बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में यूरोपियन संसद के बाहर चीन के पिलर ऑफ शेम मेमोरियल के मॉडल को लगाया गया है। यह मॉडल 1989 में चीन के थियानमेन स्क्वायर पर हुए नरसंहार का प्रतीक है। चीन की सरकार ने साल 2021 में हॉन्गकॉन्ग की एक यूनिवर्सिटी के बाहर लगे इस विवादित मॉडल को हटवा दिया था।
इस मॉडल पर नरसंहार में मारे गए लोगों के शवों और उनके चीखते चहरों को दिखाया गया है। CNN के मुताबिक, मंगलवार को ऐसी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाई गई जिन्हें चीन में बैन किया जा चुका है।
इस प्रदर्शनी को नीदरलैंड के आर्टिस्ट येन्स गैल्सचायट ने यूरोपीय संसद के सदस्यों के साथ मिलकर होस्ट किया था। ये वही कलाकार हैं, जिन्होंने पिल ऑफ शेम मॉडल बनाया था। प्रदर्शनी के बाद गैल्सचायट ने कहा- यह चीन को संदेश है कि उनकी सेंसरशिप का यूरोप में कोई असर नहीं होने वाला।
गैल्सचायट ने 1990 के दशक में बनाया था मेमोरियल, चीन ने बैन किया
गैल्सचायट ने 1990 के दशक में पिलर ऑफ सेम के कई मॉडल तैयार किए थे। ब्रसेल्स में लगाया गया मॉडल इन्हीं में से एक है। इसकी हाइट 8'7 फीट है। इसके चबूतरे पर कलाकृति का इतिहास लिखा हुआ है। यहां एक मैसेज में कहा गया है- पुराना कभी नए को हमेशा के लिए नहीं मार सकता।
चीन के विदेश मंत्रालय ने CNN को बताया कि देश की सरकार ने 1980 के दशक के अंत में हुई राजनीतिक उथल-पुथल के बारे में एक स्पष्ट निष्कर्ष निकाला था। अब चीन को बदनाम करने की कोई भी कोशिश सफल नहीं होगी।
प्रदर्शनकारियों पर सेना ने बरसाईं थीं गोलियां
4 जून 1989 में चीन की राजधानी बीजिंग के थियानमेन स्क्वायर हजारों लोग लोकतंत्र शांतिपूर्ण मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को उतार दिया था।
दरअसल, 80 के दशक में चीन बड़े-बड़े बदलावों से गुजर रहा था। चीनी कम्युनिस्ट नेता देंग शियाओपिंग ने आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। इसकी बदौलत देश में विदेशी निवेश बढ़ा और प्राइवेट कंपनियां आने लगीं। इससे चीन की इकोनॉमी ने तो रफ्तार पकड़ी, लेकिन भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं ने विकराल रूप लेना शुरू कर दिया।
चीन के लोग जब अमेरिका, ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देशों के संपर्क में आए तो उनमें भी लोकतंत्र के प्रति दिलचस्पी बढ़ने लगी। धीरे-धीरे इन समस्याओं ने चीन में आंदोलन का रूप ले लिया। चीनी नेता देंग शियाओपिंग ने इसके लिए कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव हू याओबांग को जिम्मेदार माना। हू याओबांग चीन में राजनीतिक सुधारों की पैरवी करते आए थे।
चीन की सरकार का दावा- सिर्फ 200 लोगों की मौत हुई
प्रदर्शन में सबसे ज्यादा स्थानीय कॉलेज और यूनिवर्सिटी के छात्रों ने हिस्सा लिया। 4 जून 1989 के दिन थियानमेन स्क्वायर पर लाखों छात्र और लोग शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे थे, तभी रात के अंधेरे में हथियारों से लदे चीनी सैनिक अपने साथ टैंक लेकर आने लगे। सेना ने पूरे स्क्वायर को घेर लिया और गोलियां बरसाना शुरू कर दिए। उस वक्त वहां पर 10 लाख से ज्यादा प्रदर्शनकारी मौजूद थे।
प्रदर्शनकारियों को अनुमान नहीं था कि उनके ही देश की सेना उन पर इस तरह से गोलियां बरसाएगी। इस कार्रवाई में 10 हजार लोग मारे गए थे। वहीं चीन की सरकार सिर्फ 200 लोगों के मरने का दावा करती है। चीन ने थियानमेन पर हुए नरसंहार को इतिहास से मिटाने की पूरी की कोशिश की।
चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने आज भी इस नरसंहार पर चीन में किसी भी तरह की चर्चा पर रोक लगा रखी है। यहां तक कि चीन में इंटरनेट और किताबों में भी इसके जिक्र पर रोक है।