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आपराधिक न्याय प्रणाली में भारतीय युग का आगाज

Updated on 24-12-2023 10:53 AM
 औपनिवेशिक आपराधिक न्याय प्रणाली जो अभी तक भारत में लागू थी उसके स्थान पर अब भारतीय न्याय प्रणाली के नये युग का आगाज तीन विधेयकों पर संसद की मुहर लगने के साथ हो गया है। भारत में अंग्रेजों के जमाने की दंड आधारित आपराधिक न्याय प्रणाली को हटाकर उसके स्थान पर न्याय केंद्रित भारतीय मूल्यों पर आधारित न्यायिक प्रणाली स्थापित करने वाले तीन विधेयकों को संसद की मंजूरी मिल गयी। इस प्रकार देश ने आपराधिक न्याय प्रणाली में भारतीय परिवेश के अनुसार बदलाव की दिशा में कदम उठाया है। नये कानून में पुलिस जांच से लेकर अदालतों में सुनवाई तक की समयसीमा तय की गयी है। यानी तारीख पर तारीख लगाकर सालों तक मामलों को उलझाये रखने की न्याय प्रणाली की अवधारणा को बदलने के प्रयास में नरेंद्र मोदी की भारत सरकार ने जो कदम उठाया है वह इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है बशर्ते कि जिस भावना से यह परिवर्तन किए जा रहे हैं उसके अनुसार न्याय और पुलिस प्रणाली अपने दायित्वों का पूरी तरह से पालन करे।
        संसद के दोनों सदनों ने भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य  (द्वितीय) विधेयक 2023 की स्वीकृति पर मुहर लगा दी। लोकसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने रेखांकित किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अंग्रेजों के जमाने के कानूनों में बदलाव कर आपराधिक न्याय प्रणालियों में बदलाव ला रही है। उनका कहना था कि औपनिवेशिक कानूनों से मुक्ति की बात प्रधानमंत्री ने कही थी और उसी के तहत गृह मंत्रालय ने कानूनों में बदलाव के लिए विचार किया। विधेयकों में  विदेशों में मौजूद अपराधियों के मामले में भी कार्रवाई के लिए कुछ संशोधन किए गए हैं। भारतीय न्याय संहिता में राजद्रोह हटाने और देशद्रोह लाने के पीछे की मंशा को स्पष्ट करते हुए शाह ने कहा कि यह देश आजाद हो चुका है, सरकार पर कोई भी टीका टिप्पणी कर सकता है इसके लिए किसी को भी जेल में नहीं जाना पड़ेगा, चाहे हमारी सरकार क्यों न हो। मगर देश के खिलाफ कोई बोल नहीं सकता, देश के हितों को कोई नुकसान नही कर सकता, देश का झंडा, देश की सीमाएं व देश  के संसाधनों से कोई खिलवाड़ नही कर सकता और कोई खिलवाड़ करेगा तो उसे जेल जाना पड़ेगा। इसलिए आईपीसी की धारा 124-क में सरकार के खिलाफ बात की गयी है जबकि न्याय संहिता में भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता की बात कही गयी है। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि नये कानून में पुलिस की जवाबदेही तय होगी। पहले किसी की गिरफ्तारी होती थी तो परिवार के लोगों को जानकारी ही नहीं होती थी, अब कोई गिरफ्तार होगा तो पुलिस को उसके परिवार को जानकारी देना होगी। नये कानूनों के साथ भारतीय न्याय व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव आयेगा।
भारतीय न्याय संहिता में बदलाव
      नये कानूनों में जो संशोधन किए गए हैं उसके अनुसार अब आईपीसी की 551 धाराओं के स्थान पर 358 धारायें होंगी। इसमें 20 नये अपराधों को जोड़ा गया है और 33 अपराधों में कारावास की सजा को बढ़ाया गया है। 19 धारायें निरस्त की गयी हैं और 23 धाराओं में जुर्माने की राशि बढ़ाई गयी है तथा 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान किया गया है। छः अपराधों में सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया गया है। भारतीय न्याय संहिता में राजद्रोह को हटा दिया गया है और इसकी जगह पर देशद्रोह में दंड का प्रावधान किया गया है। देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाली गतिविधियों पर न्याय संहिता की धारा 152 के तहत आजीवन कारावास या कारावास जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, से दंडित किया जा सकेगा। 18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों पर हुए मामलों में आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। गैंगरेप के मामलों में 20 साल या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। 