हमारे बंधन और मुक्ति का कारण हमारा मन है – रमाकांत महाराज
Updated on
29-09-2021 01:49 PM
भोपाल I श्री रमाकांत महाराज के मुखारविंद से श्रीमद भागवत कथा का आयोजन लक्ष्मीनारायण मंदिर स्वदेश नगर अशोका गार्डन भोपाल किया जा रहा है। भागवत कथा के तृतीय दिवस पर महाराज श्री ने भागवत कथा में बताया की कपिलमुनि का भारत के मुनियों में अग्रणी स्थान हैI वह सांख्यशास्त्र के प्रणेता हैं, जिसके अनुसार विश्व का उद्भव विकास की प्रक्रिया से हुआ. उन्होंने विश्व में सबसे पहले विकासवाद का प्रतिपादन किया. वह एक ऐसे मुनि हैं, जिन्होंने अपनी माँ को तत्वज्ञान दिया. उन्होंने अपनी माँ को बताया कि हमारे बंधन और मुक्ति का कारण हमारा मन है. मन पवित्र होने से मुक्ति होती है. सती अनुसुइया महर्षि अत्रि की पत्नी थी। वे हमेशा पति को ही परमेश्वर समझ कर उनकी सेवा करती थी। उनकी सेवा भावना का स्तर इतना उच्चतम था कि, उनकी चर्चा देवलोक में भी होती थी। वे अपने द्वार पर आये हुए किसी अतिथि को खाली हाथ नहीं लौटाती थी। वे पुर्ण पतिव्रता धर्म के पालन में निपुण थी ।एक दिन नारद जी ने उनकी पति भक्ति और सेवा भाव को तीनों देवियों, माता लक्ष्मी, माता सरस्वती और माता पार्वती को कह सुनाया और सती अनुसुइया की भूरी भूरी प्रशंसा की। जिस कारण तीनो देवियां सोचने लगी कि भला पृथ्वी लोक मे हमसे भी अधिक पति की सेवा करने वाली कैसे हो सकती है।तीनो देवियों ने अपने पतियों को कहा कि वे माता अनुसुइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा ले। इसपर देवो ने उन्हें काफी समझाया पर वे नहीं मानी । अतः उन्हें उचित नहीं लगते हुए भी माता अनुसुइया की परीक्षा लेने जाना पड़ा । तब त्रिदेव साधु के वेश मे अत्रि मुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। तीनों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी मगर यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। यह सुनकर अनुसुइया असमंजस मे पड़ गई, वे सोचने लगी कि अगर उन्हे खाली हाथ लौटाती हुँ तो अतिथि धर्म भंग होता है, और निर्वस्त्र होने से पतिव्रता धर्म ।अतः उन्होने अपने पतिव्रत धर्म के बल से त्रिदेवो को छ:-छ: मास के शिशु मे परिवर्तित कर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और अपने पास ही रख ली । समय बीतने के बाद भी जब त्रिदेव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। और ढुढते हुए अनुसूइया के पास आईं ।और देखा की तीनो देव बाल रूप मे है।अतः उन्होने माता अनसुइया से क्षमा मांगी। और त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर देने की विनती की, । तब त्रिदेवों को अपना रूप पुनः प्राप्त हुआ ।तब त्रिदेवो ने उन्हे वरदान दिया कि, हे माता हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे।तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ । जो भी नारी अपने पति में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखकर निश्छल भाव से उसकी सेवा करती है उसे संपूर्ण देवो की पूजा का और तीर्थ स्नानों का फल प्राप्त हो जाता है।