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लक्ष्मी से 'Lakme' बनने की कहानी, जब नेहरू के कहने पर टाटा ने शुरू किया था ब्‍यूटी ब्रांड, लव स्टोरी से मिला 'लैक्मे' नाम

Updated on 15-06-2023 07:58 PM
नई दिल्ली: लैक्मे (Lakme) का नाम कौन नहीं जानता। जो मेकअप करता है वो भी और जिसे मेकअप से परहेज है वो भी। ब्यूटी प्रॉडक्ट्स या कॉस्मेटिक्स मार्केट में लैक्मे दिग्गज ब्रांड्स में शामिल है। नाम से भले ही आपको ये विदेशी ब्रांड लग रहा हो, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि लैक्मे भारत की पहली स्वदेशी कॉस्मेटिक्स कंपनी है। जिस कंपनी की शुरुआत जेआरडी टाटा (JRD Tata) ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कहने पर की थी आज वो देश की टॉप सेलिंग कॉस्मेटिक्स ब्रांड हैं। आज हम आपको इसी लैक्मे की कहानी बता रहे हैं। कैसे 'लक्ष्मी' से 'लैक्मे' की शुरुआत हुई।

​नेहरू की चिंता दूर करने के लिए टाटा से शुरू किया लैक्मे

साल 1947 में भारत को आजादी मिल गई, लेकिन अर्थव्यवस्था नाजुक दौर से गुजर रही थी। बाकी कारोबार की तरह भारतीय कॉस्मेटिक मार्केट भी विदेशी ब्रांड्स पर निर्भर था। ये चिंता प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सता रही थी। लोग खासकर महिलाएं इम्पोर्टेड कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स खरीद रही थी। इस बात से चिंतित तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने दोस्त जेआरडी टाटा को फोन किया।

जेआरटी टाटा ने रखी लैक्मे की नींव

उन्होंने जेआरडी टाटा से कहा कि देश का पैसा विदेश जा रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है। वो इस बारे में कुछ करें। उस वक्त भारत का कोई कॉस्मेटिक ब्रांड नहीं था। टाटा ने मार्केट की डिमांड को समझ चुके थे। क्योंकि उस वक्त कॉस्मेटिक्स के बाजार में देश के अंदर कॉम्पिटीशन न के बराबर थी। जिसके बाद साल 1952 में उन्होंने देश के पहले स्वदेशी कॉस्मेटिक्स कंपनी लैक्मे की नींव रखी।


​लैक्मे नाम के पीछे छिपे राज​

जेआरटी टाटा ने लैक्मे को टाटा ऑयल मिल्स कंपनी (TOMCO) की पूर्ण स्वामित्व वाली अपनी सब्सिडियरी के तौर पर शुरू किया। ब्रांड तैयार था अब इसके नाम की बारी थी। उन्होंने अपने फ्रांसीसी सहयोगियों से कोई नाम सुझाने को कहा। टाटा प्रोडक्ट के लिए ऐसा नाम चाहते थे जो इसे आम लोगों के बीच पॉपुलर बना दे। टाटा ने इसके लिए अपने कुछ रिप्रेजेंटेटिव्स को पेरिस भेजा। ताकि वो वहां अपने फ्रेंच काउंटर पार्ट्स के साथ मिलकर इस ब्रांड और कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट्स में आने वाली चुनौतियों को समझ सके। इसी दौरान टाटा की टीम ने फ्रेंच कम्पोसर लियो डेलिब्स का एक ओपेरा देखा। इस ओपेरा की मुख्य किरदार एक महिला थी। एक ऐसी महिला जिसे एक ब्रिटिश अफसर से प्यार हो गया था। लड़की का नाम हिंदू धर्म की देवी लक्ष्मी के फ्रेंच में ट्रांसलेट पर रखा गया था। लक्ष्मी का फ्रेंच ट्रांसलेशन लैक्मे था। जब टाटा ने ये नाम सुना तो उन्होंने तय कर लिया कि ब्रांड का नाम लैक्मे ही रखेंगे।

​देवी लक्ष्मी से कनेक्शन​

लैक्मे एक फ्रेंच शब्द है, जिसका हिंदी मतलब लक्ष्मी होता है। लक्ष्मी जो धन-दौलत और सुख-समृद्धि की देवी है। उस दौर में कॉस्मेटिक्स के मार्केट में विदेशी ब्रांड का बोलबाला था। इसलिए टाटा चाहते थे कि उनके प्रोडक्ट का नाम ऐसा हो, जो सुनने में तो विदेशी लगे, लेकिन दिल से देशी हो। इस तरह लक्ष्मी के लैक्मे का तार जुड़ गया।

​लैक्मे में सिमोन टाटा की एंट्री​

लैक्मे की शुरुआत मुंबई में पेद्दार रोड पर एक छोटे से किराए के परिसर से हुई थी। लैक्मे अब बाजार में उतर चुका था। 5 सालों में ही इसका रंग लोगों पर चढ़ने लगा। साल 1960 आते-आते कंपनी को बड़े परिसर की जरूरत महसूस होने लगी। लैक्मे के लॉच होने के बाद भारत में विदेशी ब्यूटी प्रॉडक्ट का आयात लगभग बंद होने लगा। ब्रांड को और बड़ा करने के लिए टाटा ने इसकी जिम्मेदारी सिमोन टाटा को दी। सिमोन टाटा, नावल एच टाटा की पत्नी थीं। साल 1961 में उन्हें लैक्मे की मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया। चूंकि सिमोन जेनेवा, स्विट्जरलैंड में पली-बढ़ी थी, इसलिए उन्हें ब्यूटी प्रोडक्ट की अच्छी जानकारी थी।

हिंदुस्तान यूनिलीवर को सौंप दी लैक्मे

सिमोन टाटा ने लैक्मे को बुलंदियों पर पहुंचा दिया। साल 1980 में लैक्मे ने अपना पहला ब्रांडेड ब्यूटी सैलों (Beauty Salon) खोला। साल 1982 तक सिमोन टाटा चेयरमैन के पद पर बनीं रही। साल 1993 में टाटा और हिंदुस्तान यूनिलीवर (Hindustan Unilever) ने लैक्मे में 50:50 की पार्टनरशिप की। साल 1998 में लैक्मे की पूरी हिस्सेदारी हिंदुस्तान यूनिलीवर से ले ली। टाटा ने इस सोच के साथ लैक्मे को हिंदुस्तान यूनिलीवर को सौंपा कि वो भविष्य में इसके साथ बेहतर न्याय कर पाएगी।

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