18 वर्ष से कम उम्र की स्त्री के साथ गैंगरेप पर नई अपराध श्रेणी बनाई गई है। धोखे से यौन संबंध बनाने या शादी का झांसा देने वालों के लिए लच्छित दंड का प्रावधान किया गया है। भारतीय न्याय संहिता में पहली बार आतंकवाद की व्याख्या कर उसे दंडनीय अपराध बनाया गया है। आतंकवाद की बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए यह बदलाव अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है। आतंकी कृत्य पर मृत्यु दंड या आजीवन कारावास होगा और इसके तहत सजा पाये व्यक्ति को पेरोल नहीं मिलेगी। संगठित अपराधों से जुड़ी एक नई धारा भी जोड़ी गई है। सशस्त्र विद्रोह और अलगाववादी गतिविधियों को नये प्रावधान में जोड़ा गया है। मॉव लिचिंग की घटनाएं भी आये दिन बहुत बढ़ रही हैं इसलिए इससे संबंधित एक नया प्रावधान किया गया है। जाति, समुदाय के आधार पर की गयी हत्या से संबंधित अपराध में भी नया प्रावधान किया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में सीआरपीसी की 484 धाराओं के स्थान पर 521 सेक्शन होंगे। कुल 177 प्रावधानों  में बदलाव किया गया है, 14 धारायें हटा दी गयी हैं, 35 जगहों पर आडियो-वीडियो का प्रावधान जोड़ा गया है। इसके साथ ही 44 नये प्रावधान तथा स्पष्टीकरण जोड़े गये हैं। जो कुछ प्रमुख बदलाव हुए हैं उसके अनुसार पहली बार आपराधिक कार्रवाई शुरु करने, गिरफ्तारी, जांच, ट्रायल और जजमेन्ट की समयसीमा तय की गई है। शिकायत मिलने के तीन दिन के भीतर एफआईआर दर्ज करना होगी और अब चार्जशीट 180 दिन में दाखिल करना होगी और चौदह दिन में मजिस्ट्रेट को उसका संज्ञान लेना होगा। यौन उत्पीड़न के मामले में मेडिकल जांच रिपोर्ट एक्जामिनर सात दिन में जांच अधिकारी को भेजेंगे। सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप की पहली सुनवाई से 60 दिन के अंदर आरोप तय किया जायेगा। किसी भी आपराधिक केस में मुकदमे की समाप्ति के बाद 45 दिनों के अंदर जज को निर्णय देना होगा। सत्र न्यायालय द्वारा बरी करने या दोषसिद्धि का निर्णय बहस पूरी होने के तीस दिन के भीतर होगा, जिसे कारण बताने में 45 दिन तक बढ़ा सकते हैं। देश छोड़कर भागे अपराधियों पर आरोप तय होने के 90 दिन के भीतर उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाया जा सकेगा। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में मूल 167 धाराओं के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी। कुल 24 धाराओं में बदलाव किया गया है और 6 धारायें हटाई गयी हैं। जो बदलाव हुए हैं उनके अनुसार दस्तावेजों में इलेक्ट्रानिक, डिजिटल रिकार्ड, ई-मेल, स्मार्ट फोन, लेपटॉप के मेसेज और लोकेशन को शामिल किया गया है। पहली बार इसे कानूनी स्वीकार्यता और वैधता सुनिश्चित की गई है। इलेक्ट्रानिक रुप से प्राप्त बयान भी अब साक्ष्य की परिभाषा में शामिल किए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि नये दंड और साक्ष्य विधेयकों का पास होना हमारे इतिहास में महत्वपूर्ण क्षण है। यह विधेयक औपनिवेशिक युग के अन्त का प्रतीक हैं। सार्वजनिक सेवा और कल्याण पर केंद्रित कानूनों से एक नये युग की शुरुआत होती है।
और यह भी
    लोकसभा में टेलीकम्युनिकेशन बिल 2023 भी पास हो गया है जिसमें फर्जी सिम लेने पर तीन साल की जेल और 50 लाख रुपए तक का जुर्माना करने का प्रावधान है। यह प्रावधान सिम का दुरुपयोग रोकने के लिए किया गया है। सिम कार्ड लेने को बायोमेट्रिक पहचान को अनिवार्य बनाया गया है। टेलीकॉम कंपनियां बिना ई-केवायसी के ग्राहकों को सिम कार्ड जारी नहीं करेंगी। इस बिल में यह भी अनिवार्य किया गया है कि ग्राहकों को विज्ञापन और प्रमोशनल मेसेज भेजने से पहले उनकी सहमति लेनी होगी। अनचाहे काल करने वाली टेली मार्केटिंग कंपनियों पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लग सकता है और बार-बार अनचाहे काल करने पर दो लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है और उनके सभी  कनेक्शन बंद किए जा सकते हैं।
आपराधिक न्याय प्रणाली में भारतीय युग का आगाज

-अरुण पटेल
-लेखक ,संपादक  

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