Select Date:

उत्पन्ना एकादशी विशेष

Updated on 11-12-2020 06:33 AM
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि
प्रत्येक मास की कृष्ण व शुक्ल पक्ष को मिलाकर दो एकादशियां आती हैं। यह भी सभी जानते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन यह बहुत कम जानते हैं कि एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। एकादशी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थी जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा। इसी दिन से एकादशी व्रत शुरु हुआ था। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व माना जाता है इसलिये जानकारी होना जरूरी है कि एकादशी का जन्म कैसे और क्यों हुआ।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
वैसे तो प्रत्येक वर्ष के बारह महीनों में 24 एकादशियां आती हैं लेकिन मलमास या कहें अधिकमास को मिलाकर इनकी संख्या 26 भी हो जाती है। सबसे पहली एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को माना जाता हैं। चूंकि इस दिन एकादशी प्रकट हुई थी इसलिये यह दिन उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह दिसम्बर 11 गुरुवार के दिन स्मार्त (सन्यासी-एवं गृहस्थों) एवं दिसम्बर 12 शुक्रवार के दिन वैष्णव-निम्बार्क सम्प्रदाय से जुड़े साधको द्वारा मनाई जाएगी। एकादशी के जन्म लेने की कथा कुछ इस प्रकार है। सतयुग में चंद्रावती नगरी में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग राज्य किया करते थे। मुर नामक उनका एक पुत्र भी था। मुर बहुत ही बलशाली दैत्य था। उसने अपने पराक्रम के बल पर समस्त देवताओं का जीना मुहाल कर दिया। इंद्र आदि सब देवताओं को स्वर्गलोक से खदेड़कर वहां अपना अधिकार जमा लिया। कोई भी देवता उसके पराक्रम के आगे टिक नहीं पाता था। सब परेशान रहने लगे कि कैसे इस दैत्य से छुटकारा मिला। देवताओं पर जब भी विपदा आती तो वे सीधे भगवान शिव शंकर के पास पंहुचते। इस बार भी ऐसा ही हुआ। इंद्र के नेतृत्व में समस्त देवता कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास पंहुची और अपनी व्यथा सुनाई। भगवान शिव ने उनसे कहा कि भगवान विष्णु ही इस कार्य में उनकी सहायता कर सकते हैं। अब सभी देवता क्षीर सागर पंहुचे जहां श्री हरि विश्राम कर रहे थे। जैसे ही उनकी आंखे खुली तो देवताओं को सामने पाकर उनसे आने का कारण पूछा। देवताओं ने दैत्य मुर के अत्याचार की समस्त कहानी कह सुनाई। भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन देकर भेज दिया। इसके बाद हजारों साल तक युद्ध मुर और श्री हरि के बीच युद्ध होता रहा लेकिन मुर की हार नहीं हुई। भगवान विष्णु को युद्ध के बीच में ही निद्रा आने लगी तो वे बद्रीकाश्रम में हेमवती नामक गुफा में शयन के लिये चले गये। उनके पिछे-पिछ मुर भी गुफा में चला आया। भगवान विष्णु को सोते हुए देखकर उन पर वार करने के लिये मुर ने जैसे ही हथियार उठाये श्री हरि से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई जिसने मुर के साथ युद्ध किया। सुंदरी के प्रहार से मुर मूर्छित हो गया जिसके बाद उसका सर धड़ से अलग कर दिया गया। इस प्रकार मुर का अंत हुआ जब भगवान विष्णु नींद से जागे तो सुंदरी को देखकर वे हैरान हो गये। जिस दिन वह प्रकट हुई वह दिन मार्गशीर्ष मास की एकादशी का दिन था इसलिये भगवान विष्णु ने इनका नाम एकादशी रखा और उससे वरदान मांगने की कही। तब एकादशी ने मांगा कि जब भी कोई मेरा उपवास करे तो उसके समस्त पापों का नाश हो। तब भगवान विष्णु ने एकादशी को वरदान दिया कि आज से प्रत्येक मास की एकादशी का जो भी उपवास रखेगा उसके समस्त पापों का नाश होगा और विष्णुलोक में स्थान मिलेगा। मुझे सब उपवासों में एकादशी का उपवास प्रिय होगा। तब से लेकर वर्तमान तक एकादशी व्रत का माहात्म्य बना हुआ है।
एकादशी उपवास की शुरुआत
जो व्रती एकादशी के उपवास को नहीं रखते हैं और इस उपवास को लगातार रखने का मन बना रहे हैं तो उन्हें मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी अर्थात उत्पन्ना एकादशी से इसका आरंभ करना चाहिये क्योंकि सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में इसी एकादशी से इस व्रत का प्रारंभ हुआ ऐसा माना जाता है। 
उत्पन्ना एकादशी व्रत व पूजा विधि
एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि को ही आरंभ हो जाती है। उपवास का आरंभ दशमी की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है। इसमें दशमी तिथि को सायंकाल भोजन करने के पश्चात अच्छे से दातुन कुल्ला करना चाहिये ताकि अन्न का अंश मुंह में शेष न रहे। इसके बाद रात्रि को बिल्कुल भी भोजन न करें। अधिक बोलकर अपनी ऊर्जा को भी व्यर्थ न करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद स्नानादि कर स्वच्छ हो लें। भगवान का पूजन करें, व्रत कथा सुनें। दिन भर व्रती को बुरे कर्म करने वाले पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये। रात्रि में भजन-कीर्तन करें। जाने-अंजाने हुई गलतियों के लिये भगवान श्री हरि से क्षमा मांगे। द्वादशी के दिन प्रात:काल ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करना चाहिये। इस विधि से किया गया उपवास बहुत ही पुण्य फलदायी होता है।
उत्पन्ना एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि आरंभ 10 दिसंबर को दोपहर 12 बजकर 52 मिनट से 
एकादशी तिथि समापन- 11 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 05 मिनट तक, 
उसके बाद द्वादशी तिथि पूरे दिन रात रहेगी
व्रत पारण समय और तिथि- 10 दिसम्बर को करने वालो के लिये पारण का समय 11 दिसम्बर प्रातः10 बजकर 06 मिनट से 11:25 तक रहेगा तथा 11 दिसम्बर को व्रत रखने वालों के लिए पारण का समय 12 दिसंबर को 10 बजे तक रहेगा।
नोट: चूंकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार तिथि सूर्योदय के पश्चात जिस तिथि को एकादशी का मान अधिक हो एकादशी व्रत उसी दिन किया जाता है इसलिये एकादशी तिथि 10 दिसम्बर के दिन स्मार्त मत द्वारा मनाई जाएगी। लेकिन इस बार वैष्णव एवं निम्बार्क मत द्वारा एकादशी का उपवास 11 दिसम्बर को भी रखा जायेगा जिसका पारण 12 दिसम्बर को होगा।
भगवान जगदीश जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश…
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश…
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश…
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश…
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश…
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश…
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश…
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश…

