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एम्प्लॉयीज़ से चलती है कंपनी

Updated on 05-04-2024 08:03 AM
यह शत-प्रतिशत सत्य है। जब भी कोई कंपनी अपनी नींव रखने के बाद नए आयाम छूती है, तरक्की करती है, नई दिशाओं में आगे बढ़ती है और सफल होती है, तो बेशक उसमें बॉस का अहम् योगदान होता है। लेकिन सबसे बड़ा योगदान होता है, उसमें काम करने वाले एम्प्लॉयीज़ का, जो इसे अपनी कर्मस्थली मानते हैं। और सही मायने में अपने घर से अधिक समय अपनी कंपनी में बिताते हैं, यदि इन 24 घंटों में से सोने के 6 से 8 घंटों को न जोड़ा जाए।  

इसमें कोई दो राय नहीं है कि बॉस को गुरु की उपाधि प्राप्त है और एम्प्लॉयीज़ को शिष्यों की, क्योंकि काम के तौर-तरीके और लम्बे समय तक अपने क्लाइंट्स को जोड़कर रखने का हुनर आखिरकार बॉस से ही सीखने को मिलता है। कंपनी की ग्रोथ में एम्प्लॉयीज़ का सबसे अधिक योगदान होता है। इनकी तुलना उन पहियों से की जा सकती है, जिनके बिना किसी गाड़ी का चल पाना भी लगभग नामुमकिन है। कॉर्पोरेट के इस लेख को अध्यात्म के उदाहरण से जोड़कर आपके समक्ष पेश करना चाहता हूँ, जो पूज्य राजन जी के मुखमण्डल से मैंने सुनी है। यह कहानी बताती है कि शिष्य की वजह से गुरु को सब कुछ मिल जाता है।

एक व्यक्ति बहुत ही अधिक मात्रा में भोजन करता था। एक बार खाने बैठता था, तो उसे उठने की सुध ही नहीं मिलती थी। उसकी इस आदत से उसके घरवाले बहुत परेशान थे। एक बार बहुत अधिक खाने की उसकी इस आदत की वजह से घरवालों ने गुस्से में उसे घर से निकाल दिया। भोजन की तलाश में वह एक आश्रम जा पहुँचा, जहाँ एक बहुत मोटा साधु बैठा था। उसने सोचा कि जरूर यहाँ भर पेट भोजन मिलता होगा, जब ही यह इतना मोटा है। भीतर कैसे जाना है, इसकी जानकारी लेने पर पता चला कि सिर्फ राम-राम जपना है और बदले में भर पेट भोजन मिल जाएगा। 

बस फिर क्या था महाशय खूब खाते और आराम फरमाते। कुछ दिनों में एकादशी आ गई और आश्रम में भोजन बना ही नहीं। उस दिन सभी का उपवास था। भोजन की अति इच्छा जताने पर गुरूजी ने उसे अनाज देकर कहा कि नदी के पास चले जाओ और बना लो, लेकिन राम को भोग लगाने के बाद ही खाना खाना। बड़ी मिन्नतों के बाद राम आए, लेकिन सीता माता के साथ। अब भोजन कम पड़ गया। अगली एकादशी पर महाशय अधिक अनाज लेकर आए, लेकिन इस बार लक्ष्मण जी भी आ गए। फिर भोजन कम पड़ गया। 

हर बार अधिक अनाज की माँग करने पर गुरूजी को कुछ संदेह हुआ कि यह राशन बेचने लगा है। और इस बार वे पहले से ही नदी के पास पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गए। लेकिन इस बार गुस्से में उस व्यक्ति ने खाना ही नहीं बनाया कि हर बार पिछली बार से अधिक लोग आ जाते हैं। इस राम और सीता के साथ ही सभी भाई और हुनमत भी आ गए। वह नाराज़ हो उठा और प्रभु से कहने लगा कि आप स्वयं बना लीजिए भोजन, मैं नहीं बना रहा, क्योंकि मुझे तो आज कुछ मिलने वाला है नहीं। गुरूजी सब कुछ देख पा रहे हैं, लेकिन भगवान को नहीं। आखिरकार वे सामने आए और पूछ बैठे कि क्या बात है? इस पर शिष्य ने सारा वाक्या कह सुनाया और बताया कि देखिए कितने सारे लोग आ गए हैं। 

जब गुरूजी ने कहा कि उन्हें कुछ भी नहीं दिख रहा, तब शिष्य प्रभु श्री राम के चरण पकड़कर मिन्नतें करने लगा कि मेरे गुरूजी यही समझेंगे कि मैं चोरी कर रहा हूँ, आप कृपया कर उन्हें एक बार दिख जाइए। इस पर प्रभु ने गुरु को दर्शन दिए और उनका शिष्य की वजह से उद्धार हुआ।

इस कहानी को यदि कॉर्पोरेट से जोड़कर देखा जाए, तो लगभग समान ही परिणाम देखने को मिलते हैं। एम्प्लॉयीज़ का सरल स्वभाव और सहज कार्यक्षमता ही बॉस के उद्धार यानि सफलता की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण वजहों में से एक बनते हैं और उसके साथ ही उसके एम्प्लॉयीज़ की सफलता की कहानी भी रचते हैं। अपने परिवार के सदस्यों से अधिक समय कलीग्स के साथ बिताना, उन्हीं के साथ उठना-बैठना और खाना-पीना ऑफिस को परिवार का ही रूप दे जाता है, एक ऐसा परिवार, जिसके एक सदस्य को समस्या होने पर परेशान पूरा परिवार होता है, एक ऐसा परिवार, जिसमें सब साथ मिलकर एक मुट्ठी की तरह रहते हैं और सुदृढ़ता से काम करते हैं। इसलिए यह कहना सर्वथा सत्य ही होगा कि एक कंपनी को कंपनी वास्तव में एम्प्लॉयीज़ ही बनाते हैं। और तो और इसके सफल संचालन का श्रेय भी एम्प्लॉयीज़ को ही जाता है।
- अतुल मालिकराम, लेखक,पी आर कंसलटेंट

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