्त्र को साफ़ मिट्टी, नमक, निम्बू से अच्छे से साफ़ किया जाए। पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की और मुख कर के आसान पर विराजमान हो कर सामने श्री गणेश यन्त्र की स्थापना करें। शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि गणेश भगवान को समर्पित कर, इनकी आरती की जाती है। अंत में भगवान गणेश जी का स्मरण कर ॐ गं गणपतये नमः का 108 नाम मंत्र का जाप करना चाहिए। बुधवार को यहां बताए जा रहे ये छोटे-छोटे उपाय करने से व्यक्ति को लाभ प्राप्त होता है। बिगड़े काम बनाने के लिए बुधवार को गणेश मंत्र का स्मरण करें- त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय। नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्। अर्थात भगवान गणेश आप सभी बुद्धियों को देने वाले, बुद्धि को जगाने वाले और देवताओं के भी ईश्वर हैं। आप ही सत्य और नित्य बोधस्वरूप हैं। आपको मैं सदा नमन करता हूं। कम से कम 21 बार इस मंत्र का जप जरुर होना चाहिए।
इसमें भगवान गणेश जी के बारह नामों का स्मरण किया गया है। इन नामों का जप अगर मंदिर में बैठकर किया जाए तो यह उत्तम बताया जाता है। जब पूरी पूजा विधि हो जाए तो कम से कम 11 बार इन नामों का जप करना शुभ होता है।
परिवार और व्यक्ति के दुःख दूर करने के सरल उपाय
बुधवार के दिन घर में सफेद रंग के गणपति की स्थापना करने से समस्त प्रकार की तंत्र शक्ति का नाश होता है।
धन प्राप्ति के लिए बुधवार के दिन श्री गणेश को घी और गुड़ का भोग लगाएं। थोड़ी देर बाद घी व गुड़ गाय को खिला दें। ये उपाय करने से धन संबंधी समस्या का निदान हो जाता है। परिवार में कलह कलेश हो तो बुधवार के दिन दूर्वा के गणेश जी की प्रतिकात्मक मूर्ति बनवाएं। इसे अपने घर के देवालय में स्थापित करें और प्रतिदिन इसकी विधि-विधान से पूजा करें। घर के मुख्य दरवाजे पर गणेशजी की प्रतिमा लगाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर पाती हैं।