इंसानी जज्बे की पराकाष्ठा, मशीनों पर भारी पड़ी मानवीय चेतना, क्या यह प्रकृति की चेतावनी है
Updated on
13-01-2024 02:06 PM
सिल्क्यारा सुरंग संकट में 400 घंटों चले इस अभियान में पहले तो मशीनें निर्णायक भूमिका में काम कर रही थी लेकिन एक के बाद असफलता के चलते अंतिम 12 घंटों में मानव श्रमिकों ने इस अभियान की बागडोर अपने हाथों में सम्हाली और आखिरी 12 मीटर के मलबे में निकासी योग्य छेद बनाने में कामयाबी हासिल की। जिसके द्वारा 17 दिनों से सुरंग में अपना जीवन जैसे तैसे व्यतीत कर रहे 41 श्रमिकों को इस अनचाही प्राकृतिक कैद से छुटकारा दिलाया गया।
यह सुरंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार धाम राजमार्ग निर्माण की महत्वाकांक्षी लेकिन विवादास्पद परियोजना के एक मार्ग का हिस्सा है। पर्यावरणविदों ने इस परियोजना की शुरुआत से ही इसकी आलोचना करते हुए कहा है कि इस तरह के भारी निर्माण से हिमालयी क्षेत्र को गंभीर नुकसान हो सकता है। यहाँ के लाखों निवासी पहले से ही जलवायु संकट के दुष्प्रभाव को झेल रहे हैं। विशेषज्ञों के एक समूह ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि कोर्ट की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में राजमार्गों के निर्माण से पहले से ही संवेदनशील वातावरण में भूस्खलन और मिट्टी के कटाव को और बढ़ावा मिलेगा।
मलबे के पीछे फँसें इन श्रमिकों को हैदराबाद की नवयुग इंजीनियरिंग कन्स्ट्रक्शन लिमिटेड द्वारा ठेके पर लिया गया था जो भारत सरकार द्वारा हिमालय के तलहटी में एक दूरस्थ गांव सिल्क्यारा में 2.8 मील सुरंग बनाने के लिए अनुबंधित की गई थी। 12 नवंबर को, एक भूस्खलन ने सुरंग के एक हिस्से को ढंक दिया और इस आपदा ने 41 श्रमिकों को लगभग 200 फीट मलबे के पीछे फंसा दिया था।
यह तो कृपा रही ईश्वर की कि सुरंग के 200 मीटर लंबे हिस्से के ढहने के बावजूद देश के विभिन्न भागों से आए वहाँ फंसे हुए गरीब प्रवासी मजदूरों में से कोई भी श्रमिक गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ या मारा नहीं गया, अन्यथा चंद्र विजेता भारत की साख भी मलबे में मिल जाती। इस बचाव अभियान में लगी टीम के इंजीनियरों को यह पता था कि उनका काम अत्यंत कठिन और अनजानी चुनौतियों से भरा होगा। सबसे पहले तो बचावकर्ताओं ने उत्खनन और ड्रिलिंग मशीनों का उपयोग करके, एक सीधी रेखा में, मलबे के माध्यम से क्षैतिज रूप से ड्रिलिंग करके, 60 मीटर मलबे की दीवार के पीछे फंसे कर्मचारियों तक पहुंचने की कोशिश की। लेकिन ड्रिलिंग मशीन कई बार खराब हो गई, जिससे 24 घंटे की शिफ्ट में काम कर रहे बचावकर्ताओं के प्रयासों को निराशा हाथ लगी।
सम्पूर्ण विश्व के मीडिया की नजरे इस बचाव अभियान पर सतत जमी हुई थी। 47 मीटर खुदाई के बाद जब आगे बढ़ने में मशीनें असफल हुई तो उदयपुर के माइनिंग इंजीनियर सनत कुमार जैन का आईडिया काम आया। उन्होंने सुझाव दिया कि आगे का काम मानवीय हाथीन से खुदाई करके सफलता पूर्वक सम्पन्न किया जा सकेगा। 10 रेटहोल माईनर्स की टीम ने दो दो मजदूरों की पाँच टोली बनाकर 800 मिमी व्यास के पाईप के अंदर घुसकर हाथों से खुदाई की और महज 21 घंटों इस ऐतिहासिक बचाव अभियान को पूर्ण करने में सफलता प्राप्त की।
