भोपाल। मध्य प्रदेश के इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर सहित 22 जिलों के सभी ठेकेदारों ने 2200 से ज्यादा शराब दुकानें सरेंडर कर दी हैं।शराब ठेकेदारों का दावा है कि उनके इस कदम से राज्य सरकार को 70 फीसदी नुकसान होगा। सात जिलों के ठेकेदारों ने आधी दुकानें सरकार को वापस करने का शपथ पत्र दे दिया है। मप्र लिकर एसोसिएशन का दावा है कि इससे राज्य सरकार को 70 फीसद (लगभग 7200 करोड़ रुपये) का नुकसान होगा। मामला जबलपुर हाई कोर्ट में चल रहा है। इसमें 17 जून को फिर से सुनवाई होना है। लॉकडाउन अवधि में दुकानें बंद रहने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए शराब ठेकेदारों ने सरकार से राजस्व में 25 फीसद की छूट मांगी थी। सरकार तैयार नहीं हुई तो ठेकेदारों ने दुकानें बंद करने की चेतावनी दी थी। विवाद इतना बढ़ा कि ठेकेदारों ने 2200 से ज्यादा दुकानें छोड़ दी हैं। हाई कोर्ट के आदेश के तहत ठेकेदारों को आठ जून तक यह भी बताना है कि वे दुकानें चलाना चाहते हैं या नहीं। ऐसे ठेकेदार दो दिन में शपथ पत्र देंगे। इसके बाद स्थिति स्पष्ट होगी कि कुल कितने ठेकेदार दुकानें छोड़ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के दौरान करीब सवा दो माह प्रदेशभर में शराब दुकानें बंद रखी गई थीं। जिन जिलों के ठेकेदारों ने दुकानें सरेंडर की है उनमें
इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, बालाघाट, डिंडौरी, सिंगरौली, रीवा, सतना, सागर, टीकमगढ़, बैतूल, शिवपुरी, बुरहानपुर, भिंड, मुरैना, उज्जैन, देवास, मंदसौर, खंडवा जिला शामिल है। वहीं छतरपुर, नरसिंहपुर, सिवनी, अनूपपुर, मंडला और होशंगाबाद जिलों में संचालित आधी दुकानों को ठेकेदारों ने सरेंडर करने के शपथ पत्र दे दिए हैं। 10 दिन बाद तय होगी दिशा सरकार राजस्व में 25 फीसद की कटौती करेगी या नहीं और ठेकेदार वापस दुकानें चलाने को तैयार होंगे, यह 10 दिन बाद तय होगा। दरअसल, 17 जून को जबलपुर हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई तय है। कोर्ट सरकार और ठेकेदारों को निर्देश दे सकता है। ज्ञात हो कि 25 फीसद राजस्व कम करने के सरकार के अड़ियल रवैये को लेकर अलग-अलग ठेकेदारों ने हाई कोर्ट में याचिकाएं लगाई हैं। जिन पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने ठेकेदारों को आठ जून तक शपथ पत्र देकर यह बताने को कहा था कि वे दुकानें चलाना चाहते हैं या नहीं। जानकार बताते हैं कि दुकानें बंद होने की वजह से सरकार को लगातार राजस्व का नुकसान हो रहा है, वहीं 25 फीसद राजस्व कम करने का विवाद लंबा खिंच गया है। ठेकेदारों ने दुकानें भी सरेंडर कर दी हैं। ऐसे में सरकार खुद दुकानें चलाने का निर्णय ले सकती है। हालांकि यह आठ जून के बाद तय होगा। यदि इस पर सहमति नहीं बनी तो सरकार लॉटरी पद्धति से नए ठेकेदारों को दुकानें आवंटित कर सकती है। एक अन्य विकल्प दोबारा टेंडर करने का भी है। एसोसिएशन के प्रवक्ता राहुल जायसवाल कहते हैं कि सरकार फिर से टेंडर निकालकर दुकानें नीलाम करती है या लॉटरी पद्धति से देती है, तो 50 फीसद (करीब 3500 करोड़ रुपये) राजस्व का नुकसान होगा। वे कहते हैं कि वाणिज्यिक कर विभाग ने भी 25 फीसद से ज्यादा का अनुमान लगाया है। नई नीति से दुकानें चलाने को राजी बैतूल, सीहोर, विदिशा, रायसेन, आगर, राजगढ़, शाजापुर, टीकमगढ़ और पन्नाा के ठेकेदार नई नीति के तहत दुकानें खोलने को तैयार हैं, वहीं खरगोन में लॉकडाउन खुलने के बाद से ही ठेकेदार हाथ खड़े कर चुके हैं। जिले में आबकारी विभाग ही दुकानें चला रहा है। एसोसिएशन का दावा है कि सरकार दुकानें संचालित करने के दूसरे किसी विकल्प पर जाती है तो नुकसान तय है। इस बारे में आबकारी आयुक्त राजीव चंद्र दुबे का कहना है कि दुकानें सरेंडर करने का प्रावधान ही नहीं है। वैसे भी जो होगा वह हाई कोर्ट के निर्देश से ही होगा। इसलिए आठ जून के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।
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