मध्यप्रदेश में 140 वर्ग मीटर या उससे ज्यादा जमीन पर इमारत निर्माण करवाते समय रेन वाटर हार्वेस्टिंग का सिस्टम लगाना अनिवार्य है। इसे लागू करवाने की जिम्मेदारी शहरों के नगर निगमों के पास है। इसके लिए नगर निगम इमारत निर्माताओं से कुछ डिपॉजिट राशि लेता है। ताकि सिस्टम लगवाने के बाद इमारत निर्माता आवेदन कर पैसे वापस ले सके।
वहीं, इमारत में सिस्टम का निर्माण नहीं होने पर निगम की जिम्मेदारी है कि इमारत मालिक के खर्च पर सिस्टम लगवाए। लेकिन प्रदेश की राजधानी भोपाल नगर पालिका निगम के पास इसकी जांच के लिए कोई मॉनिटरिंग बॉडी नहीं होने के चलते न तो इमारतों में सिस्टम लगता है, और न ही लोगों के पैसे वापस मिलते है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग बारिश के पानी को इकट्ठा करने वाला एक सिस्टम है। ताकि वर्षा जल बर्बाद होने के बजाय भविष्य में इस्तेमाल किया जा सके।
7 हजार से 15 हजार तक की डिपॉजिट राशि लेता है निगम भोपाल नगर निगम के सामान्य प्रशासन विभाग के नोटिस के मुताबिक 27 अक्टूबर 2009 से लागू नियम म.प्र भूमि विकास नियम 1984 की धारा 78(4) के तहत पारित हुआ है। इसके मुताबिक निगम जमीन के आकार के मुताबिक हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए डिपॉजिट राशि जमा करवाता है। ये राशि नगर निगम में नक्शा पास कराने के समय ली जाती है। वहीं, जिन लोगों ने पहले ही नक्शा पास करवा लिया है या 140 वर्ग मीटर से कम में निर्माण किया है, उन्हें ये शुल्क नहीं देना है।
15 हजार वर्गमीटर की इमारतों से 11 साल में 9 करोड़ कमाए निगम ने
नगर निगम से सिर्फ साल 2014 से अबतक 15 हजार वर्ग मीटर में पास की जाने वाली इमारतों का डेटा मिला है। इसके मुताबिक निगम ने 6 हजार इमारतों की डिपॉजिट राशि ली है। यानी अगर 400 वर्ग मीटर से अधिक वाली इमारतों से 15 हजार डिपॉजिट लिए गए तो निगम के पास 9 करोड़ रुपए आए हैं। हालांकि साल 2009 से 140 वर्ग मीटर से ज्यादा जमीन वाला डेटा उपलब्ध नहीं है। इसके चलते 16 साल से मॉनिटरिंग बॉडी ना होने से निगम द्वारा करोड़ों रुपए कमाने का अनुमान है।
हर महीने 2 करोड़ रुपए तक कमाए
वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञ ब्रजेश नामदेव के मुताबिक शहरी क्षेत्र में वाटर हार्वेस्टिंग का ड्रेन पाइप मेथड सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा बड़ी जमीनों पर 4x4 के गड्ढे के जरिए सिस्टम तैयार करते हैं। भोपाल में लगभग 50 हजार सिस्टम लगे हैं। उसमें में भी कई सारे सिस्टम बंद हैं। क्योंकि निगम के पास कोई मॉनिटरिंग बॉडी नहीं है। ऐसी स्थिति में शहर में इमारतों की निमार्ण कार्य की प्रगति को देखते हुए निगम के पास हर महीने 2 करोड़ का डिपॉजिट आता होगा।
सालभर में सिर्फ 5-6 लोगों की डिपॉजिट राशि वापस होती है
उधर, हाउस अप्रूवल डिपार्टमेंट के कर्मचारियों से लेकर नगर निर्देशक अनिल गोयल तक ने कहा कि निगम की जिम्मेदारी सिर्फ डिपॉजिट लेने तक की है। आवेदक इसके बाद अगर डिपॉजिट वापस करता है। तो निगम की एक टीम इमारत में जांच के लिए जाती है। बता दें, साल भर में ऐसे 5-6 केस ही हैं, जिसमें आवेदक ने डिपॉजिट की मांग की हो।
कई इलाकों में हर घर में 1-2 ट्यूबवैल के गड्ढ़े
पर्यावरण विशेषज्ञ ब्रजेश नामदेव ने बताया कि साल 2002 में ग्राउंड वाटर 100-150 फीट पर मिल जाता था। लेकिन अब भोपाल में ग्राउंड वाटर 800-1000 फीट पर भी नहीं मिलता। इसका कारण है कि लोगों ने अपने घरों और जमीनों में कई सारे ट्यूबवैल लगवाए हैं।
वहीं, भोपालवासी और निगम शहर में वर्षा जल को भी बचाने में नाकाम हैं। इसके चलते लगातार ग्राउंड वाटर खत्म हो रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक नगर निगम ने शहर में सिर्फ 200 ट्यूबवेल की स्वीकृति दी है। हालांकि अरेरा हिल्स, रोहित नगर समेत कई इलाकों में लगभग हर घर में 1-2 ट्यूबवैल लगे हैं।