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तुलसी विवाह 2021 शुभ मुहूर्त

Updated on 14-11-2021 08:45 PM
कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन देव उठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी पड़ती है। इस अवसर पर भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप के साथ माता तुलसी का विवाह भी किया जाता है। इस साल 2021 में एकादशी तिथि दो दिन पड़ने से तुलसी विवाह और देव उठनी एकादशी की डेट को लेकर भ्रम हो रहा है। इस बार एकादशी तिथि 14 नवंबर को सुबह 5 बजकर 48 मिनट पर शुरू हो जाएगी I
विशेषज्ञ विद्वानों के अनुसार एकादशी तिथि सूर्योदय से पहले लगने पर एकादशी व्रत उसी दिन होता है। एकादशी व्रत का पारण 15 नवंबर, सोमवार को होगा लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रविवार को तुलसी तोड़ना वर्जित है। ऐसा भी मत है कि जिस दिन एकादशी तिथि समाप्त होकर द्वादशी तिथि का आरंभ हो रहा हो उसी दिन प्रबोधिउत्सव के साथ तुलसी विवाह करना चाहिए।
जानिए कब है तुलसी विवाह और क्या हैं पूजा मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ - 14 नवम्बर, 2021 को सुबह 05:48 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - 15 नवम्बर, 2021 को सुबह 06:39 बजे
तुलसी विवाह मुहूर्त - 15 नवंबर को शाम 6 बजे से 7 बजकर 40 मिनट तक प्रदोष काल का समय रहेगा और इसी दौरान तुलसी विवाह उत्सव का शुभ मुहूर्त है।

एकादशी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सुबह उठकर स्नान आदि करें और व्रत का संकल्प करें। इसके बाद भगवान विष्णु की अराधना करें। अब भगवान विष्णु के सामने दीप-धूप जलाकर फिर उन्हें फल, फूल और भोग अर्पित करें। ऐसी मान्यता है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी जरूर अर्पित करनी चाहिए। शाम को विष्णु जी की अराधना करते समय विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ कर सकते हैं।

एकादशी के दिन पूर्व संध्या को व्रती को सिर्फ सात्विक भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन व्रत के दौरान अन्न का सेवन नहीं किया जाता। एकादशी के दिन चावल का सेवन वर्जित है। एकादशी का व्रत खोलने के बाद ब्राहम्णों को दान-दक्षिणा दें। एकादशी के व्रत के बाद अगले दिन तुलसी विवाह के उत्सव और शालीग्राम तुलसी विवाह पूजा से अधिक पुण्य प्राप्त होता है।

तुलसी पूजन के मंत्र

तुलसी जी के पूजा के दौरान उनके इन नाम मंत्रों का उच्चारण करें

ॐ सुभद्राय नमः

ॐ सुप्रभाय नमः

तुलसी दल तोड़ने का मंत्र

मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी

नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।

रोग मुक्ति का मंत्र

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी

आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

तुलसी स्तुति का मंत्र

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।


तुलसी मंगलाष्टक मंत्र

ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः ।

प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥1

गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः ।

गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥2

नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम् । गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥3

बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः । मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥4

गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती ।

स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥5

गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका ।

शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥6

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः ।

अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥7

ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः ।

विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥8

॥ इति मंगलाष्टक समाप्त ॥


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