नवरात्री के नवें दिन आदि शक्ति माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप
Updated on
21-04-2021 02:29 PM
नवरात्र-पूजन के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवमी के दिन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। सिद्धियां हासिल करने के उद्देश्य से जो साधक भगवती सिद्धिदात्री की पूजा कर रहे हैं उन्हें नवमी के दिन इनका पूजन अवश्य करना चाहिए। सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। नवरात्र के नौवें दिन जीवन में यश बल और धन की प्राप्ति हेतु इनकी पूजा की जाती है। तथा नवरात्रों का की नौ रात्रियों का समापन होता है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री हैं, इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री का होता है। देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं दायीं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है, मां बांयी भुजा में शंख और कमल का फूल है। प्रसन्न होने पर माँ सिद्धिदात्री सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं।
माँ की सिद्धियां
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मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। वे सिद्धिदात्री, सिंह वाहिनी, चतुर्भुजा तथा प्रसन्नवदना हैं। मार्कंडेय पुराण में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वशित्व- ये आठ सिद्धियां बतलाई गई हैं। इन सभी सिद्धियों को देने वाली सिद्धिदात्री मां हैं। मां के दिव्य स्वरूप का ध्यान हमें अज्ञान, तमस, असंतोष आदि से निकालकर स्वाध्याय, उद्यम, उत्साह, कर्त्तव्यनिष्ठा की ओर ले जाता है और नैतिक व चारित्रिक रूप से सबल बनाता है। हमारी तृष्णाओं व वासनाओं को नियंत्रित करके हमारी अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता से परिपूर्ण करते हुए हमें स्वयं पर विजय प्राप्त करने की शक्ति देता है। देवी पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने इन्हीं शक्तिस्वरूपा देवी जी की उपासना करके सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं, जिसके प्रभाव से शिव जी का स्वरूप अर्द्धनारीश्वर का हो गया था।
इसके अलावा ब्रह्ववैवर्त पुराण में अनेक सिद्धियों का वर्णन है
जैसे
1. सर्वकामावसायिता
2. सर्वज्ञत्व
3. दूरश्रवण
4. परकायप्रवेशन
5. वाक्सिद्धि
6. कल्पवृक्षत्व
7. सृष्टि
8. संहारकरणसामर्थ्य
9. अमरत्व
10 सर्वन्यायकत्व।
कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है। यह देवी इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं। इनकी पूजा से भक्तों को ये सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा विधि
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सिद्धियां हासिल करने के उद्देश्य से जो साधक भगवती सिद्धिदात्री की पूजा कर रहे हैं। उन्हें नवमी के दिन निर्वाण चक्र का भेदन करना चाहिए। दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। हवन से पूर्व सभी देवी दवाताओं एवं माता की पूजा कर लेनी चाहिए। हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए. बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत:सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार अहुति दें।
मेहनत और परिश्रम के उपरांत भी धन लाभ नहीं हो रहा, मां लक्ष्मी की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो यह उपाय करें-
मां भगवती सिद्घदात्री को हर रोज भगवती का ध्यान करते हुए पीले पुष्प अर्पित करें। मोती चूर के लड्डुओं का भोग लगाएं ओर श्री विग्रह के सामने घी का दीपक जलाएं। ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै: ऊँ सिद्घिदात्री विच्चै: नम:। मंत्र का जाप करें। धन की कमी नहीं रहेगी। धन लाभ के लिए मां भगवती के मंदिर में गुलाब की सुगंधित धूपबत्ती शुक्रवार के दिन दान करें। प्रत्येक शुक्लपक्ष की नवमी को 7 मुट्ठी काले तिल पारिवारिक सदस्यों के ऊपर से 7 बार उतार कर उत्तर दिशा में फेंक दे। धन हानि नहीं होगी।