अन्य महत्वपुर्ण खबरें

 15 November 2024
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का अधिक महत्व माना गया है और इस दिन गंगा स्नान करने का विधान होता है. स्नान के बाद दान करना बहुत ही फलदायी माना…
 15 November 2024
देव दीपावली का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन सभी देवी-देवता धरती पर आकर गंगा घाट पर दिवाली…
 15 November 2024
वारः शुक्रवारविक्रम संवतः 2081शक संवतः 1946माह/पक्ष: कार्तिक मास – शुक्ल पक्षतिथि: पूर्णिमा तिथि रहेगी.चंद्र राशि: मेष राशि रहेगी.चंद्र नक्षत्र : भरणी नक्षत्र रात्रि 9:54 मिनट तक तत्पश्चात कृतिका नक्षत्र रहेगा.योगः व्यातिपात योग रहेगा.अभिजित मुहूर्तः दोपहर 11:40 से 12:25दुष्टमुहूर्त: कोई नहीं.सूर्योदयः प्रातः…
 14 November 2024
बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, जो इस बार 14 नवंबर 2024 को है. यह दिन विशेष रूप…
 14 November 2024
14 नवंबर को कार्तिक शुक्ल पक्ष की उदया तिथि त्रयोदशी और गुरुवार का दिन है। त्रयोदशी तिथि आज सुबह 9 बजकर 44 मिनट तक रहेगी, उसके बाद चतुर्दशी तिथि लग…
 13 November 2024
वारः बुधवारविक्रम संवतः 2081शक संवतः 1946माह/पक्ष: कार्तिक मास – शुक्ल पक्षतिथि: द्वादशी दोपहर 1 बजकर 01 मिनट तक तत्पश्चात त्रियोदशी रहेगी.चंद्र राशिः मीन राशि रहेगी .चंद्र नक्षत्रः रेवती नक्षत्र रहेगा.योगः…
 12 November 2024
वारः मंगलवारविक्रम संवतः 2081शक संवतः 1946माह/ पक्ष: कार्तिक मास – शुक्ल पक्षतिथि : एकादशी शाम 4 बजकर 04 मिनट तक रहेगी. तत्पश्चात द्वादशी रहेगी.चंद्र राशि: मीन रहेगी.चंद्र नक्षत्र : पूर्वा…
 11 November 2024
वारः सोमवारविक्रम संवतः 2081शक संवतः 1946माह/पक्ष: कार्तिक मास – शुक्ल पक्षतिथि: दशमी शाम 6 बजकर 46 मिनट तक तत्पश्चात एकादशी रहेगी.चंद्र राशि : कुंभ राशि रहेगी .चंद्र नक्षत्र : शतभिषा सुबह 9 बजकर 39 मिनट तक तत्पश्चात…
 10 November 2024
वारः रविवार, विक्रम संवतः 2081,शक संवतः 1946, माह/पक्ष : कार्तिक मास – शुक्ल पक्ष, तिथि : नवमी तिथि रात 9 बजकर 01 मिनट तक तत्पश्चात दशमी तिथि रहेगी. चंद्र राशि…
Advertisement