अंतर्राष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञों द्वारा सहायता प्राप्त और कई भारतीय बचाव एजेंसियों के नेतृत्व में श्रमिकों तक पहुंचने का यह अभियान, भारत के हाल के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और जटिल बचाव कार्यों में से एक है । सुरंग के गहन अंधेरे में कामगारों ने अपने मन में आशा की मशाल जलाए रखी जिसने उन्हें कठिनाई के इस दौर में मजबूत बनाए रखा। सुरक्षित बाहर निकले कामगारों का कहना था कि हादसे के पहले दिन अंदर के सभी लोग बहुत निराश और उदास थे, हमें यह भी पता नहीं था कि क्या किसीको खबर भी है कि हम यहा जिंदा फंसे हुए हैं। लेकिन जब पाइप के माध्यम से संपर्क हुआ तब हमें पता चला कि सरकार हमें बाहर निकालने के लिए हर संभव जतन कर रही है। हमे भूला नहीं गया है और जल्द ही बाहर निकाला जाएगा इस ज्ञान ने हमें शांति और आशा दी।
करोड़ों लोगों के दिल से जुड़े इस बचाव अभियान की सफलता मानवता और साझा संघर्ष की व्यापक भावना के प्रमाण के रूप में सामने आई है, जो इसमें शामिल सभी लोगों द्वारा प्रदर्शित की गई है। एक हाई-टेक ड्रिलिंग मशीन के विफल होने के बाद बचावकर्ताओं को रैट-होल खनन की प्रतिबंधित प्रथा का सहारा लेना पड़ा, एक ऐसा निर्णय जिसके कारण अंततः फंसे हुए मजदूरों को सफलतापूर्वक निकाला गया। इस बचाव अभियान ने बहादुरी, दृढ़ संकल्प और अदम्य मानवीय भावना का एक प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है।
लेकिन इसका दूसरा स्याह पहलू यह है कि सिल्क्यारा सुरंग संकट में पहाड़ियों की अस्थिरता बहुत स्पष्ट हो गई है। जैसे ही विशेषज्ञ ड्रिलिंग मशीनों के साथ मलबे में घुसे, कंपन के कारण भूस्खलन शुरू हो गया, जिससे बचाव अभियान में देरी हुई।
चट्टान की प्रकृति, उनकी क्षमता और इस्तेमाल की जाने वाली ब्लास्टिंग विधियों के आधार पर, सड़क और बांध निर्माण ट्रिगर मैकेनिज्म के रूप में कार्य करते हैं। चट्टानों का भूविज्ञान और उनके भीतर दरार की प्रकृति (उनकी कमज़ोरी के साथ विभाजित होने की प्रवृत्ति) महत्वपूर्ण मानदंड हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए।
जब पहाड़ी सुरंगों की बात आती है तो वाहनों की आवाजाही के दौरान लगातार कंपन पहाड़ों के लिए एक बड़ा खतरा है। यह कंपन पहाड़ की ढलानों को अस्थिर और असुरक्षित बना देता है। सुरंगों के लिए ब्लास्ट करने से रॉक फॉर्मेशन कमजोर हो जाता हैं, जिससे भविष्य में भूस्खलन होने की संभावना मजबूत होती है, इसके अलावा सुरंग निर्माण क्षेत्रों में भूजल पर अपरिवर्तनीय प्रभाव देखा गया है, जैसे कि घटता जल स्तर।”
अत्यधिक सुरंग निर्माण हिमालय में चल रही व्यापक निर्माण गतिविधि के सबसे खतरनाक पहलुओं में से एक है। वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए एक ग्राफ से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों में उत्तराखंड में भूस्खलन में 2,900 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
हालांकि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने घोषणा की है कि इस सफल बचाव के बाद, देश बाहर में चल रही इस तरह की सभी सुरंग परियोजनाओं का का सुरक्षा ऑडिट किया जाएगा और सुनिश्चित किया जाएगा कि इस तरह के हादसों की पुनरावृती ना हो। लेकिन यह कैसे होगा इसको लेकर कोई पुख्ता योजना सामने नहीं आई है।
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