दुबई । पहले
से ही कच्चे
तेल में गिरावट
के संकट से
जूझ रहे खाड़ी
देशों पर कोरोना
में दोहरी मार
पड़ने लगी है।
दुनिया के अमीर
पेट्रो देशों में शामिल
कुवैत के सामने
कैश का संकट
खड़ा हो गया
है। 2016 में देश
के वित्त मंत्री
अनस-अल सालेह
ने 2016 में ही
देश में खर्च
कम करने और
तेल के बगैर
अर्थव्यवस्था को मजबूती
देने की बात
कही थी।एक रिपोर्ट
के मुताबिक अब
संकट इतना गहरा
हो गया है
कि मौजूदा वित्त
मंत्री बराक अल-शीतन का
कहना है कि
कैश इतना कम
है कि अक्टूबर
के बाद सरकारी
कर्मचारियों को सैलरी
दे पाना भी
मुश्किल होगा। खर्च में
कटौती न हो
पाने और तेल
से कमाई लगातार
घटने के चलते
यह स्थिति पैदा
हुई है।
यह हालात सिर्फ कुवैत के ही नहीं हैं,बल्कि तेल के मामले में समृद्ध कई अरब खाड़ी देश संकट की स्थिति में हैं। हालांकि सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों ने समय रहते सुधार किए हैं। खासतौर पर सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में विजन 2030 पर काम किया है, जिसमें खासकर कच्चे तेल पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता को कम किया जा सके।
इसके अलावा सऊदी अरब ने नागरिकों को मिलने वाले लाभों पर अंकुश लगाकर टैक्स में भी इजाफा किया है। बहरीन और ओमान, जहां भंडार कम हैं, वे उधार ले रहे हैं और अमीर पड़ोसियों से समर्थन मांग रहे हैं। यूएई ने एक रसद और वित्त केंद्र के रूप में दुबई के उदय के साथ अपने कारोबार में विविधता लाने का काम किया है।
दरअसल कुवैत क्रमिक गिरावट के दौर से गुजर रहा है, जो 1970 के दशक में सबसे गतिशील खाड़ी राज्यों में से था। फिर 1982 में शेयर बाजार के अचानक धड़ाम होने और फिर ईरान-इराक युद्ध से अस्थिरता ने स्थिति को और बिगाड़ने का काम किया। कुवैत अब भी अपनी आय के 90% हिस्से के लिए हाइड्रोकार्बन पर निर्भर है। ऐसे में आने वाले दिनों में यह संकट और गहरा हो सकता है क्योंकि निकट भविष्य में तेल की कीमतों में सुधार के आसार नहीं दिख रहे हैं।